आयुष्मान खुराना एक बेहतरीन कलाकार है। आज जब हर नया अभिनेता हीरो बनना चाहता है, आयुष्मान एक ऐसे कलाकार हैं जो अभिनेता बनना चाहते हैं। एक अच्छे अभिनेता होने के साथ-साथ आयुष्मान एक गजब के गायक भी हैं और उनके गाये कई गाने chartbusters रहे हैं।
रियलिटी टीवी से अपना करीयर शुरू करने वाले आयुष्मान एक सफल ऐंकर भी रहे हैं और उन्होंने वर्ष 2012 में सुनहरे पर्दे पर अपना शानदार डेब्यू किया था। ‘स्पर्म डोनेशन’ जैसे संवेदनशील मुद्दे पर बनी फिल्म ‘विकी डोनर’ में उनके किरदार की सबने बहुत प्रशंसा की थी। फिल्म भी बॉक्स ऑफिस पर सफल रही, इसी फिल्म में गाया उनका गाना “पानी दा रंग वेख के”, ब्लॉकबस्टर हुआ था। इस फिल्म के लिए उन्हें the Filmfare Award for Best Male Debut का अवार्ड भी मिला था। चाहे हो एक बेमेल जोड़े पर बनी फिल्म ‘दम लगा के हईशा’ हो या फिर शुभ मंगल सावधान, ‘बरेली की बर्फी’ जैसी कॉमेडी फिल्म हो या ‘बधाई हो’ जैसी पारिवारिक ड्रामा, सभी फिल्मों में उनके काम को बहुत सराहा गया। फिर 2018 में आई उनकी फिल्म ‘अंधाधुन’ जिनमें उनके काम को क्रिटिक्स से लेकर दर्शकों तक सबने खूब सराहा।
आयुष्मान बॉलीवुड में अपना मक़ाम बना चुके हैं, वो ऐसे मोड़ पर हैं जहां उन्हें डायरेक्टर्स के पास जाने की ज़रूरत नहीं हैं। ऐसे में वो चाहे तो किसी भी फिल्म को ना कर सकते हैं और इसलिए “आर्टिकल 15” जैसी फिल्म में उन्हें काम करने से पहले सोचना चाहिये था। आर्टिकल 15 एक एजेंडावादी फिल्म है जो समाज के एक वर्ग को अपमानित करने के उद्देश्य से बनी है। इस फिल्म के डायरेक्टर अनुभव सिन्हा एक निम्न स्तर के डायरेक्टर हैं जिनकी झोली में तुम बिन को छोड़ कर कोई और अच्छी फिल्म नहीं हैं। उन्होंने कैश, रा.वन और दस जैसी महान मूर्खतापूर्ण फिल्में बनाई हैं जो किसी भी बुद्धिमान व्यक्ति को मंदबुद्धि बनाने का माद्दा रखती हैं। अनुराग कश्यप की एजेंडावादी फिल्मों से प्रेरणा लेते हुए सिन्हा ने लिबरलपंथ की पराकाष्ठा पार करने वाली फिल्म मुल्क बनाई, जिसके घटिया मैसेज की जहां चारो ओर निंदा हुई वहीं, फिल्म बॉक्स ऑफिस पर भी औंधे मुंह गिरी। आयुष्मान को समझना चाहिए कि फिल्में या तो मनोरंजन के लिए बनाई जानी चाहिए या समाज को सशक्त संदेश देने के लिए। बदायूं कांड का मज़ाक उड़ाती और अगड़ी जातियों की निंदा करती इस फिल्म की जितनी बुराई की जाये वो कम है।
इस देश की जनता भावुक है और यहां कलाकारों की ब्रांडिंग बहुत जल्दी होती है। अगर इस देश का सिनेप्रेमी आयुष्मान खुराना से नफरत करने लगा तो इसमें नुकसान ही नुकसान है। जहां आयुष्मान का एक फलता फूलता करियर बर्बाद हो सकता है वहीं, सिनेप्रेमियों को भी एक अच्छे अदाकार से हाथ धोना पड़ेगा। स्वस्थ मनोरंजन और आयुष्मान खुराना के प्रशंसक होने के नाते मैं तो यही कह सकता हूँ की आयुष्मान को आर्टिकल 15 सरीखी एजेंडावादी फिल्मों से बचना चाहिए।