उत्तर प्रदेश का फिरोजाबाद वैसे तो अपनी चूड़ियों के लिए मशहूर है इसलिए इसे ‘सुहागनगरी’ भी कहा जाता है लेकिन इन लोकसभा चुनावो में ये सियासत का अखाड़ा सा बनता नज़र आ रहा है। 2019 लोकसभा चुनाव में इस सीट को सपा प्रमुख अखिलेश यादव और उनके नाराज़ चाचा शिवपाल सिंह यादव के बीच चुनावी महासंगराम के तौर पर देखा जा रहा है।
उत्तर प्रदेश में सपा-बसपा-रालोद के गठबंधन ने इस बार भी राज्य सभा सांसद रामगोपाल यादव के बेटे ‘अक्षय यादव’ को टिकट दिया है। साल 2014 में भी अक्षय यादव यहां से एक बार जीत चुके हैं। पिछले लोकसभा चुनाव में 48.4% वोट के साथ अक्षय पहले तो 38% वोट के साथ भाजपा दूसरे स्थान पर थी। ऐसे में इस बार भारतीय जनता पार्टी यादव वोट बैंक के विभाजन का बखूबी फायदा उठाना चाहेगी।
हालांकि, इस बार के लोकसभा चुनाव में समाजावादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी के कार्यकर्ता भाजपा को रोकने के लिये एड़ी चोड़ी का जोर लगाए हुए हैं। जिसके लिए उन्होंने गठबंधन का हथियार भी तैयार किया है। ऐसे में गठबंधन उम्मीदवार के लिये जीत की राह इतनी आसान नहीं है क्योंकि सपा से अलग होकर अपनी अलग पार्टी प्रगतिशील समाजवादी पार्टी (लोहिया) बनाने वाले शिवपाल यादव को यहां खेल बदलने वाले उम्मीदवार के तौर पर देखा जा रहा है। अपनी संगठनिक क्षमता के लिये पहचाने जाने वाले शिवपाल यहां गठबंधन का खेल बिगाड़ सकते हैं।
बता दें कि अब फिरोजाबाद सीट से शिवपाल यादव चुनाव लड़ने के लिए कमर कस चुके हैं और इसी सीट से सपा-बसपा-रालोद गठबंधन ने रामगोपाल यादव के बेटे अक्षय को इस सीट से अपना उम्मीदवार बनाया है। ऐसे में स्थिति को भांपते हुए है भारतीय जनता पार्टी ने आयुर्वेदिक चिकित्सक चन्द्र सेन जादोन को टिकट दिया है। एक सीट पर यादव परिवार के दो उम्मीदवारों के खड़े होने से तय है कि यहां का यादव मतदाता आधार बंटने वाला है और इसका सीधा फायदा भारतीय जनता पार्टी को भी होगा। फिरोजाबाद में 17.85 लाख से ज्यादा मतदाता हैं लेकिन इस सीट पर किसी भी पार्टी की जीत में मुस्लिम, जाट और यादव वोटरों बड़ी भूमिका निभा सकते।
वहीं अगर साल 2017 में हुए विधानसभा चुनाव पर एक नजर डालें तो फिरोजाबाद सीट के अंतर्गत आने वाली कुल 5 विधानसभा सीटें में से बीजेपी ने चार सीटों पर कब्जा किया था। इसका मतलब साफ़ है कि फिरोजाबाद में बीजेपी साल 2014 के बाद से अपनी स्थिति को मजबूत करने में कामयाब रही है।
फिर भी इस सीट पर जीत के इतिहास को देखें तो उसे देखकर ये सुनिश्चित करना थोडा मुश्किल हो जायेगा कि आखिर किस पार्टी का पलड़ा भारी है। भारतीय जनता पार्टी इस सीट से जीत की हेट्रिक लगा चुकी है. साल 1991 के बाद से वो इस सीट पर तीन बार जीत दर्ज कर चुकी है जबकि सपा नेता रामजी लाल सुमन जीत चुके हैं. वहीं साल 2014 में समाजवादी पार्टी नेता रामगोपाल यादव के बेटे अक्षय यादव ने यहां से बड़ी जीत हासिल की थी। वहीं बीजेपी दूसरे स्थान पर थी। अब यादव परिवार बंट चुका है ऐसे में ये कहना गलत नहीं होगा कि अभी इस सीट पर बीजेपी सबसे मजबूत नज़र आ रही है और उसपर से यादव परिवार कि आपस की ये दूरी बीजेपी का काम और भी आसान करती नज़र आती है।