मध्यप्रदेश में कांग्रेस की कमलनाथ सरकार ने तानाशाही की सारी हदें ही पार कर दी है। सूबे के मुख्यमंत्री कमलनाथ ने एक ऐसा पत्र जारी किया है जिसके अनुसार अब राज्य में कांग्रेस कार्यकर्ता तय करेंगे कि कौन सरकारी कर्मचारी ईमानदार है व कौन बेईमान। स्पष्ट है कि कांग्रेसी इस तरह उन सब कर्मचारियों के नाम मुख्यमंत्री को सौंप देंगे जो उनके पक्ष में काम नहीं करते और इस तरह राज्य के तमाम सरकारी कर्मचारियों पर उनका दबाव बन जाएगा।
दरअसल, कमलनाथ ने प्रदेश की जिला कांग्रेस कमेटियों के अध्यक्षों और पार्टी के लोकसभा प्रत्याशियों को एक पत्र लिखा है। इस पत्र में उन्होंने लिखा, ‘‘चुनाव आयोग के निर्देश हैं कि चुनाव निष्पक्ष हों। आप सूचित करें कि जिन अधिकारियों तथा कर्मचारियों ने चुनाव में निष्पक्षता नहीं रखी और लापरवाही बरती है, उनके नाम, पद व विभाग की जानकारी प्रमाण सहित मध्य प्रदेश कांग्रेस कमेटी, भोपाल को प्रेषित करें।’’ इस तरह कमलनाथ ने कांग्रेस कार्यकर्ताओं से सरकारी कर्मचारियों के चुनाव के दौरान कामकाज और रवैये का सर्टिफिकेट मांगा है।
अब भारतीय जनता पार्टी इस खत को लेकर काफी आक्रामक हो गई है। उसने इसे आचार संहिता का खुला उल्लंघन बताया है। बीजेपी का कहना है कि कमलनाथ ने यह पत्र लिखकर सीधे सीधे जनता को धमकाने का काम किया है और इससे जनता परेशान होगी। पत्र पर आपत्ति जताते हुए मध्य प्रदेश भाजपा प्रवक्ता रजनीश अग्रवाल ने कहा, ‘‘यह आचार संहिता का खुल्लम खुल्ला उल्लंघन है। स्वतंत्र एवं निष्पक्ष चुनाव कराना चुनाव आयोग की जिम्मेदारी है। लेकिन, मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री अधिकारियों पर अपनी पार्टी (कांग्रेस) के पक्ष में काम करने के लिए दबाव बनाने की कोशिश रहे हैं। आश्चर्य की बात है कि वह कांग्रेस कार्यकर्ताओं से ऐसा ब्योरा मांग रहे हैं।’’ भारतीय जनता पार्टी अब इस पत्र के विरोध में चुनाव आयोग जाने की तैयारी कर रही है।
ऐसा कहा जा रहा है कि, विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की जीत के बाद अब मध्य प्रदेश में शासकीय कर्मचारियों का भविष्य दांव पर है। लोकसभा चुनावों के बाद सूबे में शासकीय कर्मचारियों पर गाज गिर सकती है। ऐसा बताया जा रहा है कि, भाजपा समर्थक अधिकारी-कमर्चारियों पर कांग्रेस की पैनी नजर है। दरअसल, बात यह है कि, मध्य प्रदेश में 15 सालों के बाद सत्ता में आई कांग्रेस को सूबे के शासकीय अधिकारी-कर्मचारियों पर भरोसा नहीं है। कांग्रेस यह आरोप लगाती रही है कि अधिकारी-कर्मचारी भाजपा की मानसिकता से काम कर रहे हैं। जबकि बताया जाता है कि, सत्ता में आते ही कांग्रेस सरकार ने सूबे में सैंकड़ों तबादले कर अपने हिसाब से जमीनी जमावट की थी, लेकिन अब चुनावी समय में एक बार फिर सरकारी कर्मचारियों पर दबाव बनाया जा रहा है।
मध्यप्रदेश में सरकारी कर्मचारियों के खिलाफ कमलानाथ की गंदी सोच वहां विधानसभा चुनावों से पहले ही जगजाहिर हो गई थी। अपने चुनावी प्रचार में ही कमलनाथ ने सूबे के सरकारी कर्मचारी पर तगड़ा दबाव बनाने का काम किया था। विधानसभा चुनाव से पहले कमलनाथ ने आरोप लगाया था कि, राज्य में कुछ सरकारी कर्मचारियों का भाजपा से गुप्त लगाव है। इसके बाद उन्होंने चेतावनी दी थी कि, उनकी पार्टी के सत्ता में आने पर इन लोगों को कोपभाजन बनने के लिए तैयार रहना चाहिए। उनका आरोप था कि, मध्यप्रदेश में कुछ सरकारी अधिकारी 15 साल से शासन कर रही भाजपा का समर्थन कर रहे हैं। विधानसभा चुनावों के दौरान एक रैली में उन्होंने कहा, “कमलनाथ की चक्की चलती है देर से, पर बहुत बारीक पीसती है।” यही नहीं, कांग्रेस ने अपने वचन पत्र में भी कहा था कि वे सत्ता में आते ही सरकारी कर्मचारियों के संघ की शाखाओं में शामिल होने पर रोक लगाएंगे।
अब जब कमलाथ सरकार में आ गए हैं तो अब उन्होंने कांग्रेस कार्यकर्ताओं को ही एक तरह से सरकारी कर्मचारियों का सुपरवाइजर नियुक्त कर दिया है जो बेहद शर्मनाक और तानाशाही कदम है।