हमारे देश में हर साल एक्यूट एन्सेफलाइटिस सिंड्रोम (एईएस) के कारण सैकड़ों लोगो की जान जाती है । इस साल, सबसे ज्यादा प्रभावित राज्य बिहार है और यहां 1 से 10 साल की उम्र के बीच के 100 से अधिक बच्चों की अब तक मौत हो चुकी है। उत्तर बिहार के एक जिले मुजफ्फरपुर के श्रीकृष्ण मेडिकल कॉलेज और अस्पताल में 83 बच्चों की मौत हो गई तथा केजरीवाल अस्पताल में 17 और बच्चों की जान गयी। एसकेएमसीएच में अधीक्षक सुनील कुमार शाही ने कहा, “मुजफ्फरपुर में एक्यूट इंसेफेलाइटिस सिंड्रोम (एईएस) के कारण मौत की संख्या बढ़कर 100 हो गई है।”
एईएस एक वायरल बीमारी है और बुखार, ऐंठन और सिरदर्द इसके लक्षण है। ज्यादातर कम वजन वाले व कुपोषित बच्चे एईएस के कारण प्रभावित होते हैं तथा उचित समाये पर इलाज न मिलने के कारण उनकी मृत्यु हो जाती है।
उत्तरी बिहार और पूर्वी उत्तर प्रदेश में बच्चों की एईएस से मौत होना कोई नई बात नहीं है। ये क्षेत्र एईएस के कारण सबसे अधिक प्रभावित रहते है क्योंकि वहाँ की जलवायु परिस्थितियाँ हैं जिसके वज़ह से बच्चे एईएस से ग्रस्त होते हैं। 2012 में बिहार में एईएस के कारण 120 बच्चों की मौत हुई थी, 2013 में यह संख्या घटकर 39 हो गई, लेकिन 2014 में फिर से मौतों का आंकड़ा 90 हो गया। 2015 में फिर से यह संख्या घटकर 11 हो गई तथा 2016 में 4 हो गई, 2017 में यह संख्या बढ़कर 11 हो गई और 2018 में और घटकर 7 रह गई। लेकिन 2019 में मृत्यु कई गुना बढ़ गई और 100 से ऊपर पहुंच गई।
एईएस के कारण ज्यादातर मौतें मई, जून और जुलाई के महीने में होती हैं। साल के इन महीनो में कुपोषित बच्चों की रोग प्रतिरोधक क्षमता कम होती है तथा गलत खान पान के वज़ह एईएस की संभावना बढ़ जाती है।
नीतीश कुमार के लिए एईएस का उन्मूलन प्राथमिकता होनी चाहिए तथा उत्तर प्रदेश से उनको सबक सीखना चाहिए, जहां 2017 तक जापानी इंसेफेलाइटिस के कारण कई बच्चों की मौत होती थी। योगी आदित्यनाथ ने इसे मिशन की तरह लिया तथा समस्या को हल किया। 2017 में, गोरखपुर के बीआरडी अस्पताल में भर्ती कई बच्चों की मृत्यु हो गई थी और पूर्वी यूपी के 14 जिलों में कुल 500 से अधिक बच्चों की मौत हो गई थी।
नवनिर्वाचित योगी सरकार ने विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) और यूनिसेफ के साथ मिलकर एक्शन प्लान 2018 की शुरुआत की थी। एक्शन प्लान में जिलों में बड़े पैमाने पर टीकाकरण अभियान और स्वच्छता जागरूकता कार्यक्रम शामिल थे।
जिस क्षेत्र में मनुष्य सुअर बस्तियों के आस-पास रहते हैं, वहाँ जापानी इंसेफेलाइटिस के फैलने की अधिक संभावना होती है। इसलिए सरकार ने लोगों को सुअर बस्तियों से अलग रहने के लिए कहा था। अभिभावकों को चेताया गया कि वे बच्चों को बाहर न खेलने दें और मिट्टी के फर्श पर न सोने दें। परिवारों को इंडिया मार्क -2 पानी के पाइप का उपयोग करने तथा स्वच्छ पेयजल का ही उपयोग करने के लिए भी कहा गया था। उन्हें जापानी इंसेफेलाइटिस के लक्षणों के बारे में अवगत कराया गया और यदि कोई लक्षण दिखाई दे तो उन्हें एम्बुलेंस बुलाने को कहा गया।
जापानी इंसेफेलाइटिस के कारण उत्तर प्रदेश में दर्ज होने वाली मौतों की संख्या 2018 में 557 की तुलना में 2018 में घटकर लगभग एक तिहाई यानि 187 रह गई। 2017 में 3,817 की तुलना में 2017 में पंजीकृत मामले भी घटकर 2,043 रह गए। चालू वर्ष में, पूर्वी उत्तर प्रदेश के 14 जिलों में एईएस के केवल 35 मामले सामने आए हैं और कोई भी मौत दर्ज नहीं की गई है।
यूनिसेफ ने यूपी सरकार के प्रयासों की सराहना की थी और ट्वीट में लिखा था “दस्तक अभियान के तहत जापानी इंसेफेलाइटिस और एक्यूट इंसेफेलाइटिस सिंड्रोम के खिलाफ राज्य में हर बच्चे को टीकाकरण के लिए उत्तर प्रदेश को शुभकामनाएँ’!
A big shout out to #UttarPradesh for immunizing every child in the state against Japanese Encephalitis and Acute Encephalitis Syndrome under the #Dastak campaign! 👏#VaccinesWork for #DimagiBukharSeJung#EveryChildALIVE #WorldImmunizationWeek @CMOfficeUP @MoHFW_INDIA pic.twitter.com/4ww8aCdgOx
— UNICEF India (@UNICEFIndia) April 25, 2018
नीतीश कुमार को एईएस की समस्या को हल करने के बारे में योगी सरकार से सीखना चाहिए। यहां तक कि वे कुछ अधिकारियों के स्थानांतरण की मांग भी कर सकते हैं जिन्होंने उत्तर प्रदेश में इस समस्या को हल करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।