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उत्तर प्रदेश में छोटे राजनीतिक दल डाल सकते हैं लोकसभा चुनाव पर बड़ा प्रभाव

Vikrant Thardak द्वारा Vikrant Thardak
15 March 2019
in समीक्षा
उत्तर प्रदेश राजनीतिक दल

PC: Urid Media Group

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लोकसभा चुनावों के ऐलान के बाद उत्तर प्रदेश में जहां एक तरफ बड़े दल प्रचार अभियान में जुट चुके हैं वहीं, छोटे दलों ने भी अपनी कमर कस ली है। कुछ छोटे दल यूपीए के साथ जाकर भाजपा को हराने की कोशिश में हैं, तो कुछ दल एनडीए को और मज़बूत करने में जुटे हैं। वहीं कुछ दल ऐसे भी हैं जो साथ मिलकर एक अलग मोर्चे का निर्माण कर सकते हैं और कुछ दल तो अकेले ही चुनावी मैदान में कूदने की तैयारी में हैं।

ऐसा ही एक दल है ‘राष्ट्रीय लोक दल’! पिछले लोकसभा और विधानसभा चुनाव के बाद राष्ट्रीय लोकदल का प्रतिनिधित्व लोकसभा के साथ विधानसभा में भी खत्म हो गया था। हालांकि, उपचुनाव में एसपी से समझौते के बाद लोकसभा में पार्टी का एक सांसद पहुंच गया। इस प्रतिनिधित्व को कायम रखने के लिए रालोद बीएसपी और एसपी के गठबंधन का हिस्सा बन चुका है। आरएलडी को गठबंधन में तीन सीटें मिली हैं।

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पहली बार लोकसभा चुनावों में एंट्री करने वाली शिवपाल यादव की पार्टी ‘प्रगतिशील समाजवादी पार्टी’ अपनी स्थिति अबतक साफ नहीं कर पाई है। सूत्रों के मुताबिक पार्टी अभी गठबंधन को लेकर कुछ छोटे-बड़े दलों के साथ बातचीत कर रही है, और अगर किसी पार्टी के साथ उनकी बात नहीं बन पाती है, तो वह अकेले 50 सीटों पर अपने प्रत्याशी खड़ा कर सकती है।

एनडीए का घटक दल ‘अपना दल (एस)’ भी भाजपा के साथ मिलकर चुनाव लड़ेगी। हालांकि पिछले दिनों अपना दल की प्रमुख अनुप्रिया पटेल ने भाजपा से अपनी नाराजगी जाहिर की थी, लेकिन बोर्ड और निगमों में पार्टी कार्यकर्ताओं के मनोनयन के बाद उनकी नाराजगी दूर होती दिख रही है। हालांकि, पार्टी ने अभी तक स्पष्ट नहीं किया कि वह चुनाव में किसके साथ हैं। 

अपना दल(एस) के आलावा कृष्णा पटेल के नेतृत्व वाला एक अन्य ‘अपना दल’ भी अब तक यह तय नहीं कर पाया है कि वह बीजेपी के साथ चुनाव में उतरेगा या फिर कांग्रेस का सहारा लेगा। पार्टी की प्रदेश अध्यक्ष पल्लवी पटेल की मानें तो गठबंघन को लेकर बड़ी पार्टियों से उनकी वार्ता चल रही है। साथ ही पार्टी ने यह भी स्पष्ट किया कि वह एसपी-बीएसपी गठबंधन से दूर रहेंगी। अगर गठबंधन की वार्ता का परिणाम न निकला, तो पार्टी प्रदेश की 35 सीटों पर प्रत्याशी उतारने पर विचार कर सकती है।

इसी तरह कुछ अन्य दल जैसे ‘सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी’ और ‘रिपब्लिकन पार्टी ऑफ़ इंडिया’ जैसे भाजपा के साथ मिलकर उत्तर प्रदेश में अपना जनाधार मज़बूत करने की कोशिश में हैं। आपको बता दें कि आरपीआई पार्टी का जनाधार महाराष्ट्र में है लेकिन पार्टी अब उत्तर प्रदेश में भी अपना विस्तार करने की फ़िराक में है। लखनऊ दौरे पर आए आरपीआई के अध्यक्ष रामदास आठवले ने कहा था कि उन्होंने बीजेपी से यूपी में सीट मांगी हैं। बीजेपी सीटें नहीं देती, तो भी उनकी पार्टी उन सीटों पर चुनाव लड़ेंगे, जहां पार्टी का प्रभाव है।

कुल मिलाकर देश के सबसे बड़े राज्य में छोटे दल भी अपनी भूमिका को मज़बूत करने में लगे हैं। कुछ भाजपा के साथ मिलकर अपने भाग्य को आज़माना चाहते हैं, तो कुछ कांग्रेस के ‘हाथ’ को थामकर अपनी नैया पार लगाना चाहते हैं। हालांकि यहां पर इस बात को जानना बेहद जरूरी है कि इन दलों का उत्तर प्रदेश की राजनीति में कोई खास प्रभाव नहीं रहा है। अगर अनुप्रिया पटेल के नेतृत्व वाले ‘अपना दल’ को छोड़ दें तो पिछले चुनावों में इनमें से कोई दल अपना खाता भी नही खोल पाया था। लेकिन इन दलों की अबकी बार पूरी कोशिश है की यूपी की राजनीति में वे एक ‘गेमचेंजर’ बनकर उभर सकें।

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