हर किसी ने इस समस्या को सिर्फ देखा, सीएम खट्टर ने आते ही इसे जड़ से उखाड़कर फेंक दिया

PC: LiveMint

पीएम मोदी की जो कार्यशैली है, उसके अनुरूप जिन भी राज्यों में भाजपा की सरकार है, वहां पर भी प्रदेश की कमान संभालने वाले सीएम ठीक वैसे ही काम करते हैं। ऐसे में अगर हम हरियाणा के सीएम मनोहर लाल खट्टर और यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ द्वारा किए गए कामों की तुलना करें तो वह एकदम एक-दूसरे के समान मालूम पड़ते हैं। जिस तरह योगी आदित्यनाथ उत्तर प्रदेश जैसे राज्य से अपराध को खत्म करने के लिए लगातार काम कर रहे हैं, ठीक वैसे ही हरियाणा में सीएम खट्टर लोगों को रोजगार दिलाने, सरकारी विभागों से भ्रष्टाचार मिटाने और भर्तियों में पारदर्शिता लाने के लिए काम करते रहे हैं और अपने कार्यकाल में उन्होने इस मामले में रिकॉर्ड भी स्थापित किए हैं।

कभी अपराध और गुंडागर्दी में अव्वल रहे उत्तरप्रदेश को जिस तरह से योगी आदित्यनाथ ने सीएम पद संभालने के बाद अपराध मुक्त करने की दिशा में काम किया, ठीक उसी तरह से सीएम मनोहर लाल खट्टर ने हरियाणा में सरकारी विभागों में नौकरियों में हो रहे घोटालों को सुधारने का काम किया है। सीएम खट्टर ने राज्य में सरकारी नौकरी का सपना देख रहे युवाओं को साकार करने के लिए विभागों से भ्रष्टाचार खत्म कर नौकरी उपलब्ध कराये जाने के रास्ते को आसान किया। अगर आंकड़ों पर नजर डालें तो साल 2016 में सीएम खट्टर ने यह ऐलान किया था कि उनकी सरकार हर वर्ष युवाओं को 10 हजार से अधिक नौकरियां उपलब्ध कराने की दिशा में काम करेंगी। साथ ही उन्होने बताया था कि, सरकार ने नौकरियों में होने वाले घोटाले को पूरी तरह से खत्म करने का प्रयास किया और जो अधिकारी या कर्मचारी घोटालेबाजी में लिप्त थे, उनके खिलाफ सख्त कारवाई की गई।

साल 2015 में खट्टर सरकार ने सरकारी नौकरियों के लिए मानक तय किए जिसमे युवाओं को इंटरव्यू में 12 अंक और रिटन एग्जाम में 88 अंक रखे गए। हरियाणा स्टाफ सिलेक्शन कमेटी की सेकेंड और थर्ड क्लास की भर्तियों के लिए इन अंको के आधार पर ही छात्रों कि मेरिट तैयार की जा रही है। बताया जाता है कि, इस नियम के लागू किए जाने से पहले इंटरव्यू के लिए 20 से 40 अंक लाने होते थे जिसकी वजह से कुछ छात्र इसमे पास नहीं हो पाते थे, और कई प्रभावशाली लोगों को इंटरव्यू के पूरे नंबर दे दिये जाते थे। वहीं साल 2017 में सीएम खट्टर ने युवाओं को हरियाणा सरकार में 2 लाख नौकरियां देने का वादा किया। जाहिर है इससे पहले सीएम खट्टर की राज्य में एक बेदाग छवि वाले नेता की बन चुकी थी जिनका एक बड़ा उद्देश्य प्रदेश सरकार की नौकरियों में होने वाले गड़बड़ी और भ्रष्टाचार को रोकना था। खट्टर सरकार ने सरकारी नौकरियों की चयन प्रक्रिया में पारदर्शिता लाने के साथ ही राज्य सरकार में कार्यरत अध्यापकों को भी खास सुविधाएं मुहैया कराई जिससे वह अपने ट्रांसफर और पोस्टिंग संबंधी समस्याओं को हल करवाने के लिए अधिकारियों से बात कर सकें। यही नहीं सीएम मनोहर लाल खट्टर के कार्यकाल में अलग-अलग सरकारी विभागों में नौकरियों की संख्या में बढ़त के साथ ही हर साल अधिक संख्या में युवाओं को रोजगार के अवसर दिये गए। आंकड़ों पर नजर डालें तो साल 1999 से लेकर 2005 के बीच राष्ट्रीय लोकदल के द्वारा सिर्फ 5591 नौकरी मुहैया कराई गई।

2005 से 2009 के कांग्रेस कार्यकाल में 18,020 नौकरियां उपलब्ध कराई गई, वहीं दोबारा फिर भूपेन्द्र सिंह हुड्डा सत्ता में आए तो तब सरकारी विभागों में भर्तियों का आंकड़ा बढ़कर 44,302 पहुंच गया। लेकिन जब राज्य में मनोहर लाल खट्टर की सरकार आई तो उन्होने पिछली सरकारों के सभी रिकॉर्ड तोड़ते हुए अपने 4.5 साल के कार्यकाल में 54,197 पदों पर भर्ती मुहैया कराई हैं जो बेहद सराहनीय है। बड़ी संख्या में भर्ती उपलब्ध कराने के साथ ही नौकरी की चयन प्रक्रिया में पारदर्शिता को भी खासा ध्यान में रखा गया है।

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ऐसे में चुनावों से पहले भाजपा और मनोहर लाल खट्टर ने जिस भ्रष्टाचार-मुक्त हरियाणा का वादा किया था, उसपर पर वह बिलकुल खरे उतरे और वादों के अनुसार राज्य में सरकारी नौकरियों की भर्ती में पारदर्शिता लाने के साथ ही विभागों में होने वाले घोटालों को भी रोकने की दिशा में काम किया। इसके अलावा खट्टर सरकार इस साल होने वाले विधानसभा चुनाव से पहले ज्यादा से ज्यादा भर्तियाँ निकालने की योजना बना चुकी है। सीएम खट्टर ने सरकारी विभाग को पूरी तरह से भ्रष्टाचार-मुक्त करने के साथ ही यह साबित किया है कि उन्होंने पीएम मोदी की ‘ना खाऊँगा और ना खाने दूंगा’ की नीति का पूरी तरह अनुसरण किया है।  

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