कोई व्यक्ति ट्रैवल एजेंसी खोले और उसका नाम जेट एयर रख दे तो आप सोच सकते हैं कि, लोगों के बीच उसका कितना मजाक बना होगा। एक समय नरेश गोयल का भी ऐसा ही मजाक बना था। बात 1967 की है। बेहद गरीब परिवार में जन्मे नरेश गोयल मात्र 18 साल की उम्र में दिल्ली चले आए थे। वो भी खाली हाथ। नौकरी की दरकार दी, तो उन्होंने कनॉट प्लेस में एक ट्रैवल एजेंसी जॉइन कर ली। इस नौकरी से उन्हें महीने की सिर्फ 300 रुपये पगार मिलती थी। लेकिन, गोयल के लिए पगार से ज्यादा महत्व सपनों का था। और सपना था बड़ा आदमी बनने का।
छह साल बाद ही नरेश गोयल ने 1973 में खुद की ट्रैवल एजेंसी खोल ली जिसे उन्होंने नाम दिया जेट एयर। अब मजाक तो बनना ही था। लोग मजाक उड़ाते कि, देखो ट्रैवल एजेंसी का एयरलाइन कंपनी जैसा नाम दिया है। लेकिन, गोयल बहुत आगे की सोच रहे थे। उन्होंने ठान लिया था कि, एक दिन खुद की एयरलाइन कंपनी जरूर खोलेंगे। धीरे-धीरे वे व्यापार की बारीकियां समझने लगे। उनके दोस्तों की संख्या भी लगातार बढ़ती गई। ये दोस्त खासकर जॉर्डन, खाड़ी और दक्षिण पूर्व एशिया में विदेशी एयरलाइंस से होते। इस दौरान गोयल बहुत तेजी से एविएशन सेक्टर की पूरी पेचीदगियां समझ गए। उन्हें टिकट वितरण से लेकर प्लेन लीज पर लेने तक की अच्छी समझ हो गई थी।
कुछ ही सालों में वह समय भी आ गया जब गोयल का सपना पूरा हो रहा था। गोयल ने साल 1991 में एयर टैक्सी की शुरुआत कर दी और नाम वही रखा। जेट एयरवेज। इसके दो साल बाद जब कंपनी ने चार जहाजों का बेड़ा बना लिया तो जेट एयरलाइन की पहली उड़ान शुरू हुई। इस तरह जेट के रूप में भारत को पहली संगठित एयरलाइन मिली।
जेट से पहले देश में हवाई यात्रा के लिए एक ही साधन था और वह थी सरकारी इंडियन एयरलाइंस। जेट के आने से लोगों को विकल्प तो मिला ही ढ़ेरों नई सुविधाएं भी मिली। धीरे-धीरे जेट एयरवेज देश के लाखों लोगों के दिलों में बसने लगी। वर्ल्ड क्लास सुविधाएं, अच्छी सर्विस और ग्राहकों के विश्वास के कारण इस एयरलाइन ने तेजी से उन्नती की। जेट की जेपी माइल्स स्कीम तो ग्राहकों की फेवरेट बन चुकी थी। जेपी (जेट प्रीविलेज) माइल्स एक तरह का रिवॉर्ड प्रोग्राम था। इस तरह साल 2002 आते-आते जेट ने घरेलू एयरलाइंस मार्केट में इंडियन एयरलाइंस को पीछे छोड़ दिया था।
जेट एयरवेज एविएशन सेक्टर में नए झंडे गाढ़ रही थी। इतनी सफलता के बावजूद गोयल की आगे बढ़ने की होड बढ़ती ही जा रही थी और इन्हीं महत्वकांक्षाओं के बीच उन्होंने एक ऐसा फैसला लिया जिसके बाद से जेट के उल्टे दिन शुरू हो गए।
नरेश गोयल जेट को अंतर्राष्ट्रीय उड़ान भरने वाली अकेली कंपनी के रूप में देखना चाहते थे। अपनी इस महत्वकांक्षा को पाने के लिए उन्होंने 2007 में एयर सहारा को 1,450 करोड़ रुपये में खरीद लिया। गोयल ने जब यह फैसला लिया था उस वक्त भी कुछ लोग इसे गोयल की एक बड़ी गलती के रूप में देख रहे थे और यह सच भी हुआ। एयर सहारा को खरीदकर जेट ने बैठे-बिठाए एक परेशानी मोल ले ली थी। धीरे-धीरे जेट की आर्थिक मुश्किलें बढ़ती गईं। सही शब्दों में कहा जाए तो जेट पर सहारा नाम की एक दीमक लग गई थी जिससे जेट को कभी छुटकारा नहीं मिल सका। एविएशन से जुड़े लोग कहते हैं कि, गोयल प्रोफेशनल्स पर भरोसा नहीं करते थे और कंपनी के बड़े निर्णय अक्सर अकेले ही ले लेते थे, जिसका परिणाम उन्हें भुगतना पड़ा।
आर्थिक मुश्किलें बढ़ीं तो अक्टूबर 2008 में जेट को अपने 13 हजार कर्मचारियों में से 1,900 की छंटनी करने की नौबत तक आ गई थी। जुलाई 2012 आते-आते जेट एयरलाइन घरेलू मार्केट शेयर में इंडिगो से पिछड़ गई। इसके बाद नवंबर 2013 में यूएई की एतिहाद एयरलाइंस ने जेट का 24 पर्सेंट शेयर खरीद लिया जिससे गोयल के पास सिर्फ 51 पर्सेंट ही शेयर बचे। सहारा को खरीदने के बाद जेट में जो आर्थिक मुश्किलों का दौर शुरू हुआ था, वह बढ़ता ही जा रहा था। जेट को अपने पायलट्स को सैलरी देने तक के लाले पड़ने लगे। इस साल जनवरी में जब जेट ने बैंकों की ईएमआई नहीं भरी तो कंपनी की रेटिंग में काफी गिरावट आ गई। आखिरकार फंडिंग पाते रहने के लिए जेट को बैंकों को सबसे बड़ा शेयर होल्डर बनाने का फैसला लेना पड़ा। यही कारण था कि, बीती 15 फरवरी को जेट ने शेयरधारकों से 84 करोड़ डॉलर का बेलआउट पैकेज मांगा। अंत में जब जेट की नैया डूबने लगी तो 25 मार्च को नरेश गोयल ने जेट ऐयरवेज के बोर्ड से इस्तीफा दे दिया।
नरेश गोयल के इस्तीफा देते ही जेट एयरवेज की आत्मा भी चली गई थी, तो वह बिना आत्मा के और कितने दिन चलती। करीब 15000 करोड़ की देनदारी और कर्ज व रोजाना 21 करोड़ रुपये के नुकसान से कंपनी लड़खड़ाकर गिर गई। कभी एक दिन में 600 से अधिक फ्लाइट्स उड़ाने वाली जेट के पास फ्लाइट उड़ाने तक के पैसे नहीं बचे और बुधवार की रात जेट एयरवेज को अपनी अंतिम उड़ान भरनी पड़ी।