2014 इलैक्शन के रिजल्ट्स आते ही एक वर्ग था जिनके घरो और दुकानों में मातम पसर गया था, ये और कोई नहीं बल्कि मीडिया और बुद्धिजीवियों का वो नेक्सस था जिनके सबसे पसंदीदा टार्गेट भाजपा के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार और देश के मौजूदा प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र दामोदरदास मोदी थे।
ये नेक्सस 2002 में हुए गुजरात दंगो से लेकर 2013 तक लगातार प्रधानमंत्री मोदी को अपना निशाना बनाता रहा और प्रधानमंत्री मोदी चुनाव पे चुनाव जीतते रहे। इसी नेक्सस ने उनकी प्रधानमंत्री पद की दावेदारी पर सवाल उठाया, उन्हें हत्यारा बताया, उनकी डिग्री से लेकर उनकी पत्नी के साथ उनके संबंधों तक हर चीज़ को प्राइम टाइम बहस का मुद्दा बनाया गया लेकिन वो नरेंद्र मोदी को हराने में नाकामयाब रहे थे। फिर जब मोदी जी प्रधानमंत्री बनें तो इंटॉलरेंस और अवार्ड वापसी जैसी नौटंकी को हवा भी इसी नेक्सस ने दी थी। लेकिन वो नाकामयाब रहे और प्रधानमंत्री मोदी दिनों दिन देश के विकास में एक नये आयाम जोड़ते गये। इसके बाद इस मीडिया वर्ग को लगने लगा कि पीएम मोदी को उनसे कोई फर्क नहीं पड़ता और यही वजह है कि वो इस मीडिया वर्ग को कोई भाव भी नहीं देते हैं उनसे बात नहीं करते, उन्हें विदेश यात्रा मे नहीं ले जाते और तो और प्रैस कॉन्फ्रेंस भी नहीं करते।
प्रेस राजनेता और जनता के बीच का एक चैनल, एक माध्यम है लेकिन जब माध्यम में ही दोष हो और वो बातों को बिना तोड़-मोड़ किये, बिना मिलावट के और बिना मिर्च मसाला लगाए पेश ही नहीं कर सकता तो ऐसे माध्यम की कोई अवशक्यकता नहीं है। और मोदी जी ने भी वही किया, माध्यम को बीच से उखाड़ फेंका। इसके बाद उन्होंने रेडियो और सोशल मीडिया से सीधा जनता के साथ संपर्क स्थापित किया । अब मीडिया वालो को फिर से मिर्च लगी, तनाव और अवसाद मे वे फेक न्यूज़ चलाने लगे जिससे आधों की नौकरी गयी और जो बचे वो महत्वहीन होकर रह गए।
हालांकि प्रधानमंत्री मोदी ने समय-समय पर मीडिया के भी जुड़े हैं लेकिन मोदी विरोधी मीडिया के साथ एक भी नहीं, जो ना सिर्फ तार्किक है बल्कि स्वाभाविक भी है। ऐसे मे मोदी जी ने एबीपी न्यूज़ के साथ भी एक जुड़े और इंटरव्यू के लिए गये लेकिन एबीपी न्यूज़ ने जो किया वो पत्रकारिता के मुंह पर एक धब्बा है।
देश के प्रधानमंत्री के साक्षात्कार का एक हिस्सा काटना खास कर के वो हिस्सा जिसमे प्रधानमंत्री मीडिया से कुछ कड़े सवाल पूछ रहे हैं, कहां तक उचित है?
जब मीडिया को प्रधानमंत्री के इंटरव्यू नहीं मिलते तो वो चीख पुकार मचाती है और जब मिलते हैं तो उनके साथ छेड़ छाड़ करके जनता तक आधी अधूरी बात पहुंचाती है। अब आप ही बताइये जिस देश की मीडिया ऐसी हो क्या वहां प्रधानमंत्री को उनसे बात करनी चाहिए? खास कर के उस प्रधानमंत्री को जो सीधे स्वयं जनता से बात करने मे सक्षम हो।