तृणमूल कांग्रेस के संजय झा, ममता बनर्जी के खासम खास, और लिबरल ब्रिगेड के आँखों के तारे, और राज दुलारे क्विज मास्टर डेरेक ओ ब्रायन 23 मई से गायब हैं [कम से कम ट्विट्टर पर तो हैं ही]। अपने मसखरेपन, और पलटकर जवाब देने के लिए विख्यात है …जो प्रधानमंत्री मोदी और भाजपा की भर्त्सना करने का कोई अवसर हाथ से नहीं जाने देते हो, वो 23 मई के बाद से ट्वीट तो छोड़िए, सार्वजनिक मंच पर उपस्थिति भी न दर्ज़ करे, तो सवाल तो उठेंगे ही। हमने भी जानने की कोशिश की आखिर अपने डेरेक भैया को क्या हुआ है, जो 23 मई के बाद से कहीं दिखाई ही नहीं दे रहे है।
जब मतगणना का दिन पास आ रहा था, तब डेरेक ओ ब्रायन एक्ज़िट पोल के आंकड़ों को झुठलाने का भरसक प्रयास कर रहे थे, और उन्हें पूरा विश्वास था कि भाजपा बंगाल में एक भी सीट अर्जित नहीं कर पाएगी। अब जो व्यक्ति आत्मविश्वास से इतना भरा हो, उसके नाक के नीचे से यदि भाजपा 18 सीट ले उड़े तो दुखी होना बनता ही है। ऐसे में कहीं हमारे डेरेक बाबू आत्ममंथन के लिए सभी से दूर एकांत में तो नहीं चले गये हैं। या उन्होंने टीएमसी का साथ छोड़ दिया है। गायब होने से पहले उनका आखरी ट्वीट कुछ ऐसा था –
This is what the @IndiaToday Axis Poll says on May 19 about seats in Bengal. Nice time to chill and take a Twitter break Catch up again on May 23 #ExitPoll2019 pic.twitter.com/9dhoMLQDAx
— Derek O'Brien | ডেরেক ও'ব্রায়েন (@derekobrienmp) May 19, 2019
ऐसे सवाल उठाना तो लाजमी है क्योंकि डेरेक ओ ब्रायन टीएमसी के स्टार प्रवक्ता थे, जिन्हें पार्टी हर बार टीवी पर होने वाले डिबेट और खास कार्यक्रमों के लिए उन्हें आगे करती थी। लेकिन अब तो वो किसी भी चैनल पर भी नहीं दिखाई देते। क्या ऐसा इसलिए है कि वे भाजपा की जीत को अब तक पचा नहीं पाए हैं, या वो इसलिए चुप हैं क्योंकि वो पश्चिम बंगाल में ममता के पतन का कारण नहीं बनना चाहते?
डेरेक ओ ब्रायन को हमेशा ईवीएम से शिकायत रही है लेकिन इस बार उन्होंने ऐसा कुछ नहीं किया है शायद इसलिए क्योंकि अब ऐसा कोई भी नहीं है जो ईवीएम पर इनके गोस्पेल्स को अपना समर्थन दे। अब तो बाकी विपक्षी पार्टी भी ईवीएम राग अलापने से बचती नजर आ रही हैं।
ऐसे में डेरेक बाबू एक बेतुके कारण के लिए लड़ने वाले अकेले योद्धा तो बिलकुल नहीं बनना चाहेंगे। ममता बनर्जी के समर्थन में ईवीएम पर आरोप लगाना तो काफी आसान रहा है, लेकिन अगर वे अब ऐसा कोई रिस्क लेते हैं, तो उन्हें डर है कि कहीं उनके सीमित ज्ञान की पोल न खुल जाये। ऐसे में शायद इन्हें उन्हें यही उचित लगा कि पार्टी के देखरेख ममता बनर्जी के गुंडों के हाथों में सौंप दी जाये, जो आज टीएमसी के अत्याचार के पर्याय बन चुके हैं। शायद उन्हें लगता है कि बीजेपी के प्रभाव को रोकने के लिए हिंसा ही इकलौता विकल्प बचा है, है न डेरेक बाबू?
बता दें कि मतगणना से पहले डेरेक ओ ब्रायन तो ठान के बैठे थे कि नरेंद्र मोदी की सत्तावापसी असंभव है। वे इस बात पर भी पूरी तरह आश्वस्त थे कि उनकी प्रियतम ममता दीदी ही देश की अगली प्रधानमंत्री होगी। उन्होंने तो पूरे आत्मविश्वास के साथ यह भी कह दिया कि भाजपा को बंगाल में एक भी सीट नहीं मिलेगी। ऐसे मैं आपके समक्ष डेरेक ओ ब्रायन के इस मुंगेरीलाल के हसीन सपने यूं ही व्यक्त नहीं कर रहा हूं। इसके पीछे की वजह को भी समझ लेते हूं.
कल्पना कीजिये की आपके पास तीन लक्ष्य है, और उन्हें प्राप्त करना जीवन मरण का प्रश्न बन चुका है, और आप उनमें से एक भी लक्ष्य न प्राप्त कर पाये, तो कैसा लगेगा? अपने डेरेक बाबू भी अभी स्थिति में है। ऐसे में हमें तो उनके प्रति सहानुभूति जतानी चाहिए, कि उनके सभी दावें गलत साबित हुए। अब जिनके मालिक ममता बनर्जी जैसे हो, तो उसे मुसीबतों का सामना तो करना पड़ेगा ही।
पर डेरेक ओ ब्रायन ऐसे समय पर गायब हुए हैं, जब ममता बनर्जी को उनकी सबसे ज़्यादा ज़रूरत है। हाल ही में बंगाल के डॉक्टरों द्वारा ममता के विरोध में चलाया गया अभियान अब एक देशव्यापी आंदोलन में परिवर्तित हो चुका है। स्पष्ट है कि अब उनकी तानाशाही और पार्टी के गुंडे अब राज्य में किसी भी प्रदर्शन को रोकने में सक्षम नहीं है। अगर उनकी सरकार और कानून व्यवस्था कोई भी दबंगई करते हैं या मौलिक अधिकारों का हनन करते हैं तो राज्य की जनता अब एकजुट होकर विरोध के लिए कमर कास चुकी है.
शायद डेरेक ओ ब्रायन को आभास हो चुका है कि ममता बनर्जी का अब किसी भी स्थिति में बचाव नहीं किया जा सकता। कोलकाता में उनके हालिया व्यवहार से यह बात तो साफ है कि उन्हें विपक्ष से कितना डर लग रहा है, जिससे उनकी तानाशाही रवैया भी जगज़ाहिर हो चुका है। ऐसे में शायद डेरेक बाबू ने इस डूबती नैया के साथ डूबने से बेहतर अपने लिए अलग रास्ता निकालना ही बेहतर समझा।