2019 लोकसभा चुनाव सभी पार्टियों के लिए आर या पार की लड़ाई बन गया है जहां पीएम मोदी अकेले किसी जंगल के राजा से नज़र आ रहे हैं वहीं बाकी पार्टियां उनके पीछे नजर आ रही हैं। शेर के आने पर जंगल मे जो अफरा तफरी देखने को मिलती है ऐसी ही कुछ हालत चुनावी मैदान मे बाकी पार्टियों की दिखती है और इस अफ़रा-तफ़री में कांग्रेस कुछ ऐसी गलतियां कर रही जो उसी के लिए नुकसान देह साबित हो सकती है। कांग्रेस ने पिछले हफ्ते अपना घोषणापत्र जारी किया था जिसमें पार्टी ने जम्मू कश्मीर से ‘अफस्पा’ कानून हटाने से लेकर देशद्रोह जैसे कानून में भी संशोधन करने की बात कही। वहीं बीजेपी ने अपने घोषणापत्र में सेना को और मजबूत करने की बात कही। अब देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा है कि जम्मू-कश्मीर में सशस्त्र बल विशेष शक्तियां अधिनियम (अफस्पा) को खत्म करना हमारे सैनिकों को फांसी के तख्त पर चढ़ाने जैसा है।
उन्होंने न्यूज 18 के एडिटर-इन-चीफ राहुल जोशी के साथ एक एक्सक्लूसिव इंटरव्यू में साफ शब्दों में कांग्रेस के इस वादे की आलोचना की और कहा कि सेना का आत्मविश्वास बनाए रखने के लिए अफस्पा को जारी रखना जरूरी है। खासकर उन क्षेत्रों में जो अशांत हैं। हालांकि, उन्होंने ये भी कहा कि अगर अफस्पा को खत्म करना है तो अरुणाचल प्रदेश जैसा माहौल बनाना पड़ेगा। उन्होंने कहा कि ‘सबसे पहले हमने अरुणाचल प्रदेश के कुछ जिलों में इसे खत्म किया। 1980 में हमारी पहली सरकार थी जिसने इस संबंध में कदम उठाए। लेकिन हमने कानून व्यवस्था को लागू रखा।’ पीएम मोदी ने अपने इंटरव्यू में ये भी कहा ‘आतंकवाद को लेकर कांग्रेस पार्टी के विचार पाकिस्तान से मिलते जुलते हैं। अफस्पा को खत्म करना सैनिकों के हाथ से हथियार छीनने जैसा है।’
अफस्पा का मतलब है आर्म्ड फोर्सेस स्पेशल पावर्स एक्ट हमारे देश के जवानों को दिया गया एक ‘स्पेशल पावर’ एक विशेष अधिकार है जो डिस्टर्ब क्षेत्रों मे लागू किया जाता है। अशांत क्षेत्र वो होते हैं जहां अलग-अलग धर्म, जात-पात, भाषा को लेकर मतभेद या विवाद चल रहा हो। ऐसे क्षेत्रों में, राज्यों में सेना को एक छूट दी जाती है कि वो ‘अफस्पा’ का इस्तेमाल करके क्षेत्र की शांति बनाए रखे। वहां के लोगों की जो दिनचर्या है वो सही तरह से चलती रहे, उसमें कोई दिक्कत न आए।
लगभग 45 साल पहले भारतीय संसद ने इसे लागू किया था। इसे फौजी कानून भी कहा जा सकता है , जिसे डिस्टर्ब्ड क्षेत्रों में लागू किया जाता है ताकि हमारे जवान इसका इस्तेमाल करके ऐसे क्षेत्रो मे शांति बनाए रखें और उसके साथ-साथ खुद की भी सुरक्षा कर सकें। इस कानून का इस्तेमाल करके सुरक्षा बल किसी भी संदिग्ध व्यक्ति जिसपर सेना को शक हो उसको बिना किस वॉरेंट के गिरफ्तार करके पूछताछ करने का हक़ है। 1958 से लेकर अब तक ये कानून मणिपुर ,अरुणाचल प्रदेश , असम , त्रिपुरा , मेघालय , मिज़ोरम , नागालैंड उत्तर पूर्व के राज्यों मे लागू किया जा चुका है। जम्मू कश्मीर के हालात देखते हुए 1990 में ये कानून यहां भी लागू किया गया था और तब से लेकर अब तक ये कानून घाटी में लागू है। ये कानून लागू होने के बाद कम से कम 3 महीनों तक सेना की तैनाती उस राज्य में की जाती है ताकि वहां किसी भी ऐसी गतिविधि को रोका जा सके जो क्षेत्र मे अशांति फैलाने का काम करती है।
ऐसे कानून के होते हुए भी हमारे जवानों को पठानकोट, पुलवामा जैसे आतंकी हमलों का सामना करना पड़ रहा है। ऐसे में अगर इस सख्त कानून को हटाया गया तो परिदृश्य कैसे होगा? आतंकियों के हौसले और बुलंद होंगे। फिर भी कांग्रेस चाहती है कि इस कानून को खत्म कर दिया जाए, कांग्रेस का कहना है कि ये मानव अधिकारों के खिलाफ है, तो भारतीय सेना पर जो हमले होते हैं क्या वो कांग्रेस के लिए कोई महत्व नहीं रखते ? क्या भारतीय सेना का कोई परिवार नहीं होता ? या उनकी अपने परिवार के लिए कोई ज़िम्मेदारी नहीं होती? भारतीय सेना आए दिन आतंकवाद का सामना करते हुए अपने न जाने कितने ही शूरवीरों को खो देती है। ऐसे मे ‘अफस्पा’ कानून उनके लिए किसी सुरक्षा कवच या ढाल की तरह काम आता है। सच में अगर इस कानून को हटाया जाता है तो इसका मतलब ये है कि वो देश के जवानो को सीधा फांसी पर लटकाने जैसा काम करेंगे। अब आपको तय करना है कि देश और देश की सुरक्षा के लिए कौनसी सरकार सबसे सही है।