मोदी सरकार ने अपने मंत्रिमंडल में एस जयशंकर जैसे निपुण राजनयिक को जगह देकर यह स्पष्ट कर दिया था कि वे सरकारी तंत्र में विशेषज्ञ लोगों को लाना चाहते हैं ताकि काम को अच्छे ढंग से किया जा सके। अब मोदी सरकार अपने लेटरल एंट्री कार्यक्रम के माध्यम से देश की ब्यूरोक्रेसी में भी ऐसे ही विशेषज्ञ लोगों को लाना चाहती है ताकि नौकरशाही में नए विचारों और नए जोश का प्रवाह हो सके। जुलाई 2017 में सरकार ने ब्यूरोक्रेसी में सिविल सेवाओं में परीक्षा के जरिए होने वाली नियुक्ति के अलावा लेटरल एंट्री यानी अन्य क्षेत्रों से सीधी नियुक्ति करने की बात कही थी। सरकार चाहती है कि निजी क्षेत्र के अनुभवी उच्चाधिकारियों को विभिन्न मंत्रालयों और विभागों में डिप्टी सेक्रेटरी, डायरेक्टर और जॉइंट सेक्रेटरी स्तर के पदों पर नियुक्त किया जाए। इस कार्यक्रम के माध्यम से सरकार आरक्षण प्रणाली से हटकर निपुण लोगों को ब्यूरोक्रेसी में लाने की कोशिश करेगी। एक आरटीआई सवाल के जवाब से यह पहले ही साफ हो चुका है कि लेटरल एंट्री के तहत की जाने वाली भर्तियों में आरक्षण लागू नहीं होता है।
हाल ही में भारत सरकार की एडवाइसरी बॉडी कहे जाने वाली नीति आयोग ने भारत सरकार के अलग-अलग विभागों में लेटरल एंट्री प्रोग्राम के माध्यम से 55 पदों पर भर्ती करने पर विचार करने की बात कही थी। भारत सरकार सयुंक्त सचिव स्तर के 40 प्रतिशत पद लेटरल एंट्री से ही भरना चाहती है, और खास बात यह है कि इन पदों की नियुक्ति पर आरक्षण प्रणाली का भी कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा।
ब्यूरोक्रेसी का उच्चतम स्तर सार्वजनिक नीतियों को बनाने और उन्हें लागू करने के लिए जिम्मेदार होता है। इन सार्वजनिक नीतियों पर करोड़ो-अरबों रुपये निवेश किए जाते हैं, ऐसे में अगर इस स्तर की कार्यप्रणाली में थोड़ी सी भी खामिया रह जाती है तो इससे सार्वजनिक संपत्ति का बहुत बड़ा नुकसान होता है।
आज देश में जिन लोगों को आरक्षण का लाभ मिलता है, उनमें से अधिकतर लोग गरीबी रेखा से नीचे अपना जीवन यापन कर रहे होते हैं। सरकार जो सार्वजनिक नीतियां बनाती है, वो नीतियां भी देश के इसी वर्ग को ध्यान में रखकर बनाई जाती है। ऐसे में अगर इन नीतियों को लागू करने वाले लोग अपने-अपने क्षेत्र के एक्स्पर्ट्स होंगे, तो इसका सबसे बड़ा फायदा देश के इसी वर्ग के लोगों को पहुंचेंगा।
सामाजिक न्याय के नाम पर देश की ब्योरोक्रेसी में अयोग्य लोगों को भर्ती करना बिल्कुल भी तर्कसंगत नहीं है, क्योंकि ऐसा करके हम करोड़ों गरीब लोगों के साथ अन्याय कर रहे होंगे, जो किसी भी सरकार या न्यायिक तंत्र का उद्देश्य तो बिल्कुल नहीं हो सकता। जिस तरह देश की सेना ,सुरक्षा बलों और न्यायिक तंत्र में आरक्षण प्रणाली लागू नहीं किया जाता, उसी तरह देश की ब्योरोक्रेसी को भी जल्द से जल्द आरक्षण मुक्त कर देना चाहिए। एक वर्ग की भलाई के नाम पर सिर्फ चुनिन्दा लोगों को उच्च पदों पर बैठाने से कभी किसी वर्ग का भला नहीं किया जा सकता। ऐसे लोग अपने वर्ग की भलाई के बारे में नहीं, बल्कि अपनी भलाई के बारे में सोचते हैं, और नतीजा यह निकलता है कि निजी स्तर पर तो इन लोगों का आर्थिक और सामाजिक विकास हो जाता है, लेकिन उनके वर्ग के अधिकतर लोग तब भी गरीबी और पिछड़ेपन से प्रताड़ित हो रहे होते हैं।
आजादी के बाद से देश की सत्ता में बैठने वाले अधिकतर लोग लिबरल विचारधारा को मानने वाले रहे हैं, जिसकी वजह से पूर्व की सरकारों ने ‘पिछड़े वर्ग की भलाई’ का नारा लगाकर आरक्षण प्रणाली को खूब बल दिया और वामपंथी मीडिया ने भी इसमें सरकार का पूरा सहयोग किया।
लेटरल एंट्री के तहत देश की ब्यूरोक्रेसी में पदों पर नियुक्ति करना मोदी सरकार का सराहनीय कदम है। इस तरह से हर काम के लिए विशेषज्ञ लोग उपलब्ध हो सकेंगे और काम अच्छे ढंग से हो सकेगा। सरकार अपने इस कदम से ब्योरोक्रेसी में नया जोश भरना चाहती है और नौकरशाही से अयोग्य लोगों को मुक्त करना चाहती है। इसका सबसे बड़ा फायदा देश में रहने वाले उन करोड़ों लोगो का होगा जिन्हें बेहतर ढंग से सभी सार्वजनिक योजनाओं का लाभ मिल सकेगा।