कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी अपनी न्याय योजना की घोषणा कर पहले ही वाहवाही बटोरने की कोशिश कर चुके हैं लेकिन कांग्रेस पार्टी अब भी यह बताने में असक्षम है कि इस योजना को फंड करने के लिए सरकार के पास इतना पैसा कहां से आएगा। आपको बता दें कि न्याय योजना के तहत कांग्रेस ने देश के सबसे गरीब 20 प्रतिशत लोगों को हर वर्ष 72,000 रुपये देने का वादा किया है। इस योजना को लागू करने के लिए केंद्र सरकार को सालाना 3.6 लाख करोड़ रुपयों की आवश्यकता पड़ेगी। अब कांग्रेस के वरिष्ठ नेता पी. चिदम्बरम ने न्याय स्कीम को लेकर एक तथ्यहीन बयान दिया है, जिसमें उन्होंने देश की जनता को ही कटघरे में खड़ा कर दिया।
दरअसल, चिदम्बरम ने कहा है कि कांग्रेस की न्याय स्कीम को फ़ंड करने के लिए जीडीपी का सिर्फ 1 प्रतिशत पैसा खर्च करना पड़ेगा। साथ ही उन्होंने देश की सरकार को हृदयहीन बताते हुए कहा ‘अगर कोई देश अपनी जीडीपी का एक फीसदी से भी कम हिस्सा 20 फीसदी आबादी पर खर्च नहीं कर सकता है, तो इसका मतलब यह देश हृदयहीन लोगों के द्वारा शासित किया जा रहा है। मैं किसी भी अर्थशास्त्री को चुनौती देता हूं कि वे आएं और मुझे बताएं कि यह कैसे ‘असंभव’ है।’ साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि अगर देश 20 फीसदी गरीबी के लिए इतना भी नहीं कर सकता है, तो मेरा मानना है कि यहां के लोगों के पास बड़ा दिल नहीं है।
चिदम्बरम का यह बयान ना सिर्फ देश के ईमानदार करदाताओं का अपमान है, बल्कि तथ्यहीन भी है। आपको बता दें कि न्याय स्कीम को लागू करने के लिए सरकार को लगभग 3 लाख 60 हज़ार करोड़ रुपयों की जरूरत पड़ेगी। अर्थशास्त्रियों के अनुमान के अनुसार इस साल यानी 2019-20 के लिए भारत की जीडीपी 210 लाख करोड़ रुपये रहने वाली है। इस तरह न्याय योजना में होने वाला खर्च देश की इस कुल जीडीपी का 1.7 प्रतिशत हिस्सा बैठेगा, यानि ‘अर्थशास्त्री’ चिदम्बरम के 1 प्रतिशत के अनुमान से 0.7 प्रतिशत ज़्यादा, जो कि एक बहुत बड़ी रकम बनती है। यहां आपके लिए यह भी जानना जरूरी है कि भारत कर के रूप में अपनी जीडीपी का सिर्फ 17 प्रतिशत अंश ही वसूल कर पाता है। इस 17 प्रतिशत में राज्य और केंद्र, दोनों का हिस्सा होता है। राज्य सरकारों को उनका हिस्सा देने के बाद केंद्र सरकार के पास उस 17 प्रतिशत में से सिर्फ 12 प्रतिशत पैसा ही बच पाता है। अब एक्स्पर्ट्स के मुताबिक यह न्याय योजना इस 12 प्रतिशत का पांचवा हिस्सा खा जाएगी, जिससे कि भारत सरकार को अपने अन्य खर्चों में कटौती करनी पड़ेगी।
इसके अलावा सरकार के पास करों की दर को बढ़ाने का भी विकल्प हो सकता है जिसकी तरफ इशारा कांग्रेस के एक अन्य नेता सैम पित्रोदा ने अपने एक इंटरव्यू में किया था। पित्रोदा ने अपने इंटरव्यू में कहा था ‘हाँ मुझे पता है कि न्याय स्कीम को लागू करने के बाद मिडिल क्लास पर टैक्स का बोझ पड़ेगा, लेकिन मुझे नहीं लगता कि यह कोई बड़ा मुद्दा है, मिडिल क्लास को इतना स्वार्थी नहीं होना चाहिए, बल्कि इसे अपना बड़ा दिल दिखाना चाहिए’।
Sam Pitroda's response to the middle class' scepticism about NYAY, because it will increase their tax burden:
"Don't be selfish, have a big heart."Sam Pitroda has the biggest heart. He just keeps giving and giving. To the BJP. pic.twitter.com/3tFPkACF39
— Ajit Datta (@ajitdatta) April 4, 2019
हालांकि, ऐसा पहली बार नहीं है जब कांग्रेस के नेताओं ने अपने बचाव में अपने बेहूदा बयानों की आढ़ ली हो। उन्होंने वर्ष 2012 में अपनी सरकार द्वारा महंगाई बढ़ाने का बचाव करते हुए कहा था कि ‘लोग आइसक्रीम और पानी पर तो 15 रुपए खर्च कर देते हैं, लेकिन चावल-गेहूं की कीमत में एक रुपए की बढ़त बर्दाश्त नहीं कर पाते। सरकार हर चीज को मिडिल क्लास के नजरिए से नहीं देख सकती’। उस वक्त चिदम्बरम देश के गृह मंत्री थे। यह तो साफ है कि कांग्रेस को अपनी इस स्कीम को लागू करने के लिए भारी मात्र में पैसे की आवश्यकता पड़ेगी, लेकिन पार्टी की ओर से अब तक इस पर कोई बात करने के लिए तैयार नहीं है कि इतने पैसे का प्रबंध कहां से किया जाएगा। कांग्रेस इस बात को भी मानने से इंकार कर रही है कि वह मिडिल क्लास पर किसी तरह के कर का बोझ बढ़ाएगी। ऐसे में कांग्रेस की यह ‘न्याय’ योजना किसी के गले नहीं उतर रही है। वहीं दूसरी तरफ कांग्रेस के नेता ऐसे बेढंगे बयान देकर अपनी फ़ज़ीहत करवाने पर तुले हुए हैं।