लगता है कांग्रेस ने 2019 के लोकसभा चुनाव में मिली अप्रत्याशित हार से आखिरकार सबक ले ही लिया है। तभी तो इस बार अपनी रीति से इतर चलते हुए कांग्रेस ने घोषणा की है कि इस बार राष्ट्रीय स्तर पर इफ्तार का कोई आयोजन नहीं होगा। हालांकि राज्य स्तर पर इफ्तार आयोजन जारी रहेंगे।
कांग्रेस के अल्पसंख्यक सेल के अध्यक्ष नदीम जावेद ने इस बात की पुष्टि करते हुए कहा, ‘कोई इफ्तार राष्ट्रीय स्तर पर आयोजित नहीं किया जा रहा है। हालांकि राज्य स्तर पर इन पार्टियों के आयोजन की स्वीकृति मिली है।‘
एक वरिष्ठ पार्टी नेता की माने तो पिछले साल की भांति इस बार भी कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी भव्य इफ्तार पार्टी के आयोजन के लिए तैयार थे लेकिन हार के बाद इफ्तार पार्टी कैंसिल हो गयी। बता दें कि पिछले साल कांग्रेस अध्यक्ष बनने के बाद जब राहुल गांधी ने इफ्तार पार्टी का आयोजन किया था तब उन्होंने महागठबंधन का शक्तिप्रदर्शन भी किया था.. लेकिन इस बार लोकसभा चुनाव में कांग्रेस की हार के बाद राहुल गांधी ने इस आयोजन से ही हाथ पीछे खींच लिए।
इस लोकसभा चुनाव में लगभग सभी पार्टियों ने खुलेआम अल्पसंख्यकों से भाजपा को वोट न देने की अपील की थी। बसपा सुप्रीमो मायावती ने तो यहां तक कह दिया था की ‘यदि अल्पसंख्यक वोट बंटते है तो भाजपा को सीधा फायदा होगा, और ऐसा वो होने नहीं देगी। ये अलग बात है कि मायावती के इस तुष्टिकरण की राजनीति के बाद चुनाव आयोग ने उनके चुनाव प्रचार पर 48 घंटे तक के लिए प्रतिबंध लगा दिया था।
शायद इन सेक्यूलर पार्टियों को ऐसा आत्मविश्वास शायद 2018 के तीन राज्यों के विधानसभा चुनावों से मिला होगा, जब कमलनाथ का अल्पसंख्यकों से वोट की अपील का एक वीडियो वायरल हुआ था और इसके बाद पार्टी ने तीनों राज्यों में सत्ता वापसी की थी। लेकिन इस बार यही पैंतरा कांग्रेस के लिए चुनाव में घातक साबित हुआ, और पिछली बार के मुकाबले इस बार उन्हें सिर्फ 8 सीट ही मिली।
यूं तो भारत एक धर्मनिरपेक्ष देश है, पर यहां के ‘सेक्यूलर’ राजनेताओं ने अपना उल्लू सीधा करने की चाह में जितना अल्पसंख्यक तुष्टीकरण को बढ़ावा दिया है, उतना शायद ही किसी अन्य विचारधारा के राजनेता ने किया है। ‘जय श्री राम’ का नारा लगाने पर भौं सिकोड़ने वाले और शिवजी पर दूध चढ़ाने को लेकर दुनिया भर का ज्ञान बांटने वाले ‘सेक्यूलर’ राजनेता एवं बुद्धिजीवियों का इफ्तार पार्टी से प्रेम किसी बॉलीवुड की रोमांटिक मसाला फिल्म से कम नहीं होता।
ऐसे में कांग्रेस का राष्ट्रीय स्तर पर इफ्तार पार्टी का आयोजन न करना कई लोगों को चौंका जरुर सकता है। हो भी क्यों न, जो पार्टी वर्षों से तुष्टीकरण की राजनीति में सबसे बड़ी एक्सपर्ट मानी जाती है, वो राष्ट्रीय स्तर पर इफ्तार कराने से मना कर देगी तो हैरानी होना लाजमी है ..खैर, लोकसभा चुनावों के नतीजों से इन सभी को को एक सीख जरुर लेनी चाहिए वो ये कि अब देश की जनता उनकी ‘सेक्यूलर’ राजनीति के झांसे में नहीं आने वाली है.