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भारत के इस राज्य को समाजवाद ने कहीं का नहीं छोड़ा, इसे अब चाहिए एक भाजपाई मुख्यमंत्री

Ashish Pandey द्वारा Ashish Pandey
6 June 2019
in मत
बिहार भाजपा नितीश

PC: Twitter

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2019 लोकसभा चुनाव में पीएम मोदी के चेहरे के साथ पूरे देश में भगवा लहर छा गया। इसमें कई राज्य ऐसे राज्य शामिल हैं जहां क्षेत्रीय पार्टियों का सफाया ही हो गया और सभी सीटों पर भाजपा को जीत हासिल हुई। दरअसल, हम बात कर रहे हैं ‘बिहार’ की जहां पर एनडीए ने 40 में से 39 सीटें जीतकर ऐतिहासिक जीत हासिल की। भाजपा ने राज्य की लगभग सभी सीट पर बड़ी जीत हासिल की जोकि सिर्फ और सिर्फ प्रधानमंत्री मोदी की वजह से संभव हो सका। भाजपा को बस एक ही सीट पर हार का सामना करना पड़ा और वह है किशनगंज  जहां पर मुस्लिम आबादी अधिक है। इस बड़ी जीत से यह साफ जाहिर होता है कि, जनता ने जातिवाद के मुद्दे को किनारा कर राष्ट्रवाद के मुद्दे पर वोट दिये।

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राज्य में भाजपा को मिली इस महाविजय के साथ ही नितीश कुमार की लोकप्रियता में भी सेंध लगती नजर आई है, ऐसे में यह कहना गलत नहीं होगा कि अब आने वाले समय में बिहार में एक बड़ा तख्तापलट देखने मिल सकता है। गौरतलब है कि अब जब सीएम नितीश की कुर्सी खतरे में आएगी तो जाहिर है अगला सीएम भाजपा का ही कोई बड़ा चहरा हो सकता है। बात करें नितीश कुमार की तो वो  साल 2005-2010 तक सीएम पद पर बने रहे इसके बाद फिर से साल 2010 में सीएम पद पर आसीन हुए, यह कार्यकाल मई 2014 तक चला। दरअसल, नीतीश कुमार ने राज्य में हुए 2014 के विधानसभा चुनाव में हार के बाद सीएम पद से इस्तीफा दे दिया था जिसके बाद उन्होंने अपनी कुर्सी ‘जीतन राम मांझी’ को सौंप दी। आपको बता दें कि, नितीश ने 2014 में नरेंद्र मोदी को भाजपा की तरफ से प्रधानमंत्री का चहरा बनाए जाने के ऐलान के बाद भाजपा से गठबंधन तोड़कर अकेले ही चुनावी मैदान में जाने का फैसला किया था जिसके बाद उनको करारा झटका लगा। हालांकि, यह कोई नई बात नहीं है, नितीश का यह अवसरवादी व्यवहार और रवैया इससे पहले भी देखने को मिला है। साल 2015 में बिहार विधानसभा चुनाव में एक बार फिर जीत हासिल कर वह सीएम बने, इसमें नितीश ने लालू यादव की राजद का साथ लिया था। यहां पर एक बार फिर नितीश का अवसरवादी व्यवहार देखने को मिला जब उन्होंने लालू यादव के साथ गठबंधन किया जो कभी उनके धुर विरोधी रहे थे। सीएम बनने के कुछ समय बाद एक बार फिर नितीश ने गठबंधन तोड़ने के फैसला किया और फिर एनडीए के साथ जुड़ गए। 2014 से पहले जहां नितीश ने नरेंद्र मोदी को पीएम कैंडीडेट ऐलान किए जाने के बाद अलग हुए थे फिर उनके प्रधानमंत्री बनते ही वापस एनडीए का सहारा लेने आ पहुंचे। नितीश के इस राजनीतिक लालच को देखते हुए उनका नाम ‘दल बदलू’ पड़ गया, लेकिन मोदी का सहारा लेकर वह अपनी छवि सुधारने में सफल रहे और अपनी छवि सुसाशन बाबू के तौर पर स्थापित की। लेकिन बतौर सीएम रहते हुए नितीश ने राज्य के विकास के लिए कोई काम नहीं किया।

लगातार 13 साल तक बिहार पर राज करने के बाद भी नितीश देशभर में बिहार की छवि को सुधारने में सफल नहीं हुए और बिहार की गिनती देश के सबसे खराब राज्यों में ही होती रही। नितीश कुमार ने समाजवादी नेता जय प्रकाश नारायण’ से समाजवाद सीखा और इस चीज को उन्होंने अपनी राजनीति में हमेशा बनाये रखा। अपने कार्यकाल के दौरान केंद्र द्वारा की जा रही आर्थिक मदद का पैसा भी वह राज्य के विकास में न लगाकर लोगों को बांटने में खर्च करते रहे।

 

जैसा की आप इस सरकारी आंकड़ों को देख सकते हैं कि बिहार सरकार की कुल आमदनी 1लाख 81 हजार 255 करोड़ थी जिसमें से सिर्फ 31 हजार करोड़ रुपये बिहार सरकार ने राज्य के करदाताओं से जमा किये थे।  जबकि अगर देश के बड़े राज्य और आर्थिक तौर पर सबसे मजबूत माने जाने वाले महाराष्ट्र की बात करें तो वहां आधे से ज्यादा आमदनी राज्य सरकार द्वारा खुद इक्कठा किया गया। फाइनेंशियल ईयर 2019 की बात करें तो बिहार की जीडीपी 5.15 लाख करोड़ थी और इसके साथ ही बिहार देश के सभी राज्यों की सूची में जीडीपी के मामले में 15वें स्थान पर था। वहीं जनसंख्या के मामले में बात करें तो बिहार तीसरे स्थान पर है। वहीं एक मजेदार आंकड़ा आपको बताए तो देश का हर व्यक्ति एक बिहारी के मुक़ाबले तीन गुना अधिक कमाई करता है।

इसके इतर बिहार की दुर्दशा की अगर बात करें तो राज्य की अधिक आबादी गरीबी रेखा नीचे है। साल 2013 में जारी हुए एक आंकड़े के मुताबिक, राज्य की 33.74 फीसद आबादी गरीबी रेखा के नीचे है, यानी भारत की कुल जनसंख्या के अनुरूप बिहार की एक तिहाई से अधिक जनसंख्या गरीबी से जूझ रही है। बता दें कि, बिहार की ज़्यादातर आबादी कृषि पर ही निर्भर है क्योंकि राज्य की लचर कानून व्यवस्था की वजह से बड़ी कंपनियां और इंडस्ट्रीज स्थापित नहीं की जाती हैं। वहीं अगर हम बिहार के मुख्यमंत्री नितीश कुमार और मध्यप्र देश के पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के प्रदर्शन पर नजर डालें तो यह साफ जाहिर होता है कि अगर राज्य की कमान संभालने वाला अच्छी रणनीति के साथ चले तो वह अपने राज्य को एक नए आयाम पर ले जा सकता है। शिवराज सिंह चौहान ने जिस तरह से अपनी खास रणनीति और कामों से राज्य को बदला उसकी वजह से उनको पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी द्वारा अवार्ड से सम्मानित किया गया था। यह सम्मान उनको राज्य के इन्फ्रास्ट्रक्चर, मेडिकल, टूरिज़म के क्षेत्र में बदलाव लाने के लिए दिया गया था। अगर बात करें दोनों मुख्यमंत्रियों के कार्यकाल की तो दोनों का सफर 2005 से ही शुरू हुआ था और शिवराज सिंह चौहान ने भी 13 साल तक प्रदेश में राज किया जबकि नितीश कुमार आज भी बिहार के मुख्यमंत्री पद पर बने हुए हैं। दोनों राज्यों की अगर जीडीपी की तुलना करें तो बिहार के 5.15 लाख करोड़ के मुक़ाबले मध्य प्रदेश की जीडीपी 8.26 लाख करोड़ है। ऐसे में बिहार की जीडीपी के मुक़ाबले मध्य प्रदेश 60 फीसदी ज्यादा है।

अब दोनों राज्यों के मुखिया यानि कि शिवराज और नीतीश कुमार के बतौर सीएम रहते हुए कार्यकाल की तुलना करें बिहार की स्थिति लाचार ही रही वहीं मध्य प्रदेश में बड़ा बदलाव देखने को मिला। नितीश ने जहां राज्य के कुछ विशेष वर्ग के लोगों को लाभ पहुँचाने का काम किया, वहीं शिवराज ने राज्य को विकास की एक नई दिशा देने का काम किया।

तो 2019 लोकसभा के नतीजों के आने के बाद यह तो साफ हो गया कि पीएम मोदी के आगे जनता ने किसी को भी ध्यान में नहीं रखा। बिहार से सभी क्षेत्रीय पार्टियों का सफाया हो गया और जनता ने पूरे प्रदेश में भगवा लहराने का काम किया। यह साफ संकेत देता है कि, अब आने वाले समय में बिहार की जनता अब भाजपा के मुख्यमंत्री की जरूरत है जो राज्य को नई दिशा दे सके।

Tags: नितीश कुमारबिहार
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