भारत दुनिया का सबसे युवा देश है जहां रहने वाली आबादी की औसत आयु सिर्फ 29 साल है और यहां रहने वाली 65% जनसंख्या की उम्र 35 साल या उससे कम है। ऐसे में देश के विकास के लिए इस युवा शक्ति का भरपूर इस्तेमाल करना इस वक्त देश की सख्त जरूरत है। केंद्र सरकार द्वारा हाल ही में जारी नेशनल एजुकेशन पॉलिसी ड्राफ्ट इस दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। केंद्र सरकार द्वारा जारी इस ड्राफ्ट को मानव संसाधन मंत्रालय की आधिकारिक वैबसाइट पर अपलोड किया गया है ताकि जनता से इस संबंध में उचित फीडबैक लिया जा सके। अब तक देश में साल 1986 की राजीव गांधी सरकार के समय से चली आ रही शिक्षा नीति को ही फॉलो किया जा रहा था जिसमें सन 1992 में पीवी नरसिम्हा राव की सरकार के समय कुछ बदलाव भी किए गए थे। हालांकि, इस शिक्षा नीति में कई खामियाँ थी जिसके कारण आज आलम यह है कि सरकारी स्कूलों में पढ़ने वाले पांचवी कक्षा के आधे से ज़्यादा बच्चे दूसरी कक्षा की पाठ्यपुस्तक को भी ठीक से नहीं पढ़ पाते हैं।
आज दुनिया भर में शिक्षा के स्तर के साथ-साथ शिक्षा जगत में इस्तेमाल होने वाले आधुनिक विज्ञान का उपयोग काफी बढ़ गया है। ऐसे में देश को एक नई शिक्षा नीति की सख्त जरूरत है जो आज की चुनौतियों का सही से निवारण कर सके। यह देश की विडम्बना ही है कि देश जहां एक तरफ 5 जी तकनीक को विकसित करने की बात कर रहा है तो वहीं भारत की शिक्षा नीति पूरी तरह बेजान और निष्फल हो चुकी है। आधुनिक समय में शिक्षा के प्रसार-प्रचार में इंटरनेट की भूमिका को नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता। इसी बात का ज़िक्र इस नई एजुकेशन पॉलिसी के ड्राफ्ट को तैयार करने वाली कमिटी के चेयरमैन, डॉ के कस्तूरीरंगन ने इस ड्राफ्ट के प्रस्तावना यानि Preamble में किया है।
वर्ष 2014 में मोदी सरकार जब सत्ता में आई थी तो इसने देश में नई शिक्षा नीति लागू करने पर काम शुरू किया। नई शिक्षा नीति के इस प्रारूप को सामने आने में पूरे 4 साल लग गए और जब हमने इस ड्राफ्ट को पढ़ा तो इसका कारण भी बखूबी समझ में आ गया।अपने विश्लेषण के दौरान हम आपको बताएँगे कि यह शिक्षा नीति बढ़ती उम्र के साथ कैसे आपके बच्चों पर सकारात्मक असर डालेगी और देश में अब तक चली आ रही पुरानी शिक्षा नीति से यह अलग कैसे है।
देश का दुर्भाग्य यह था कि आजादी के 70 साल के बाद भी केंद्र सरकार ने प्री-स्कूल या बचपन की देखभाल और शिक्षा को लेकर कभी अपना सकारात्मक रवैया नहीं दिखाया था, ना ही इसे कभी आधिकारिक रूप से अपनी स्वीकृति दी थी। स्कूलों से पहले की शिक्षा आज सिर्फ आंगनवाड़ियों तक ही सीमित है, लेकिन इन आंगनवाड़ियों की अपनी कोई पहचान नहीं है और ये इंटेग्रटेड चाइल्ड डेव्लपमेंट स्कीम के तहत काम करती हैं। विज्ञान यह साबित कर चुका है कि बच्चों का 85 प्रतिशत से ज़्यादा दिमाग 6 साल की उम्र से पहले ही विकसित हो जाता है। इसलिए बच्चे के सम्पूर्ण मानसिक विकास के लिए 6 साल की उम्र से पहले बच्चों को उच्च गुणवत्ता वाली शिक्षा का मिलना अति आवश्यक है। यही कारण है कि नई शिक्षा नीति के ड्राफ्ट में प्री-स्कूल्स की महत्ता को समझा गया है और वर्ष 2025 तक 3 वर्ष से 6 वर्ष तक के आयु के सभी बच्चों को मुफ्त, सुरक्षित, उच्च स्तरीय शिक्षा देने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है।
आज के समय में प्री-स्कूल एजुकेशन को सिर्फ बड़े लोगों के बच्चों तक सीमित कर दिया गया है, और हर किसी को इन महंगे प्री-स्कूल्स में पढ़ने का सौभाग्य नहीं मिल पाता। पिछले कुछ सालों में प्ले स्कूल्स के नाम पर ना जाने कितने उद्योगपतियों ने अपनी जेबें भरी है और हैरानी की बात तो यह है कि इन स्कूल्स को रेगुलेट करने के लिए अब तक देश में कोई कानून नहीं हैं जिसकी आड़ में इस ‘एजुकेशन माफिया’ ने अपना उद्योग खड़ा कर लिया और हर साल करोड़ों रुपए छापने का एक अच्छा जरिया खोज निकाला। हालांकि, अगर इस ड्राफ्ट को आज देश में लागू कर दिया जाए तो इस एजुकेशन माफिया की दुकानों पर ताले लगने तय हैं क्योंकि प्री-स्कूल शिक्षा को खुद सरकार उपलब्ध कराएगी और वो भी बिल्कुल मुफ्त। इससे ना सिर्फ बच्चों के माता-पिता पर हर महीने पड़ने वाले हजारों रुपए के बोझ से मुक्ति मिलेगी, बल्कि शिक्षा क्षेत्र में फैल चुके इस वर्गीय भेदभाव से भी आज़ादी मिलेगी।
नई शिक्षा नीति के तहत बच्चों को 8 साल की उम्र तक अर्ली चाइल्डहूड़ एजुकेशन यानि ईसीई के तहत बच्चों को आधारित स्तर की शिक्षा दी जाएगी। 3 वर्ष से 6 वर्ष तक की आयु के दौरान बच्चों को प्री-स्कूल एजुकेशन दी जाएगी और उसके बाद 6 वर्ष से 8 वर्ष तक की आयु के दौरान बच्चे फ़र्स्ट ग्रेड और सेकंड ग्रेड की शिक्षा प्राप्त करेंगे। इस नीति को लागू करने के लिए सरकार इन चार विकल्पों पर अपना ध्यान केन्द्रित कर सकती है:
- मौजूदा आंगनवाड़ी प्रणाली में सुधार करके इसे मुख्यधारा शिक्षा से जोड़ा जा सकता है।
- आंगनवाड़ियों को मौजूदा प्राथमिक विद्यालयों के साथ जोड़ा जा सकता है।
- जहां संभव हो सके, प्री-स्कूल्स को प्राथमिक विद्यालयों के साथ जोड़ा जा सकता है।
- या अलग से प्री-स्कूल्स बनाए जा सकते हैं।
इन प्री-स्कूल्स के पाठ्यक्रम को एनसीईआरटी निर्धारित करेगा। 3 से 8 साल तक के बच्चों को उच्च स्तरीय शिक्षा प्रदान करना देश की सरकार का संभवतः सबसे लाभकारी निवेश साबित होगा। इसका हम सभी को स्वागत करना चाहिए। अगर यह नीति सफलतापूर्वक लागू होती है तो आने वाले समय में भारत में मानव संसाधन की गुणवत्ता में बड़ा और सकारात्मक बदलाव होने की उम्मीदें हैं।