कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष राहुल गांधी का केरल की वायनाड सीट से लड़ना अब तय हो गया है । ऐसा पहली बार हो रहा है कि राहुल गांधी अपनी परंपरागत सीट अमेठी के अलावा किसी अन्य सीट से भी लड़ रहे हैं । माना जा रहा है कि अमेठी में अबकि बार उन्हे केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी से कड़ी टक्कर मिल रही है, जिसकी वजह से अब उन्होंने दक्षिण भारत में अपने लिए एक ‘सुरक्षित सीट’ खोजी है। लेकिन ऐसा पहली बार नहीं है जब कांग्रेस पार्टी के किसी बड़े नेता ने अपनी जीत को लेकर आशंकित होने के बाद दक्षिण भारत की तरफ रुख किया हो ।
इससे पहले साल 1999 में कर्नाटक की बेल्लारी सीट से सोनिया गांधी ने चुनाव लड़ा था, जिन्होंने भाजपा नेता सुषमा स्वराज को हराया था। सोनिया गांधी वर्ष 1999 में अमेठी और बेल्लारी सीट से चुनाव लड़ चुकी हैं और उन्होंने दोनों ही सीटों पर जीत हासिल की थी लेकिन बाद में उन्होंने अपने पास अमेठी सीट को रखा और बेल्लारी सीट को छोड़ दिया । इसके अलावा साल 1978 में कर्नाटक की ही चिकमंगलूर सीट से इंदिरा गांधी भी चुनाव लड़ चुकी हैं। आपातकाल के बाद उन्हें वर्ष 1977 के चुनावों में रायबरेली से हार का मुंह देखना पड़ा था लेकिन वर्ष 1978 में चिकमंगलूर में हुए उप-चुनावों में वे जीत पाने में कामयाब हुई थी।
हालांकि, ध्यान देने योग्य बात यहां यह भी है कि जब भी कांग्रेस पार्टी के बड़े नेता को अपनी जीत मिलना मुश्किल दिखाई देती है तो वह दक्षिण भारत की तरफ रुख करते हैं। लेकिन जब उनको अपनी परंपरागत सीट पर जीत मिल जाती है तो वे दक्षिण भारत की अपनी सीट के विकास की परवाह किए बिना उसे अन्य उम्मीदवार के लिए छोड़ देते है । वर्ष 1999 में सोनिया गांधी ने बिल्कुल यही काम किया था । कांग्रेस के ये बड़े नेता दक्षिण भारत में तो अपनी जीत को लेकर आश्वस्त रहते हैं। हर बार दक्षिण भारत की जनता ने उन्हे खुश जो किया है । आपातकाल के बाद जब पूरे देश में इन्दिरा गांधी के विरोध में लहर थी तो भी वे चिकमंगलूर सीट से जीतने में कामयाब हो गई थीं।
अब राहुल गांधी, इन्दिरा गांधी और सोनिया गांधी के बाद कांग्रेस परिवार से तीसरे ऐसे नेता होंगे जो दो सीटों पर चुनाव लड़ेंगे। वे बेशक अपने चुनाव लड़ने का कारण उनकी दक्षिण भारत में कथित लोकप्रियता को बता रहे हों लेकिन यह बात खुद कांग्रेस के नेता भी जानते हैं कि अबकि बार उनका अमेठी की सीट से जीतना बेहद मुश्किल है। वर्ष 2017 में सम्पन्न विधानसभा चुनावों की बात करें तो कांग्रेस का अमेठी में कुल आलम ये था कि अमेठी लोकसभा सीट के तहत आने वाली तिलोई, जगदीशपुर, अमेठी और गौरीगंज सीटों के अलावा रायबरेली ज़ोन की सलोन सीट भी अमेठी निर्वाचन क्षेत्र में आती है । इन पाँच सीटों में से 4 सीटें भाजपा के खाते में गई थी तो एक सीट बसपा के खाते में गई थी । यानी कॉंग्रेस के गढ़ में कांग्रेस को ही एक सीट नहीं मिली । अब यह साफ है कि काँग्रेस अध्यक्ष हार के डर से दक्षिण भारत में गए हैं और हमें इसमें जरा भी हैरानी नहीं होगी अगर वे अमेठी से जीतते हैं तो उसके बाद वे दक्षिण भारत की वायनाड सीट को छोड़ दें।