जबसे प्रियंका गांधी वाड्रा ने सक्रिय राजनीति में कदम रखा है कांग्रेस पार्टी हो या मीडिया सभी उन्हें कांग्रेस के लिए इस लोकसभा चुनाव में ट्रम्प कार्ड की तरह पेश कर रहे हैं। अटकलें तो यहां तक लगाई जा रहीं हैं कि उन्हें वाराणसी लोकसभा सीट से पीएम मोदी के खिलाफ खड़ा किया जा सकता है। जब उनके पति रोबर्ट वाड्रा तक ने इसके संकेत दिए तो इस बात को और जोर मिलने लगा कि अब प्रियंका गांधी वाड्रा पीएम मोदी के खिलाफ मैदान में उतरने वाली हैं। हालांकि, सच्चाई यह है कि कांग्रेस इस वक्त प्रियंका वाड्रा को चुनावी मैदान में उतारने का जोखिम लेने की स्थिति में बिल्कुल नहीं है। खुद कांग्रेस पार्टी का एक खेमा उनके चुनाव लड़ने के पक्ष में नहीं है क्योंकि उन्हें डर है कि ‘अगर’ प्रियंका गांधी पीएम मोदी से बड़े फासले से हारती हैं तो यह कांग्रेस पार्टी के लिए घातक साबित होगा।
एक बात तो साफ है कि अगर प्रियंका वाड्रा पीएम मोदी के खिलाफ चुनाव लड़ने का फैसला लेती हैं, तो उनका हारना तय है। वाराणसी में महागठबंधन का उम्मीदवार भी पीएम मोदी के खिलाफ पड़ने वाली कुछ वोटों का एक बड़ा हिस्सा अपने पाले में करने की कोशिश करेगा। ऐसे में अगर कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी की बहन भी यहां से चुनाव लड़ने का जोखिम उठातीं हैं, तो उनके बुरी तरह से हारने के अनुमान बढ़ जाएंगे। पिछले लोकसभा चुनावों की बात करें तो पीएम मोदी को कुल पड़ी वोटों का लगभग 56 प्रतिशत मत हासिल हुआ था, जबकि बाकी की 44 प्रतिशत वोट विपक्षी उम्मीदवारों को मिले थे। अबकी बार यह माना जा रहा है कि पीएम मोदी पहले के मुक़ाबले ज़्यादा अंतर से चुनाव जीतकर आ सकते हैं, यानि पीएम मोदी के विरोधियों के लिए पहले के मुक़ाबले अब कम वोटबैंक बचेगा, ऐसे में अगर वाराणसी से प्रियंका वाड्रा चुनाव लड़ने का फैसला लेती हैं, तो इस बात के आसार बेहद ज़्यादा हैं कि उनको एक करारी शिकस्त का सामना करना पड़े।
हालांकि, प्रियंका गांधी की इस हार का कांग्रेस पार्टी पर बेहद जोरदार असर पड़ सकता है। प्रियंका गांधी के पॉलिटिकल करियर पर भी इसका नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा। राहुल गांधी की नेतृत्व क्षमता को लेकर पहले ही पार्टी के अंदर से आवाज़ें उठ रही हैं, और प्रियंका वाड्रा को गांधी परिवार से होने की वजह से उनको कांग्रेस पार्टी में नंबर 2 की हैसियत से देखा जा रहा है। पिछले काफी समय से कांग्रेस भी उन्हें लाइमलाइट में रखने की कोशिश करती रही है। अब अगर प्रियंका गांधी की छवि को नुकसान पहुंचता है, तो आने वाले अलग-अलग राज्यों के विधानसभा चुनावों में कांग्रेस के पास कोई प्रभावशाली चेहरा ही नहीं बचेगा।
आपको बता दें कि इसी वर्ष जनवरी में प्रियंका वाड्रा को पार्टी में राष्ट्रीय सचिव के तौर पर नियुक्त किया गया था। उन्हें पार्टी के कार्यकर्ताओं के आत्मविश्वास को बढ़ाने के लिए पार्टी में लाया गया था, लेकिन उनके अब तक के रिपोर्ट कार्ड पर यदि नज़र डालकर देखें तो हमें कुछ खास देखने को नहीं मिलता। उनके पार्टी में आने के बाद भी पार्टी के कई कद्दावर नेताओं ने पार्टी का साथ छोड़ दिया है। प्रियंका गांधी की कमजोर होती छवि पहले ही कांग्रेस पार्टी में गांधी परिवार के प्रभाव को कम करने का काम कर चुकी है। अब अगर भविष्य में प्रियंका वाड्रा की छवि को और कोई बड़ा नुकसान पहुंचता है, तो यह सिर्फ कांग्रेस के लिए नहीं, बल्कि कांग्रेस में गांधी परिवार के प्रभाव के लिए भी एक बड़ी चुनौती खड़ा कर सकता है।