वर्ष 2019 के चुनावी नतीजों में पश्चिम बंगाल में भाजपा के अभूतपूर्व प्रदर्शन से ममता बनर्जी बेहद चिंतित हैं। जहां एक तरफ चुनावों के बाद भी राज्य में राजनीतिक हिंसा का दौर जारी है, तो वहीं दूसरी ओर ममता बनर्जी अपने बेतुके बयानों से स्थिति को और ज़्यादा गंभीर बनाने पर तुली हुई हैं। सोमवार को भी उन्होंने भाजपा पर अपना हमला जारी रखा और भाजपा पर राज्य में माहौल खराब करने का आरोप लगाया। उन्होंने कहा ‘बंगाल गुजरात नहीं है, उत्तर प्रदेश में बच्चों को मारा जा रहा है। जीत के बाद, भाजपा के लोग राज्य का माहौल खराब करने की कोशिश कर रही है। हम इन ताकतों के सामने नहीं झुकेंगे’। पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री बनर्जी के इस बयान को लेकर शिवसेना के मुखपत्र सामना ने अब उनपर निशाना साधा है। सामना ने लिखा है कि ‘खुद के अधोपतन के लिए ममता खुद ही जिम्मेदार हैं। जिस तरह मुट्ठी से बालू सरकती है, उसी तरह बंगाल ममता के हाथ से सरक रहा है’। सामना का ममता बनर्जी पर यह कटाक्ष काफी हद तक तर्कसंगत भी लगता है। कभी लेफ्ट-विरोधी लहर पर सवार होकर प्रदेश के मुख्यमंत्री पद तक पहुंचने वाली ममता ने सत्ता में आते ही अपने वादों को भुला दिया और राज्य को अराजकता की ओर धकेलना का काम शुरू कर दिया।
वर्ष 1970 में अपना राजनीतिक सफर शुरू करने वाली ममता बनर्जी वर्ष 1984 में कांग्रेस की ओर से लोकसभा में पहुंची। इतना ही नहीं, वे इंडियन यूथ कांग्रेस की सचिव भी बनी थी। वर्ष 1997 में बनर्जी ने कांग्रेस छोड़कर अपनी अलग पार्टी टीएमसी का गठन किया और यह पार्टी जल्द ही राज्य की मुख्य विपक्षी पार्टियों में से एक बन गई। वर्ष 2000-2011 तक पश्चिम बंगाल के मुख्यमंत्री रहे भुदेब भट्टाचार्जी के खिलाफ उन्होंने समय-समय पर अपनी आवाज़ बुलंद की। वर्ष 2005 में उन्होंने किसानों के जबरन जमीन अधिग्रहण को लेकर भुदेब भट्टाचार्जी सरकार के खिलाफ जमकर विरोध प्रदर्शन किए जिसको लेकर उनके प्रति लोगों में सम्मान की भावना जागृत हुई। लोगों को उनके रूप में वामपंथी सरकार का एक अच्छा विकल्प मिला था जिसकी वजह से ममता बनर्जी की लोकप्रियता राज्य में बढ़ती गई और आखिर वर्ष 2011 में वे पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री बनी। हालांकि, उसके बाद उन्होंने वही काम शुरू कर दिया जिसके खिलाफ जंग लड़कर वे सत्ता की कुर्सी तक पहुंची थी। सत्ता में आने के बाद उन्होंने जमकर तुष्टीकरण की राजनीति की, जिसकी वजह से आज वे लगातार अपने पतन की ओर अग्रसर हैं।
ममता बनर्जी हमेशा से तुष्टिकरण की राजनीति करती आई हैं और हमेशा ही उन्होंने राज्य में बहुसंख्यकों के मौलिक अधिकारों का हनन किया है। अपने कार्यकाल के दौरान उन्होंने सेकुलरिज़्म का चौला पहनकर जमकर धार्मिक ध्रुवीकरण की राजनीति की। अपने हिन्दू-विरोध में उन्होंने हिन्दू धर्म से जुड़े प्रतिकों और त्योहारों पर हमला करने को ही अपनी राजनीति का अहम हिस्सा बना डाला। इसके लिए उन्होंने स्कूली पाठ्यक्रम में कुछ बदलाव किए ताकि अपने कथित सेकुलरिज़्म के एजेंडे को आगे बढ़ाया जा सके। उन्होंने पाठ्यक्रम से हिन्दी शब्दों को हटाकर तथाकथित धर्मनिरपेक्ष शब्दों को शामिल किया। उदाहरण के तौर पर, वर्ष 2017 में उन्होंने कक्षा सातवीं की कक्षा में इंद्रधनुष के लिए बंगाली शब्द ‘रामधेनु’ को बदलकर ‘रोंगधेनु’ कर दिया था ताकि वह ज्यादा धर्मनिरपेक्ष लगे। इसके अलावा उन्होंने पाठ्यपुस्तकों में आकाशी शब्द को बदलकर आसमानी कर दिया था। हद तो तब हो गयी जब उन्होंने हिन्दुओ के मुख्य त्योहार दुर्गा पूजो का नाम बदलकर आधिकारिक तौर पर शरोद उत्सव कर दिया।
उनके हिन्दी और हिन्दू विरोध का तो यह सिर्फ एक उदाहरण मात्र था। लगातार हिंदुओं के लिए मुश्किलें पैदा करने वाली ममता बनर्जी ने वर्ष 2017 में तारकेश्वर विकास बोर्ड के अध्यक्ष के रूप में फिरहाद हाकिम की नियुक्ति की थी उनके इस फैसले ने विवाद का रूप ले लिया था। ममता बनर्जी और टीएमसी द्वारा तारकेश्वर विकास बोर्ड के अध्यक्ष के रूप में फिरहाद हाकिम की नियुक्ति सिर्फ हिंदुओं के साथ अपमानजनक राजनीति खेलने के उद्देश्य से किया गया था। एक ऐसे व्यक्ति को हिंदू मंदिर की देखभाल करने के लिए विकास बोर्ड के अध्यक्ष के तौर पर नियुक्ति की जिसे हिंदू धर्म की कोई जानकारी नहीं है। एक ऐसा व्यक्ति जो मंदिर में दर्शन करने आने वाले भक्तों की जरूरतों के विषय में भी कुछ नहीं जानता है।
साल 2016 में ममता ने इसी तरह का आदेश दिया था और दुर्गा मूर्ति विसर्जन पर रोक लगा दी थी जबकि विजयदशमी 11 अक्टूबर और मुहर्रम 12 तारीख को पड़ा था। तारीखें अलग थीं फिर भी ममता ने तुगलकी फरमान सुना दिया था। हालांकि, तब कलकत्ता हाईकोर्ट की एकल पीठ के जस्टिस दीपांकर दत्ता ने राज्य सरकार के आदेश को ख़ारिज कर दिया था और इसे तुष्टिकरण करार दिया था। ममता सरकार ने हिन्दू जागरण मंच को हनुमान जयंती पर जुलूस निकालने पर भी रोक लगा दी थी और जब 11 अप्रैल, 2017 को पश्चिम बंगाल में बीरभूम जिले के सिवड़ी में हनुमान जयंती के लिए जुलूस निकाला गया तो पुलिस द्वारा उनपर लाठीचार्ज करवाया गया था। धूलागढ़ दंगे में जिस तरह से हिंदुओं पर अत्याचार किया गया उन्हें मारा पीटा गया, महिलाओं के साथ बलात्कार किया गया तब भी ममता ने हिंदुओं के बचाव के लिए कुछ नहीं किया था साथ ही ये तक कह दिया था कि ये कोई घटना नहीं थी। आज वो कहती हैं कि उन्होंने अपने राज्य में भेदभाव की राजनीति कभी नहीं की हमेशा शांति और एकता को बढ़ावा दिया है। ममता बनर्जी के अंदर हिंदुओं के लिए सिर्फ नफरत रही है और समय समय पर उनकी राजनीति से ये नफरत सामने भी आई है।
ममता ने अपने शासन काल में कभी हिंदुओं की धार्मिक भावनाओं का सम्मान नहीं किया जो स्पष्ट रूप से उनकी गंदी राजनीति को दर्शाता है। ममता बनर्जी ‘इच्छाधारी हिंदू’ हैं जो बस राजनीतिक फायदे के लिए खुद को हिंदुओं का हितैषी बताती हैं लेकिन कभी उन्होंने हिंदुओं की भलाई के लिए जमीनी स्तर पर कोई काम नहीं किया। यही कारण है कि वर्ष 2019 के लोकसभा चुनावों में बंगाल की जनता ने भाजपा पर अपना भरोसा जताया है और पहली बार पार्टी को राज्य में 18 सीटें मिली। हालांकि, ममता की तुष्टीकरण की राजनीति अब भी जारी है। ममता को जय श्री राम से इतनी आपत्ति है कि इस नारे लगाने वाले को राज्य पुलिस गिरफ्तार करने में थोड़ा भी वक्त नहीं ज़ाया करती है। ममता को यह समझ लेने की आवश्यकता है कि अगर वह इसी तरह अपने हिन्दू-फोबिया के एजेंडे को आगे बढ़ाती रही, तो वह दिन दूर नहीं जब बंगाल की जनता पूरी तरह टीएमसी को राज्य से उखाड़ फेकेगी।