कहते हैं कि सच परेशान तो हो सकता है, लेकिन पराजित नहीं। पिछले कई वर्षों से जिस झूठ की आड़ में पाकिस्तान अपने यहां मौजूद आतंकियों को बड़े आराम से पालता-पोसता आ रहा था, कल उसी झूठ का पाक सेना के प्रवक्ता मेजर जनरल आसिफ गफूर ने पर्दाफाश कर दिया। दरअसल, कल अपनी एक प्रेस वार्ता में पाक की सेना ने आधिकारिक रूप से यह कबूल लिया कि उसके यहां आतंकी ठिकाने मौजूद हैं और उनको खत्म करने के लिए पाकिस्तान को ‘बहुत कुछ’ करने की जरूरत है। हालांकि इसके लिए उन्होंने बड़ी बेशर्मी से पाकिस्तान की पिछली सरकारों को दोषी बता डाला। अब माना यह जा रहा है कि बढ़ते अंतराष्ट्रीय दबाव की वजह से पाकिस्तान इस बात को मानने के लिए मजबूर हुआ है कि उसके यहां आतंकी ठिकाने मौजूद हैं। इसके अलावा पाकिस्तान की खराब आर्थिक हालात भी इस स्वीकारोक्ति के पीछे एक बड़ा कारण हो सकती है।
दरअसल, कल अपनी प्रेस वार्ता में प्रवक्ता आसिफ गफूर ने यह कबूला कि उसके यहां आतंकी ठिकाने मौजूद हैं। उन्होंने कहा ‘हमने आतंकवादियों के खिलाफ अपनी जंग में करोड़ों रुपये खर्च किए हैं। अभी भी आतंकियों के खिलाफ हमें बहुत कुछ करना है’। पिछली सरकारों पर देश की मौजूदा स्थिति का दोष डालते हुए आसिफ गफूर ने कहा ‘आतंकवाद को लेकर पिछली सरकारों का रुख बड़ा निराशाजनक रहा, जिसकी वजह से पाक की सभी सुरक्षा एजेंसियों का सारा ज़ोर आतंकियों के खिलाफ छोटे अभियान चलाने में बर्बाद हो गया, लेकिन कभी योजनाबद्ध तरीके से उनके खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की गई’। यहां गौर करने वाली बात यह है कि पाकिस्तान इससे पहले यह बात स्वीकार करने से कतराता था कि उसकी जमीन से आतंक को बढ़ावा मिलता हैं। पिछले दिनों ही पाक के प्रधानमंत्री इमरान खान ने भी इस बात को कबूला था कि पाक में आतंकवादी सक्रिय हैं और वे ईरान जैसे पड़ोसी देशों में जाकर आतंकी घटनाओं को अंजाम देते हैं।
अब यहां सवाल यह उठता है कि पाक की सुरक्षा नीति में इस बड़े बदलाव की आखिर क्या वजह हो सकती है? पुलवामा हमले के बाद से भारत ने जिस तरह पाक पर चौतरफा कूटनीतिक दबाव बनाया, आज उसी का यह नतीजा है कि पाकिस्तान अपने यहां इन पालतू आतंकियों की मौजूदगी को स्वीकार करने को मजबूर हुआ है। इसके अलावा पाकिस्तान पर फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स (एफ़एटीएफ़) द्वारा ब्लैक लिस्ट किए जाने का खतरा भी मंडरा रहा है, जिसके कारण पाकिस्तान को ना चाहते हुए भी इन आतंकियों के खिलाफ कदम उठाने के लिए बाध्य होना पड़ रहा है। इतनी खराब आर्थिक हालात के बीच पाक यह बिल्कुल नहीं चाहेगा कि उसे एफ़एटीएफ़ द्वारा ब्लैक लिस्ट में डाल दिया जाए क्योंकि उसके बाद पाक को आईएमएफ़ से कर्जा लेना बड़ा मुश्किल हो जाएगा, और अगर इन परिस्थितियों में पाकिस्तान को आईएमएफ़ से कर्जा नहीं मिल पाता है तो पाकिस्तान का हुक्का-पानी बंद होना तय है।
आसिफ गफ़ूर का यह बयान पाकिस्तान के दोहरे मापदंड को उजागर करता है। भारत पिछले कई वर्षों से यही बात कहता आया है। वर्ष 2008 में मुंबई हमलों के तार जब पाकिस्तान से जुड़ते दिखाई दिये थे, तो भी भारत ने पाक आतंकियों को इस हमले का दोषी बताया था, लेकिन पाकिस्तान ने बड़ी बेशर्मी से इस बात को स्वीकार करने से मना कर दिया था। हालांकि, पाकिस्तान के इस झूठ की पोल तब खुली थी जब पिछले वर्ष मई में पाक के पूर्व प्रधानमंत्री नवाज शरीफ ने खुद यह स्वीकार किया था कि मुंबई हमलों के पीछे पाकिस्तानियों का ही हाथ था।
लेकिन यह भी सच्चाई है कि वर्ष 2008 में भारत के पास ना तो इतनी कूटनीतिक शक्ति थी, और ना ही अंतर्राष्ट्रीय समुदाय भारत की बातों को इतने गौर से सुनता था। पिछले पांच वर्षों में पीएम मोदी के कुशल नेतृत्व का ही यह नतीजा निकला है कि आज सभी अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर भारत के विचारों को प्राथमिकता दी जाती है। पुलवामा हमले के बाद भारत ने जो कूटनीतिक तत्परता दिखाई, आज उसी के फलस्वरूप पाक ने अपने यहां आतंकियों की उपस्थिती को स्वीकार किया है। हालांकि भारत समेत पूरे अंतर्राष्ट्रीय समुदाय को पाकिस्तान पर यह दबाव बनाए रखने की आवश्यकता है ताकि इस बार पाक के पास इन आतंकियों के खिलाफ कोई कदम ना उठाने का विकल्प ही ना बचे।