दुनिया के किसी कोने में कोई आतंकवादी हमला हो, और उसका पाकिस्तान के साथ कोई संबंध ना हो, ऐसा भला कैसे हो सकता है? श्रीलंका में रविवार को हुए ईस्टर बम धमाकों के तार भी पाकिस्तान से जाकर ही मिलते हैं, जिससे फिर इस बात की पुष्टि हो गयी है कि पाकिस्तान दुनिया का सबसे बड़ा आतंक-एक्सपोर्ट देश बन चुका है। दरअसल, श्रीलंका में हमला करने वाले 9 आत्मघाती हमलावरों में से एक का नाम ज़हरम हाशीम था, जो कि एक इस्लामिक कट्टरपंथी इमाम था। अब यह खबर सामने आई है कि वह पिछले वर्ष पाकिस्तान के दौरे पर गया था, और वह ‘नेशनल तोहीद जमात’ का सदस्य भी था। आपको बता दें कि यह वही आतंकी संगठन है जो श्रीलंका में बौद्ध धर्म से संबंधित प्रतिमाओं को नुकसान पहुंचाने में शामिल रहा है और इसका प्रमुख उद्देश्य दुनियाभर में जिहाद फैलाना है।
पाकिस्तान में इस्लामिक कट्टरपंथ कोई नया विषय नहीं है, हालांकि वहां की सरकारों का इसके प्रति रुख बड़ा निराशाजनक रहा है। भारत की ही तरह श्रीलंका में भी मुस्लिम समुदाय अल्पसंख्यक है जहां लगभग 10 फीसदी आबादी मुस्लिमों की है। इसके अलावा यहां लगभग 70 प्रतिशत लोग बौद्ध धर्म से संबंध रखते हैं। लेकिन श्रीलंकाई मुसलमानों में कट्टरपंथ का वजूद हमें आज से लगभग 80 साल पहले भी देखने को मिल जाता है। कराची में आधारित रिसर्चर साहिबा हसन अपनी किताब ‘पाकिस्तान होरीज़ोन’ में लिखती हैं ‘जब संयुक्त भारत के मुसलमान अपने लिए एक अलग देश की मांग कर रहे थे, तो बिना किसी मतलब के श्रीलंकाई मुसलमान भी भारत के मुसलमानों का समर्थन कर रहे थे’।
हालांकि, श्रीलंकाई सरकार शुरू से ही अपने यहां मौजूद इस्लामिक कट्टरपंथ को नकारता आया है। इसका अंदाजा आप इसी बात से लगा सकते हैं कि दक्षिण एशिया के सबसे कट्टरपंथी देश पाकिस्तान के साथ श्रीलंका ने शुरुआती सालों में काफी गहरे संबंध बनाने की कोशिश की। दोनों देशों के राष्ट्राध्यक्षों ने एक दूसरे के देशों में आधिकारिक यात्राएं की। वर्ष 1954 में जब श्रीलंका के तत्कालीन प्रधानमंत्री जॉन कोटेलावाला पाकिस्तान के आधिकारिक दौरे पर थे, तो उन्होंने इस्लामाबाद में कहा था ‘हम एक दूसरे के बेहद नजदीक हैं, हमें एक दूसरे को समझकर एक दूसरे की सहायता करने की पूरी कोशिश करनी चाहिए’।
हालांकि यह तो पाकिस्तान और श्रीलंका के इस आधिकारिक प्रणय का एक उदाहरण मात्र था। वर्ष 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध के समय जब भारत ने पाकिस्तानी एयरलाइंस के लिए अपने वायु सीमा के इस्तेमाल पर पाबंदी लगा दी थी, तो वह श्रीलंका ही था, जिसने बड़ा दिल दिखाते हुए पाकिस्तानी विमानों के लिए रिफ्यूलिंग की सुविधा उपलब्ध कराई थी। युद्ध के दौरान पाकिस्तान ने बंगालियों के दमन के लिए जितने भी सैनिकों और सैन्य हथियारों को उस वक्त के पूर्वी पाकिस्तान में भेजा, वो सभी श्रीलंका की वायुसीमा का इस्तेमाल करके ही भेजे गए थे।
यह पाकिस्तान की आदत रही है कि जब भी वह किसी देश के साथ दोस्ती करने का ढोंग करता है तो इसकी आड़ में वह उस देश के मुस्लिमों में कट्टरपंथ को बढ़ावा देने का काम करने लगता है। ऐसा ही श्रीलंका के मामले में हुआ जब पाकिस्तानी सेना और खूफिया एजेंसी आईएसआई ने श्रीलंकाई मुसलमानों को भारत के खिलाफ अपनी ‘प्रोक्सी वॉर’ में हिस्सा बनाने के सपने देखना शुरू कर दिया। पाकिस्तानी आईएसआई श्रीलंका के मुस्लिमों में कट्टरपंथ फैलाकर एक तरफ जहां देश में पाकिस्तान का प्रभुत्व बढ़ाना चाहती थी, तो वहीं दूसरी तरफ भारत को चौतरफा घेरने की योजना भी बना रही थी। इसके लिए उसने श्रीलंकाई मुस्लिमों से संवाद स्थापित करने की कोशिश की, लेकिन उसे इस काम में एलटीटीई के रूप में एक बड़ी चुनौती मिली।
दरअसल, एलटीटीई श्रीलंका में मुस्लिमों के वर्चस्व के खिलाफ थी और श्रीलंका में तमिल समुदाय के लिए एक अलग देश की मांग कर रही थी। यह संगठन मुस्लिमों के इतना खिलाफ था कि इसने देश के उत्तरी प्रांतो से मुस्लिमों को भगाना शुरू कर दिया। इसके अलावा एलटीटीई ने बड़े पैमाने पर मुस्लिमों की हत्या करने का काम किया जिसमें कत्तनकुड़ी मस्जिद हत्याकांड और पल्लियागोड़ेला हत्याकांड शामिल है जिनमें लगभग 350 मुस्लिमों की हत्या की गई थी, यही कारण था कि पाकिस्तान की आईएसआई और सेना इस संगठन को खत्म करना चाहती थी। एलटीटीई ने जब श्रीलंका में गृह युद्ध छेड़ा हुआ था तो वह पाकिस्तान ही था जिसने श्रीलंका की मदद करने की आड़ में एलटीटीई को खत्म करने का सुनहरा अवसर ढूंढ लिया। एक तरफ जहां पाकिस्तान द्वारा श्रीलंकाई सेना और पुलिस को प्रशिक्षण दिया गया तो वहीं एलटीटीई के खात्मे के दौरान खुद पाकिस्तानी पायलटों ने एलटीटीई के लड़ाकों पर बमबारी करने का काम किया था। हालांकि जब एलटीटीई का खात्मा कर दिया गया, तो वहां आईएसआई को श्रीलंका में ऑपरेट करने की खुली छूट मिल गई।
गौर किया जाए तो पिछले कुछ वर्षों में श्रीलंका में इस्लामिक कट्टरपंथ और आतंकवाद की घटनाओं में बढ़ोतरी देखने को मिली है। इसका एक उदाहरण हमें तब देखने को मिला जब वर्ष 2016 में 32 श्रीलंकाई मुस्लिम आतंकी संगठन आईएसआईएस में शामिल हो गये थे। इसके अलावा वर्ष 2015 में भारतीय जांच एजेंसी एनआईए द्वारा दो श्रीलंकाई मुस्लिमों को हिरासत में लिया गया था, जिन्हें श्रीलंका में मौजूद पाकिस्तानी हाईकमीशन द्वारा दक्षिण भारत में धमाके करने के लिए भेजा गया था।
इन सब घटनाओं के बाद अब यह तो साफ हो गया है कि श्रीलंका के मुसलमानों में आज जो कट्टरवाद का जहर फैलता जा रहा है, उसमें पाकिस्तान का भी बहुत बड़ा हाथ है। ऐसे में ये कहना गलत भी नहीं होगा कि कहीं न कहीं श्रीलंका में हुए ईस्टर बम धमाकों के पीछे भी पाकिस्तान से संबंधित लोगों का भी हाथ है। अब श्रीलंका को खुद भी यह सोचने की जरूरत है कि एक आतंकवादी देश पाकिस्तान का साथ छोडकर उसे भारत जैसे सहायक देश के साथ मिलकर काम करने की आवश्यकता है।