महुआ मोइत्रा के भाषण का गुणगान करने वालों जरा इन तथ्यों और सबूतों को भी देख लो

महुआ मोइत्रा

PC: huffingtonpost

जब ब्रिटेन में आधिकारिक तौर पर slavery यानि दासत्व का उन्मूलन हुआ था तब अपने क्रोधपूर्ण परंतु ओजस्वी भाषणों के लिए प्रसिद्ध यॉर्कशायर के विलियम विल्बरफोर्स ने एक यादगार भाषण दिया था। उस भाषण को आज तक ब्रिटिश पार्लियामेंट में दिये गए सबसे यादगार भाषणों में से एक माना जाता है। कल भारत के संसद में भी कुछ ऐसा ही हुआ, एक नव-निर्वाचित महिला सांसद ने ऐसा धमाकेदार भाषण दिया जिसे भारतीय संसद का विलियम विल्बरफोर्स मोमेंट कहना अतिशयोक्ति नहीं होगी। या शायद होगी? अगर भारतीय मीडिया और कुछ चुनिन्दा विदेशी मीडिया की माने तो नव-निर्वाचित महिला संसद कुछ ऐसी चीज़ें कह दी हैं जो किसी ने आज तक बोलने की हिम्मत नहीं की। उन महिला सांसद का नाम है महुआ मोइत्रा और उसकी पार्टी का नाम है तृणमूल कांग्रेस। जी हां वही ममता बनर्जी वाली टीएमसी।

महुआ मोइत्रा जी के भाषण की समीक्षा करने से पहले आइये पहले नज़रें डालते हैं कुछ प्रतिक्रियाओं पर जो उनके प्रथम भाषण के बाद लोगों और विभिन्न मीडिया संस्थानों ने दिये।

जम्मू कश्मीर की पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ़्ती ने महुआ मोइत्रा के भाषण को आइकॉनिक अर्थात महान बताया

जम्मू कश्मीर के और पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने महुआ मोइत्रा की स्पीच पर आधारित एक लेख को कोट किया:

लगभग एक महीने के अज्ञातवास के पश्चात लौटे पूर्व क्विज मास्टर और टीएमसी के नेता डेरेक ओ’ब्रायन जी ने महुआ की स्पीच को sizzling अर्थात जबरदस्त बताया।

इसी प्रकार विपक्षी दलों के अन्य नेताओं ने भी महुआ मोइत्रा की स्पीच को महान, हैरतअंगेज, शक्तिशाली और चमत्कारी बताया। तो ऐसा क्या था महुआ के भाषण में की विपक्ष के नेताओं ने उन्हें भारत का विलियम विल्बरफोर्स बना दिया। आइये पहाड़ खोद कर चुहिया निकालते हैं।

https://www.youtube.com/watch?v=dnh-mpg_oF4

महुआ ने सर्वप्रथम मौलाना अब्दुल कलाम आज़ाद को कोट किया और बताया कि भारत सदा से विभिन्न जातियों और धर्मों की शरण स्थली रहा है, जिसका स्वरूप आज बदल रहा है। शायद टीएमसी सांसद महुआ का ये कोट मोदी सरकार के रोहिंग्या विरोधी अभियान और अवैध बंगलादेशियों को भगाने के लिए बनाए गए एनआरसी का विरोध था क्योंकि इस बिल के विरोध में टीएमसी सबसे ज़्यादा मुखर रही है। मुस्लिम तुष्टीकरण की राजनीति करने वाली टीएमसी अब रोहिंग्या और अवैध बांग्लादेशियों के भारत में निवास की सबसे बड़ी पक्षधर भी हैं। इसमें सहिष्णुता वाला एंगल तो सर्वथा गौण है, हां, वोट बैंक की राजनीति अवश्य है। क्या इस शुरूआती पंक्तियों में कुछ महान, हैरतअंगेज, शक्तिशाली और चमत्कारिक था? मुझे तो बस कॉपी पेस्ट और घटिया वर्णन ही दिखा।

आगे बढ़ते हैं – उन्होंने फिर कहा कि “Constitution is under threat today”, ये एक पुराना और घिसा पिटा टेम्पलेट है, जब पार्टियों का अस्तित्व संकट में आता है तो ‘देश का संविधान संकट में हैं’ का राग अलापने लगते हैं। विगत छह सालों में जितनी बार भी चुनाव हुए हैं, संविधान संकट में आ गया है।

आगे बढ़ते हैं – फिर महुआ मोइत्रा ने फासीवाद के सात संकेत गिनवाएं और बताया कि भारत में ये सातों संकेत दिखने लगे हैं। पहला संकेत है – powerful and continuing nationalism अर्थात राष्ट्रवाद का प्रचार प्रसार, दूसरा संकेत है – resounding disdain for human rights अर्थात मानवाधिकार की अवज्ञा, तीसरा संकेत है – unimaginable subjugation and control of mass media अर्थात मीडिया का दमन और नियंत्रण, चौथा संकेत है – obsession with national security राष्ट्रीय सुरक्षा पर अतिशय फोकस करना, पांचवां संकेत है – government and religion are now intertwined in this country – यानि धर्म और सरकार का एकाकीकरण, छठा संकेत है – complete disdain for intellectuals and the arts अर्थात कलाकारों और कला का तिरस्कार और आखिरी यानि सातवां संकेत है – erosion of independence in our electoral system – यानि चुनावी तंत्र की पराधीनता।

राष्ट्रवाद का सशक्तिकरण क्या होता है? राष्ट्रवाद तो राष्ट्रवाद है और यह स्वयं अपने आप में ही एक शक्तिशाली भावना है। क्या अवैध घुसपैठियों को भगाना चरम राष्ट्रवाद है? क्या जन गण मन पर उठ कर खड़े हो जाना अति राष्ट्रवाद है? क्या वंदे मातरम बोलना चरम राष्ट्रवाद है? क्या भारत पाकिस्तान के मैच में भारत का पक्ष लेना चरम राष्ट्रवाद है? क्या स्वयं से पहले राष्ट्र हित सोचना चरम राष्ट्रवाद है? अगर ऐसा है तो चरम राष्ट्रवाद ही असली राष्ट्रवाद है और ऐसे चरम राष्ट्रवाद का और प्रचार प्रसार होना चाहिए।

मानवाधिकार की अवज्ञा कहां दिखाई दी महुआ मोइत्रा को? क्या किसी अपराधी को गैरकानूनी तरीके से मृत्युदंड दिया गया? क्या किसी समुदाय विशेष को प्रताड़ित किया गया? क्या कोई सरकार समर्थित दंगा हुआ जैसे कि 1984 में हुआ था? तो कहां हुई मानवाधिकार की अवज्ञा। पिछले छह सालों में कोई दंगा नहीं हुआ, छिटपुट घटनाएं ज़रूर हुई जो आज से नहीं सदा से होती आई है। और अफजल गुरु के लिए नारे लगाना मानवाधिकार का सम्मान हुआ? बुरहान वानी के लिए छाती पीटना मानवाधिकार का सम्मान हुआ? या फिर याक़ूब मेमन जैसे आतंकवादी को फांसी से बचाने के लिए मध्यरात्रि में प्रदर्शन करना मानवाधिकार का सम्मान हुआ? देशद्रोहियों और आतंकवादियों के लिए मानवाधिकार का पक्ष रखने वाले आम जनता के मानवाधिकार के विरोधी होते हैं। महुआ मोइत्रा को शायद ये फर्क नहीं दिखाई देता। 

मीडिया का दमन और नियंत्रण सबसे हास्यास्पद टिप्पणी है। इस देश के प्रधानमंत्री मीडिया द्वारा लगाए जाने वाली कचहरी के सबसे बड़े पीड़ित रहे हैं। 2002 के दंगों के बाद से मीडिया ने उन्हें देश का सबसे बड़ा हत्यारा और जल्लाद घोषित कर दिया था। एनडीटीवी जैसे मीडिया संस्थानो ने बिना साक्ष्य और सबूतों के उनका मीडिया एंकाउंटर कर दिया, क्या ऐसी मीडिया का दमन होना चाहिए या नहीं? बिलकुल होना चाहिए। और सिर्फ नकली और बिना सिर-पैर के समाचार नहीं, मीडिया संस्थानों ने राडिया कांड जैसे शर्मनाक प्रकरणों में लोब्बीस्ट की भूमिका निभाई, शेयर का हेर-फेर कर करोड़ो में काला धन कमाया, देश की आंतरिक सुरक्षा को ताक पर रख कर युद्ध और आतंक विरोधी अभियानों को लाइव टीवी पर दिखाया। ऐसे में उनका दमन होना चाहिए कि नहीं, अवश्य होना चाहिए। सोशल मीडिया के आने के बाद से मीडिया का वर्चस्व निरंतर घटता रहा है और ये आगे चल कर गौण हो जाएगा, ऐसा सिर्फ भारत में नहीं, पूरे विश्व में हो रहा है। ये फासीवाद नहीं सोशल मीडिया का बढ़ता प्रभाव है।  

राष्ट्रीय सुरक्षा पर अतिशय ध्यान नहीं दिया जाए तो क्या कबीर सिंह के बॉक्स ऑफिस कलेक्शन पर दिया जाये? ये इकलौती सरकार रही है जिसके राज में किसी भी शहर में कोई आतंकी हमला नहीं हुआ। जब पाकिस्तान ने उरी में हमारे जवानों को मारा तो हमने उसके घर में घुस कर उसका जवाब दिया, जब चीन ने डोकलामा में हमे आँख दिखाई तो हमने उसे खदेड़ दिया, जब पाकिस्तान ने कायरतापूर्ण तरीके से हमारे जवानों को मारा तो हमने आतंकवादियों समेत उसके पूरे आतंकी ठिकाने को हवाई हमले में मटियामेट कर दिया। क्या 2008 के मुंबई ब्लास्ट्स के बाद जैसे मनमोहन सरकार कायरों की तरह बैठी रही वो ही सही कदम है? क्या शौर्य फासीवाद है? क्या देश की सुरक्षा करना फासीवाद है? क्या दुश्मनों को जवाब देना फासीवाद है? महुआ मोइत्रा जी आप वीरता को फ़ासीवाद की संज्ञा दे रही हैं, धिक्कार है आप पर।

आपने कहा कि इस देश में धर्म और राजनीति आपस में मिल गयी है? सच बताइये, कब मिली हुई नहीं थी? जब धर्मनिरपेक्षता के नाम पर मुस्लिम तुष्टीकरण हो रहा था तब फासीवाद नहीं था? वेस्टर्न स्टाइल सेकुलरिस्म इस देश में कभी नहीं था। हमारे यहां राजनीति को राजधर्म कहते हैं, राज भी और धर्म भी तो इनको अलग कैसे करे। और कभी आपने प्रधानमंत्री को हिंदुओं को आरक्षण देते हुए सुना क्या? या ब्राह्मणों को? हां आर्थिक रूप से पिछड़े लोगों को आरक्षण देते हुए ज़रूर सुना होगा। क्या अपने संस्कारों का पालन फासीवाद है? क्या अपनी विरासत का सम्मान फासीवाद है? क्या अपनी भाषाओं का प्रचार प्रसार फासीवाद है? महुआ मोइत्रा जी आप या तो मूर्ख है या मूर्खता का नाटक कर रहीं हैं।

आपने कहा कलाकारों और कला का तिरस्कार हो रहा है? कैसे, कोई उदाहरण है? कहीं आप अवार्ड वापसी गैंग की बात तो नहीं कर रही जहां अशोक वाजपेयी जैसे कामचलाऊ कवियों ने मोदी-विरोधी अभियान चलाया था। क्या कला इस गैंग की बपौती है? आप उस बॉलीवुड की बात तो नहीं कह रही जो पीके जैसी मूवी को कला के नाम पर बनाता है, ब्राह्मणों को धूर्त, राजपूतों को अहंकारी, वैश्यों को लालची और मुसलमानों को सताया हुआ बताता है, जो वामपंथ से लेकर अब चरमपंथ तक को सही ठहरता है। वे कलाकार नहीं पॉलिटिकल एजेंट है और पॉलिटिकल एजेंट से पॉलिटिकल एजेंट की तरह ही निपटा जाता है। और ये कलाकार कांग्रेस के तलवे चाट कर ललित कला अकादमी सरीखी संस्थाओं में बैठ कर मालपुआ भकोसते थे, इनकी नौकरी जाएगी तो ये तो इंटोलेरंस इंटोलेरेन्स चिल्लायेंगे ही।

आखिरी पॉइंट में तो अपने हद ही कर दी। इलेक्टोरल सिस्टम कि स्वतंत्रता क्या होती है? अभी हाथ पकड़ कर वोटिंग कराई जाती है क्या? ऐसी कितनी शिकायतें सुनी आपने अभी तक? बैलट बॉक्स पर चले वापस जिसे तोड़ना, फाड़ना, यहां तक की जलाना और चुराना सब आसान था। चुनाव आयोग  ने हैकिंग के लिए सबको आमंत्रित किया, अच्छा होता महुआ मोइत्रा कि आप हैक कर के दिखा देती, ये परेशानी सदा के लिए खत्म हो जाती।

अब आते हैं आप कि स्वयं की पार्टी पर। आपकी पार्टी क्या करती है आप तो जानती ही होंगी? रोहिंग्या से लेकर बांग्लादेशी सबको ठूस दिया बंगाल में? क्यों? आपके मुंह से फासीवाद की बात सुनकर हंसी आती है। ‘जय श्री राम’ बोलने पर कौन सी पार्टी गोली मारती है? टीएमसी। सबसे ज़्यादा राजनैतिक हिंसा कौन सी पार्टी करती है? टीएमसी। किस पार्टी के कार्यकर्ताओं ने सरस्वती पूजा के समारोह में तोड़ फोड़ मचाई? टीएमसी। किस पार्टी की सरकार ने दुर्गा प्रतिमा विसर्जन को रोक कर रखा? टीएमसी। किस पार्टी की सरकार ने रामधनुष को रोंगधनुष बना दिया? टीएमसी। किस पार्टी की सरकार में बसीरहाट और मालदा जैसे दंगे हुए? टीएमसी। किस पार्टी की सरकार में डॉक्टर सारे आम पिटे और गुंडे निर्भय घूमे? आप संकेतों की बात छोड़िए महुआ मोइत्रा आप वास्तविकता देखिये। अपनी पार्टी को सुधारिए, अपने कार्यकर्ताओं को हिंसा से दूर ले जाइए, ये देश धार्मिक था, राष्ट्रवादी था, स्वतंत्र था और रहेगा। आपके सर्टिफिकेट की कोई आवश्यकता नही।

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