लोकसभा चुनाव के परिणाम घोषित हो चुके हैं, और उसी के साथ भाजपा युक्त एनडीए गठबंधन ने प्रचंड बहुमत के साथ 352 सीटों पर विजय प्राप्त की है। सभी समीकरणों को झुठलाते हुये एनडीए गठबंधन ने पीएम मोदी के नेतृत्व में एक बार फिर सत्ता हासिल करने में सफलता प्राप्त की है, और साथ ही साथ, वंशवादी राजनेताओं को भी सत्ता से बाहर निकालने में काफी सफलता प्राप्त की है।
लेकिन इस विजय ने कई ऐसे विपक्षी दिग्गजों को भी चौंका दिया है, जिनके हारने की उम्मीद किसी ने भी नहीं की थी। इन्ही में कुछ प्रमुख नाम है मल्लिकार्जुन खड्गे, दिग्विजय सिंह, एचडी देवेगौड़ा इत्यादि। लेकिन जिस एक दिग्गज की हार ने सभी को हैरान करने पर मजबूर किया है, वो है कांग्रेस नेता और ग्वालियर के सिंधिया राजवंश के वंशज, ज्योतिरादित्य सिंधिया।
ज्योतिरादित्य सिंधिया गुना लोकसभा क्षेत्र से कई बार सांसद रह चुके हैं। स्वतन्त्रता के बाद से यह सीट सिंधिया खानदान का गढ़ रहा है, और 2002 से इस सीट पर उनका कब्जा भी रहा है। इस चुनाव में ना केवल उन्हे पराजय मिली, बल्कि वे करीब 1.25 लाख से ज़्यादा मतों के अंतर से हारे। दिलचस्प बात तो यह है की उन्हे हराने वाला कोई नहीं, बल्कि उनका खुद का प्रशंसक और एक समय पर अशोकनगर जिले में उनके सांसद प्रतिनिधि रह चुके डॉ. कृष्णपाल सिंह यादव है, जो अब भारतीय जनता पार्टी का हिस्सा हैं।
अशोकनगर जिले से ताल्लुक रखने वाले और पेशे से आयुर्वेदिक डॉक्टर कृष्णपाल सिंह यादव के परिवार का सिंधिया खानदान से काफी पुराना नाता रहा है। इनके पिताजी दिवंगत नेता माधवराव सिंधिया के खास माने जाते थे, जिसके नाते सिंधिया खानदान से इनका मेलजोल बहुत अच्छा था। डॉ. कृष्णपाल ज्योतिरादित्य सिंधिया को अपना आराध्य मानते थे, और उनके लिए वे अपना सबकुछ दांव पर लगाने के लिए भी तैयार थे।
पर वक़्त ने भी अलग ही खेल खेला। 2018 में जब मुंगावली विधानसभा सीट से काँग्रेस की टिकट पर डॉ. कृष्णपाल ने चुनाव लड़ने की इच्छा जताई, तो ज्योतिरादित्य सिंधिया ने उसे सिरे से खारिज कर दिया। यहीं पर डॉ. कृष्णपाल ने आत्मसम्मान को सर्वोपरि रखते हुए ना केवल कांग्रेस छोड़ी, बल्कि ज्योतिरादित्य सिंधिया को उन्ही के क्षेत्र में हराने का संकल्प भी लिया। जिस तरह राहुल गांधी द्वारा अपमानित होने पर हिमंता बिस्वा शर्मा ने कांग्रेस को असम से ही उखाड़ फेंका, उसी प्रकार इस अपमानजनक व्यवहार ने डॉ. कृष्णपाल सिंह यादव को ज्योतिरादित्य सिंधिया के खिलाफ उन्ही के गढ़ में जीत हासिल करने के लिए प्रेरित किया।
डॉ. कृष्णपाल सिंह यादव ने भाजपा की सदस्यता ग्रहण की और मध्य प्रदेश के विधानसभा चुनाव में वे चुनावी मैदान में उतरे, जहां वे कांग्रेस के उम्मीदवार से महज 2000 मतों से हार गए। लेकिन इसके बावजूद ना इन्होंने हौसला छोड़ा, और ना ही भाजपा ने इनके ऊपर से अपना विश्वास हटाया। लोकसभा चुनाव की घोषणा होते ही डॉ. कृष्णपाल को ज्योतिरादित्य सिंधिया के विरुद्ध गुना में उतारने का निर्णय लिया।
हालांकि डॉ. कृष्णपाल की संसद तक यात्रा इतनी भी आसान नहीं थी। दिल्ली में गौतम गंभीर और भोपाल में साध्वी प्रज्ञा की तरह इन्हे भी अपने विपक्षी प्रतिद्वंधियों के समर्थकों की ज़बरदस्त छींटाकशी का सामना करना पड़ा। हालांकि, विपक्ष द्वारा उनको बदनाम करने की तमाम कोशिशों के बावजूद ना केवल डॉ. कृष्णपाल सिंह यादव के संघर्ष को जनता ने सराहा, बल्कि उन्हे सिर आँखों पे बिठाते हुये उन्हे अपने सांसद के तौर पर नियुक्त भी किया। हम आशा करते हैं की डॉ. कृष्णपाल सिंह यादव के संघर्षों से सभी को सीख मिले, और वंशवाद रूपी विषबेल को जड़ से उखाड़ फेंकने में इनकी विजय हमें आगे भी प्रेरित करती रहे।