इस वर्ष 17 अप्रैल को यह खबर आई कि जेट एयरवेज ने अस्थायी तौर पर अपनी सभी उड़ानों को रद्द कर दिया है। यह खबर इस कंपनी में काम करने वाले हजारों लोगों के साथ-साथ इस कंपनी के साथ जुड़ाव महसूस करने वाले लाखों ग्राहकों के लिए किसी झटके से कम नहीं थी। वह इसलिए, क्योंकि यह कंपनी कभी इंडिगो एयरलाइंस के बाद भारत की सबसे बड़ी एयरलाइन कंपनी हुआ करती थी और वर्ष 2017 में इस कंपनी का कुल पैसेंजर मार्केट के 17.8% हिस्से पर कब्जा था। लेकिन इसके बाद कंपनी के कुछ बुरे फैसलों के कारण वर्ष 2019 आते-आते यह कंपनी 15 हज़ार करोड़ से ज़्यादा के कर्ज़ और रोजाना लगभग 21 करोड़ के घाटे के बोझ तले लड़खड़ाकर गिर गई। हालांकि, पिछले कुछ दिनों में कुछ ऐसी खबरें आई हैं जिसके बाद एक बार फिर लोगों में इस कंपनी के पुनर्जीवन को लेकर आशा जगी है।
दरअसल, कल यह खबर आई कि नेशनल कंपनी लॉ ट्रिब्यूनल ने दिवालिया कानून के तहत जेट एयरवेज के खिलाफ दिवालिया याचिका को स्वीकार कर लिया है। ट्रिब्यूनल ने यह तय किया कि इस कंपनी की दिवालिया प्रक्रिया को 90 दिनों के अंदर-अंदर निपटा लिया जाएगा। इस खबर के आने के बाद बॉम्बे स्टॉक एक्स्चेंज और नेशनल स्टॉक एक्स्चेंज पर कंपनी के शेयर में 122 प्रतिशत का भारी उछाल देखने को मिला। अब अगर इस केस का जल्द-जल्द निपटारा हो जाता है तो नए प्रबंधन के तहत हमें इस कंपनी का पुनर्जीवन देखने को मिल सकता है। इतिहास में इस कंपनी का रिकॉर्ड काफी अच्छा रहा है और लोगों के बीच यह एक ताकतवर ब्रांड के रूप में स्थापित हो चुका है। ऐसे में विशेषज्ञ भी इसी बात को मानते हैं कि इस कंपनी को पुनर्जीवित करना ही सभी के हित में रहेगा और सरकार को भी इसके लिए आगे आने की जरूरत है। लेकिन अगर सरकार इस कंपनी की सहायता के लिए सामने नहीं भी आती है, तो भी कोई अन्य निजी कंपनी इस कंपनी के प्रबंधन को अपने हाथों में लेकर जेट एयरवेज के पुनर्जीवन की दिशा में काम कर सकती है।
अभी सभी कर्जदाताओं और निवेशकों को इस बात की उम्मीद है कि कंपनी को नए निवेशक मिल सकते हैं ताकि उसके बाद कंपनी के संचालन को दोबारा शुरू किया जा सके। अभी जेट एयरवेज की रणनीतिक साझेदार एतिहाद एयरवेज जैसी निजी कंपनियां, टीपीजी कैपिटल और नेशन इनवेस्टमेंट एंड इनफ्रास्ट्रक्चर फ़ंड जैसी इक्विटि फर्म्स इस कंपनी का प्रबंधन संभालने के इच्छुक हैं।
कुछ महीनों पहले तक यह कंपनी हर दिन 600 फ्लाइट्स का संचालन करती थी। जेट एयरवेज के संस्थापक नरेश गोयल ने साल 1991 में एयर टैक्सी की शुरुआत की और नाम वही रखा, जेट एयरवेज। इसके दो साल बाद जब कंपनी ने चार जहाजों का बेड़ा बना लिया तो जेट एयरलाइन की पहली उड़ान शुरू हुई। इस तरह जेट के रूप में भारत को पहली संगठित एयरलाइन मिली।
जेट से पहले देश में हवाई यात्रा के लिए एक ही साधन था और वह थी सरकारी इंडियन एयरलाइंस। जेट के आने से लोगों को विकल्प तो मिला ही ढ़ेरों नई सुविधाएं भी मिली। धीरे-धीरे जेट एयरवेज देश के लाखों लोगों के दिलों में बसने लगी। वर्ल्ड क्लास सुविधाएं, अच्छी सर्विस और ग्राहकों के विश्वास के कारण इस एयरलाइन ने तेजी से उन्नती की। जेट की जेपी माइल्स स्कीम तो ग्राहकों की फेवरेट बन चुकी थी। जेपी (जेट प्रीविलेज) माइल्स एक तरह का रिवॉर्ड प्रोग्राम था। इस तरह साल 2002 आते-आते जेट ने घरेलू एयरलाइंस मार्केट में इंडियन एयरलाइंस को पीछे छोड़ दिया था।
जेट एयरवेज एविएशन सेक्टर में नए झंडे गाढ़ रही थी। इतनी सफलता के बावजूद गोयल की आगे बढ़ने की होड बढ़ती ही जा रही थी और इन्हीं महत्वकांक्षाओं के बीच उन्होंने एक ऐसा फैसला लिया जिसके बाद से जेट के उल्टे दिन शुरू हो गए।
नरेश गोयल जेट को अंतर्राष्ट्रीय उड़ान भरने वाली अकेली कंपनी के रूप में देखना चाहते थे। अपनी इस महत्वकांक्षा को पाने के लिए उन्होंने 2007 में एयर सहारा को 1,450 करोड़ रुपये में खरीद लिया। गोयल ने जब यह फैसला लिया था उस वक्त भी कुछ लोग इसे गोयल की एक बड़ी गलती के रूप में देख रहे थे और यह सच भी हुआ। एयर सहारा को खरीदकर जेट ने बैठे-बिठाए एक परेशानी मोल ले ली थी। धीरे-धीरे जेट की आर्थिक मुश्किलें बढ़ती गईं।
आर्थिक मुश्किलें बढ़ीं तो अक्टूबर 2008 में जेट को अपने 13 हजार कर्मचारियों में से 1,900 की छंटनी करने की नौबत तक आ गई थी। जुलाई 2012 आते-आते जेट एयरलाइन घरेलू मार्केट शेयर में इंडिगो से पिछड़ गई। इसके बाद नवंबर 2013 में यूएई की एतिहाद एयरलाइंस ने जेट का 24 पर्सेंट शेयर खरीद लिया जिससे गोयल के पास सिर्फ 51 पर्सेंट ही शेयर बचे। सहारा को खरीदने के बाद जेट में जो आर्थिक मुश्किलों का दौर शुरू हुआ था, वह बढ़ता ही जा रहा था। जेट को अपने पायलट्स को सैलरी देने तक के लाले पड़ने लगे। इस साल जनवरी में जब जेट ने बैंकों की ईएमआई नहीं भरी तो कंपनी की रेटिंग में काफी गिरावट आ गई। आखिरकार फंडिंग पाते रहने के लिए जेट को बैंकों को सबसे बड़ा शेयर होल्डर बनाने का फैसला लेना पड़ा। यही कारण था कि, बीती 15 फरवरी को जेट ने शेयरधारकों से 84 करोड़ डॉलर का बेलआउट पैकेज मांगा। अंत में जब जेट की नैया डूबने लगी तो 25 मार्च को नरेश गोयल ने जेट ऐयरवेज के बोर्ड से इस्तीफा दे दिया था।
अब अगर आईबीसी के नियमों के तहत नया प्रबंधन कुछ साहसी कदम उठाता है, तो हमें जेट एयरवेज के पुनर्जीवन को देखने का सुनहरा मौका मिल सकता है।