हाल ही में नवनिर्वाचित सांसदों ने संसद के लोकसभा के प्रतिनिधित्वों के तौर पर शपथ ली। सदन के प्रोटेम स्पीकर, यानि कार्यकारी अध्यक्ष होने के नाते सांसद वीरेंद्र कुमार खटिक ने नवनिर्वाचित सांसदों को सदन की शपथ दिलाई।
जहां कुछ लोगों ने हिन्दी में शपथ ली, तो कई लोगों ने अंग्रेज़ी, संस्कृत, मलयालम, उर्दू, तमिल भाषामें शपथ ली। हालांकि केरल से कांग्रेस सांसद कोडीकुन्नील सुरेश के शपथ ग्रहण समारोह ने सभी का ध्यान अपनी तरफ खींचा। पीएम मोदी के बाद शपथ लेने वाले के सुरेश ने अपनी शपथ हिन्दी भाषा में ली, जिसे अधिकांश लोकसभा के सदस्यों ने अपना समर्थन दिया, और स्वयं पीएम मोदी और वर्तमान रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने भी इसके समर्थन में अपनी मेज़ थपथपाई। स्वयं के.सुरेश ने पीएम मोदी के इस सराहनीय कदम का विनम्रतापूर्वक अभिवादन भी किया।
जो पार्टी दक्षिणी भारत की पार्टियों के साथ मिलकर हिन्दी भाषा का विरोध करती है, उसी पार्टी का सांसद यदि हिन्दी में शपथ लेता है, तो यह निस्संदेह एक प्रशंसनीय निर्णय है। परंतु के सुरेश के खुद के पार्टी में कई लोग उनके इस स्वभाव से बिलकुल भी प्रसन्न नहीं थे, विशेषकर पार्टी अध्यक्ष सोनिया गांधी तो बिलकुल भी नहीं।
जैसे ही के सुरेश ने अपना स्थान ग्रहण किया, उन्होंने तुरंत के.सुरेश को अपने पास बुलाकर उनसे ऐसा निर्णय लेने का कारण पूछा। इतना ही नहीं, उन्हें कथित तौर पर मलयालम में शपथ न लेने के लिए डांटा भी और बाकी सांसदों को या तो अंग्रेज़ी में या फिर मलयालम में शपथ लेने का आदेश जारी किया। इसकी पुष्टि करते हुए के सुरेश ने कहा, ‘सोनिया जी ने मुझसे पूछा की मैंने हिन्दी में शपथ क्यों ली? पिछली बार मैंने अंग्रेज़ी में शपथ ली थी, इसलिए इस बार मैंने हिन्दी में शपथ ली थी।‘
इस मामले के सामने आने से सोनिया गांधी की हिंदी भाषा के प्रति घृणा खुलकर सामने आ गयी है। यदि उनका राजनीतिक इतिहास पलटकर देखा जाये, तो यह पहली बार नहीं हुआ है जब सोनिया गांधी ने भारतीय संस्कृति या हिन्दी भाषा का ऐसा अपमान किया हो। ‘हिंदू आतंकवाद’ को यूपीए शासनकाल में जो बढ़ावा मिला था सोनिया गांधी की भागीदारी कम नहीं थी. हमेशा ही हिंदी भाषी लोगों के प्रति उनका रवैया हमेशा ही पक्षपाती रहा है. और अब तो हिंदी भाषा के प्रति उनकी नफरत भी सामने आ गयी है। जब एम के स्टालिन, पिनाराई विजयन जैसे नेता ‘स्टॉप हिन्दी इंपोजीशन’ जैसे अभियानों के जरिये अपनी विभाजनकारी राजनीति को बढ़ावा देना चाहते हैं, तो के.सुरेश का हिन्दी में शपथ लेना एक बेहद साहसिक और स्वागत योग्य कदम है।
पर क्योंकि के सुरेश कांग्रेस से ताल्लुक रखते हैं, इसीलिए उनका हिंदी भाषा में शपथ लेना पार्टी के ‘आचार संहिता’ के खिलाफ था। के सुरेश के शपथ ग्रहण में हिंदी भाषा के चुनाव के प्रति अपनी असहमति दिखाकर सोनिया गांधी ने केवल यही सिद्ध किया है कि उन्हें हिंदी भाषा..या भारतीय सभ्यता के प्रति कोई सम्मान की भावना नहीं है। ऐसा करके वे पार्टी को जनसमर्थन से और दूर ले जा रही है, जो पार्टी के वापसी के लिए आगे चल कर बहुत ही घातक सिद्ध होगा।