वर्ष 2015 में भारत सरकार द्वारा जब स्मार्ट सिटी मिशन को लॉंच किया गया था, तो सबने यह सपना देखा था कि जल्द ही भारत के शहर भी दुनिया के तमाम आधुनिक शहरों की तरह व्यवस्थित, साफ और विकसित हो सकेंगे। हालांकि, देश का दुर्भाग्य यह है कि पिछले 4 सालों के दौरान कुछ राजनीतिक पार्टियों ने अपनी घटिया राजनीति के हितों को साधने के लिए अपने द्वारा शासित राज्यों में स्मार्ट सिटी मिशन को कभी प्राथमिकता ही नहीं दी। इसका ही एक उदाहरण अब हमें कर्नाटक में देखने को मिला है जहां पिछले 4 सालों के दौरान वहां की सरकारों ने स्मार्ट सिटी मिशन के तहत आवंटित बजट का सिर्फ आधा प्रतिशत हिस्सा खर्च किया। स्मार्ट सिटी मिशन के तहत राज्य के 7 शहरों का आधुनिकरण करने की योजना थी, हालांकि कर्नाटक की कांग्रेस और कांग्रेस-जेडीएस सरकारों ने इन योजनाओं को लेकर इतना नकारात्मक रवैया रखा कि बंगलुरु और मंगलुरु जैसे शहरों में तो स्मार्ट सिटी मिशन के तहत एक प्रोजेक्ट भी पूरा नहीं हो सका है। अब सवाल यह उठ रहे हैं कि क्या राज्य में बढ़ते भाजपा के वर्चस्व को रोकने के लिए ऐसा किया गया था?
आपको बता दें कि वर्ष 2016 में राज्य के 6 शहरों को स्मार्ट सिटी मिशन के तहत विकसित करने का लक्ष्य रखा गया था जिनमें बेलगावी, हुबली-धारवाड़, शिवमोग्गा, मंगलुरु, टुमकुर, दावनगेरे जैसे शहर शामिल थे। एक वर्ष बाद इस सूची में बंगलुरु को भी जोड़ दिया गया। इन सभी शहरों को केंद्र सरकार और राज्य सरकारों द्वारा 500 करोड़ रुपये मिलने थे। शहरी विकास मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार पिछले चार सालों के दौरान स्मार्ट सिटी मिशन के तहत कर्नाटक सरकार को 6 हज़ार 400 करोड़ रुपये आवंटित किए गए थे लेकिन राज्य सरकार द्वारा इस बजट में से सिर्फ 30.97 करोड़ रुपये ही खर्च किए गए।
वर्ष 2015 में केंद्र सरकार द्वारा जब इस योजना को लॉंच किया गया था तो राज्य में कांग्रेस की सरकार थी और सिद्धारमैया तब राज्य के मुख्यमंत्री थे, इसके बाद पिछले वर्ष के राज्य की जनता ने भाजपा को सबसे बड़ी पार्टी के रूप में चुना था लेकिन कांग्रेस, जेडीएस और बसपा ने अनैतिक गठबंधन करते हुए लोगों की आँखों में धूल झोंककर एचडी कुमारस्वामी को मुख्यमंत्री बना दिया। कांग्रेस और जेडीएस को यह भली-भांति अहसास था कि राज्य के लोगों का झुकाव लगातार भाजपा की ओर बढ़ता जा रहा है जिसके कारण उन्होंने केंद्र की भाजपा सरकार द्वारा शुरू की गई सभी योजनाओं को नकारने में ही अपनी भलाई समझी। यही कारण है कि कर्नाटक सरकार ने स्मार्ट सिटी मिशन के साथ-साथ एक अन्य केंद्र सरकार की योजना ‘आयुष्मान भारत योजना’ को राज्य में लागू करने से साफ मना कर दिया।
कर्नाटक की कांग्रेस और जेडीएस सरकार ने अपने राजनीतिक एजेंडे के तहत जान-बूझकर केंद्र सरकार की योजनाओं को आम जनता तक नहीं पहुंचने दिया ताकि लोगों के भाजपा के प्रति बढ़ते झुकाव को कम किया जा सके। हालांकि, इन लोकसभा चुनावों में कर्नाटक की जनता ने कांग्रेस और जेडीएस के इस विकास विरोधी एजेंडे की धज्जियां उड़ा दी और राज्य की 28 लोकसभा सीटों में से एनडीए को 26 सीटों पर जीत हासिल हुई जबकि यूपीए के खाते में सिर्फ 2 सीटें ही आ सकी। अपनी राजनीति को साधने के लिए कांग्रेस और जेडीएस द्वारा स्मार्ट सिटी मिशन के प्रति ऐसा निराशाजनक रवैया दिखाना बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है। कांग्रेस-जेडीएस सरकार को चाहिए कि इस मिशन के तहत आवंटित हुए धन को तुरंत जनता की भलाई में लगाए ताकि शहरों के आधुनिकीकरण को और ज़्यादा तेजी से आगे बढ़ाया जा सके।




























