देश में क्रांतिकारी राजनीतिक विश्लेषकों की भरमार है। जब देश के राजनीतिक मुद्दों पर अपने विचार रखने की बात आती है, तो कुछ डिज़ाइनर पत्रकार हमेशा अपनी क्रांतिकारी लेखनी से अपना एजेंडा चलाने का अवसर ढूंढ लेते हैं। वरिष्ठ पत्रकार शेखर गुप्ता का नाम भी ऐसे ही डिज़ाइनर पत्रकारों में शुमार है। वर्ष 2014 के चुनावों से पहले जब भाजपा ने उत्तर प्रदेश का प्रभार गुजरात से भाजपा नेता अमित शाह को दिया था तो शेखर गुप्ता ने इसे भाजपा की सबसे बड़ी गलती बताया था। हालांकि, बाद में जब अमित शाह के नेतृत्व में भाजपा राज्य की 71 सीटों पर जीत दर्ज़ करने में सफल हो गई, तो शेखर गुप्ता ने बड़ी ही चालाकी से इस मुद्दे पर अपनी चुप्पी साध ली।
वर्ष 2013 में इंडियन एक्स्प्रेस के एक आर्टिकल में शेखर गुप्ता ने अमित शाह को भाजपा द्वारा उत्तर प्रदेश के प्रभारी बनाए जाने पर अपनी पीड़ा जाहिर की। उन्होंने लिखा ‘पीएम मोदी अपने आप को अपने इतिहास से जोड़कर नहीं देखना चाहते, उन्होंने पिछले कुछ सालों से विकास और औद्योगीकरण पर अपना फोकस रखा है। ऐसे में विवादित छवि वाले अमित शाह को राष्ट्रीय राजनीति में धकेलकर भाजपा ने बहुत बड़ी गलती की है। भाजपा द्वारा उत्तर प्रदेश की कमान अमित शाह के हाथों में दिये जाने से कांग्रेस, सपा और बसपा जैसी सेकुलर पार्टियों को 2002 के गुजरात दंगो को लेकर पीएम मोदी पर हमला बोलने का एक सुनहरा अवसर मिल जाएगा’।
शेखर गुप्ता ने अपने इस विश्लेषण के माध्यम से अपना प्रोपेगैंडा फैलाने की भरपूर कोशिश की। हालांकि, जब 2014 के लोकसभा चुनावों के नतीजे सामने आए तो उसने इस पूरे वामपंथी गैंग को चौंका दिया था। अमित शाह के नेतृत्व में भाजपा उत्तर प्रदेश की 80 लोकसभा सीटों में से 71 सीटों पर अपना पताका लहराने में सफल रही। ये संख्या कांग्रेस को कुल मिली सीटों की संख्या 44 से ज़्यादा थी।
अपने उसी आर्टिकल में शेखर गुप्ता ने अमित शाह के राजनीतिक ज्ञान पर भी सवाल उठाया था। उन्होंने लिखा था ‘भाजपा के नेता और प्रवक्ता यह दावा करते हैं कि अमित शाह को राजनीतिक समीकरणों और विश्लेषण को समझने में महारत हासिल है, जिसके कारण उन्हें उत्तर प्रदेश का प्रभार दिया गया है। यह सरासर मज़ाक है। अगर राजनीतिक समीकरणों को समझना चुनाव जीतने के लिए काफी होता तो आम आदमी पार्टी को तो पूरी हिन्दी बेल्ट पर अपना कब्जा कर लेना चाहिए, क्योंकि राजनीतिक विश्लेषण करने में अमित शाह, आम आदमी पार्टी के नेता योगेन्द्र यादव के सामने कहीं नहीं टिकते’।
यानि यहां शेखर गुप्ता अमित शाह और योगेन्द्र यादव के राजनीतिक ज्ञान की तुलना करते हुए अमित शाह को उनसे कमतर बता रहे थे। हालांकि, आज सच्चाई यह है कि योगेन्द्र यादव राजनीति के मैदान में क्लीन बोल्ड होकर वापस पत्रकारिता के पेशे में घुस गए हैं जबकि अमित शाह आज दुनिया की सबसे बड़ी राजनीतिक पार्टी की अध्यक्षता कर रहे हैं। वर्ष 2014 में चुनावी नतीजे आने के बाद से उन्हें पार्टी द्वारा राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाया गया था, और तभी से वे पार्टी की अध्यक्षता कर रहे हैं। उनके कुशल नेतृत्व का ही यह नतीजा है कि आज भाजपा अपने इतिहास के सबसे स्वर्णिम दौर से गुजर रही है। आज देश के 17 राज्यों में भाजपा के नेतृत्व वाले एनडीए की सरकार है। उनके अध्यक्ष बनाए जाने के बाद भाजपा पूर्वोतर भारत के साथ-साथ अन्य इलाकों पर भी एक के बाद एक जीत हासिल करने में सफल हुई है। इसके अलावा इस बार के चुनावों में भी भाजपा की बेहद मजबूत स्थिति मानी जा रही है।
शेखर गुप्ता जैसे क्रांतिकारी पत्रकार मीडिया के उसी वर्ग का एक हिस्सा है जो हमेशा अपनी खबरों के सहारे देश के लोगों पर अपनी विकृत मानसिकता थोपने में लगा रहता है। मीडिया का यह वर्ग अपने तथ्यहीन चुनावी विश्लेषणों के माध्यम से अपने एजेंडे को आगे बढ़ाने की कोशिश करता रहता है। शेखर गुप्ता का यह आर्टिकल भी इसी का एक उदाहरण था। जिन अमित शाह को शेखर गुप्ता भाजपा के लिए मुसीबत साबित करने में लगे थे, बाद मे चलकर वे भाजपा के लिए तुरुप का इक्का साबित हुआ। हमें लगता है कि शेखर गुप्ता को अमित शाह के राजनीतिक ज्ञान पर सवाल उठाने की बजाय अपने राजनीतिक ज्ञान को दुरुस्त करने की तरफ ध्यान देना चाहिए।