जब प्रधानमंत्री मोदी ने 57 अन्य सांसदों के साथ 30 मई को नए केन्द्रीय मंत्रिमंडल के मुखिया के तौर पर शपथ ली, तो उनके शपथ ग्रहण समारोह में सम्मिलित होने के लिए लोगों का हुजूम लग गया। जहां की देश की तमाम हस्तियां इस भव्य समारोह में हिस्सा लेने के लिए पहुंची, तो वहीं कुछ विपक्षी नेताओं ने अपनी संकीर्ण राजनीति का परिचय देते हुए इस शपथ ग्रहण समारोह से दूरी बनाए रखी।
हालांकि, एक वर्ग ऐसा भी था, जिसकी अनुपस्थिति ने कई राजनीतिक विशेषज्ञों और समारोह में मौजूद कई लोगों को हैरत में डाल दिया। यह वर्ग था जेडीयू और उनके नितीश कुमार का, जिन्होंने पीएम मोदी और उनके नए मंत्रिमंडल के शपथ ग्रहण समारोह में हिस्सा नहीं लिया। सूत्रों की माने, तो नितीश बाबू इस बात से नाराज़ हैं, कि उन्हें पीएम मोदी के नए मंत्रिमंडल में उनके ‘कद अनुसार’ प्रतिनिधित्व नहीं मिला। भाजपा ने वही ऑफर दिया जो अन्य दलों के समक्ष रखा था जबकि बिहार में नितीश कुमार की पकड़ बीते वर्षों में कमजोर हुई है
पर सच्चाई तो कुछ और ही है। नितीश कुमार को भाजपा ने 1 मंत्रालय देने की पेशकश की थी लेकिन नितीश कुमार ने ऑफर ठुकरा दिये। जबकि एनडीए के अन्य घटक दलों ने जो भी ऑफर मिला उसे स्वीकार कर लिया।
इतना ही नहीं, नितीश कुमार ने तो पीएम मोदी को प्रधानमंत्री का पद मिलने की शुभकामनाएं भी नहीं दी। अब इतनी बेरुखी तो मोदी जी के सबसे कट्टर शत्रुओं ने भी नहीं दिखाई थी। बात तो यहां तक पहुंच गयी कि अपनी इफ्तार पार्टी में नितीश कुमार ने भाजपा नेताओं को निमंत्रण तक नहीं भेजा जबकि हिंदुस्तान अवाम मोर्चा के मुखिया और पूर्व मुख्यमंत्री जितन राम मांझी उनकी पार्टी का हिस्सा बने।
ऐसे में अब ये कयास लगाए जा रहे हैं कि कहीं नितीश कुमार 2014 की तरह एक बार फिर अपनी बात से पलटने तो नहीं वाले? यदि ये सच है, तो भाजपा को जदयू के साथ किसी प्रकार का गठबंधन अब नहीं रखना चाहिए या यूं कहें भाजपा को अब जेडीयू के साथ गठबंधन को ही खत्म कर देना चाहिए.. इसके कुछ प्रमुख कारण हैं और वो कारण कौनसे हैं उसपर एक नजर डाल लेते हैं–
नितीश कुमार किसी के सगे नहीं है..
‘ऐसा कोई नहीं जिसे नितीश कुमार ने ठगा नहीं’ .. ये पंक्तियां नितीश कुमार को लेकर राजनीतिक गलियारों में मशहूर है और इसके पीछे की बड़ी वजह है नितीश कुमार का सत्ता पर खतरा मंडराने पर गिरगिट की तरह रंग बदलने और सत्ता को बनाये रखने की उनकी भूख।
यदि कोई भारत का राजनीतिक इतिहास ठीक से पढ़ा हो, तो उसे पता चल जाएगा की नितीश कुमार पलटने में कितने उस्ताद हैं। एक समय पर लालू यादव के खास माने जाने वाले नितीश कुमार 1995 के बाद एनडीए से जुड़ गए। कई वर्षों बाद जब इनके लाख विरोध के बावजूद नरेंद्र मोदी को एनडीए का प्रधानमंत्री उम्मीदवार बनाया गया, तो उन्होंने एनडीए से संबंध तोड़ते हुए राजद से एक बार फिर अपने संबंध मजबूत किए। अपने स्वार्थ के लिए नितीश कुमार कब अपने सहयोगी पार्टी को धोखा दें इसपर कुछ भी कहा नहीं जा सकता। हां, ये जरुर है कि वो भरोसे लायक नहीं है। इसी स्वभाव को लेकर राष्ट्रीय लोक समता पार्टी के अध्यक्ष उपेंद्र कुशवाहा ने मौजूदा भाजपा सरकार को आगाह भी किया और भाजपा को धोखा नंबर 2 के लिए तैयार रहने की सलाह दी।
वास्तव में नीतीश कुमार जनादेश का अपमान करने के लिए जाने जाते हैं। जनता के जनादेश और .. गठबंधन के सहयोगियों को धोखा देना उनकी पुरानी आदत है। इस बार भी कुछ ऐसा होता हुआ नजर आ रहा है. एक तरफ तो उन्होंने मंत्रिमंडल में शामिल होने के ऑफर को ठुकराया दूसरी तरफ उनका कहना है कि वो मजबूती के साथ भाजपा के साथ खड़े हैं। अब वो ऐसा कहें भी क्यों ..भाजपा के बिना राज्य में उनकी पार्टी कहां खड़ी है इस बात को वो अच्छी तरह से समझते हैं। ऐसे में भाजपा को नितीश कुमार के इस रुख को नजरअंदाज नहीं करना चाहिए।
बिहार की राजनीति में अलग-थलग पड़ जायेगा जेडीयू
जेडीयू के पास बीजेपी के साथ रहने के अलावा कोई दूसरा विकल्प नहीं बचा है। यदि वो अकेले चुनाव लड़ने की सोचते हैं तो बिहार में उन्हें आरजेडी-कांग्रेस और बीजेपी दोनों के खिलाफ लड़ना होगा ऐसे में उनके हिस्से में बहुत कम ही सीटें जायेंगी। इस बार के लोकसभा चुनाव में भाजपा का प्रदर्शन काफी अच्छा रहा है जबकि जेडीयू को जो भी सीटें मिली है वो भाजपा के साथ गठबंधन की वजह से हुआ है। बिहार में नितीश कुमार अब पहले की तरह लोकप्रिय भी नहीं रहे हैं और अगर वो एक अच्छे सहयोगी की तलाश में हैं यो दुर्भाग्यवश..वो अपनी सभी लाइफलाइन पहले ही खत्म कर चुके हैं। नितीश कुमार ने दल-बदल करने की अपनी नीति से एक बुरी छवि स्थापित की है और यही कारण है कि राजद के तेजस्वी यादव ने नितीश कुमार के लिए सभी दरवाजे पहले ही हमेशा के लिए बंद कर दिए थे। तेजस्वी यादव ने कहा था कि, भविष्य में उनका कभी भी आरजेडी या आरजेडी के नेतृत्व वाले गठबंधन में कोई जगह नहीं होगी। उन्होंने ये भी कहा था कि, नितीश कुमार ने हमेशा विश्वासघात किया है।
स्पष्ट है कि राजद के आलाकमान पिछली बार की अपनी बेइज्जती को बिलकुल नहीं भूले हैं। यदि इस बार नितीश बाबू एनडीए से नाता तोड़ते हैं, तो इस बार राजद या कांग्रेस में से कोई भी उन्हें बचाने के लिए आगे नहीं आएगा। ऐसे में 2020 में बिहार विधानसभा चुनाव त्रिकोणीय मुक़ाबले में परिवर्तित हो जाएगा, जिसका फायदा सबसे ज़्यादा भाजपा को ही मिलेगा।
बिहार में भाजपा का मजबूत जनाधार
यदि इस बार नितीश कुमार भी अपने रंग बदलते हैं, तो त्रिकोणीय मुक़ाबला होने के नाते भाजपा को पिछली बार के मुक़ाबले इस बार ज़्यादा फायदा होगा। शायद नितीश बाबू यह भूल गए हैं कि इस बार लोकसभा चुनाव में जदयू भाजपा की लोकप्रिय छवि के कारण ही राज्य में 16 सीट अर्जित कर पायी थी। पिछली भाजपा से अलग चुनाव लड़ने पर जदयू को केवल 4 सीट ही प्राप्त हुई थी। वहीं, 2015 में बिहार विधानसभा चुनाव में इसके वोट शेयर में 5.81% की गिरावट आयी थी। जेडीयू का वोट शेयर सिर्फ 16.8 फीसदी था और आरजेडी के साथ गठबंधन में 71 सीटें जीती थीं वहीं बीजेपी ने अपने दम पर 53 ऐसे सीटें जीती थीं। 2015 में बिहार विधानसभा चुनावों में बीजेपी का वोट शेयर 24.4% के कुल वोट शेयर के साथ 7.9 4% बढ़ गया। ऐसे में ये स्पष्ट है कि जेडीयू पार्टी अकेले चुनाव जीतने में सक्षम नहीं है। ऐसे में भाजपा को जेडीयू के साथ बने रहने की कोई मज़बूरी नजर नहीं आती। जिस तरह से बीते वर्षों में अपनी योजनाओं और काम के दम पर भाजपा ने बिहार में अपनी पकड़ मजबूत की है वो किसी से छुपा भी नहीं और अगर वो अगले वर्ष होने वाले विधानसभा चुनाव में अकेले जाती है तो भाजपा अपने दम पर बिहार में पहली बार सरकार बनाने में सफल हो सकती है।
आखिर में हम उम्मीद करते हैं किनितीश बाबू को सद्बुद्धि मिले और वे भाजपा के साथ अपनी गलतफहमियों को दूर करते हुये एनडीए को और शक्तिशाली बनाए। लेकिन यदि वे ऐसा करने में असफल रहे, तो इस बार उन्हें हाशिये पर जाने से कोई नहीं बचा पाएगा, महागठबंधन भी नहीं।