पिछले 15 दिनों से बिहार का मुजफ्फरपुर दिमागी बुखार के कारण होने वाली बच्चों की मौत की वजह से खबरों में बना हुआ है। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, दिमागी बुखार की वजह से अब तक 150 बच्चों की मौत हो चुकी है और अभी यह आंकड़ा और बढ़ सकता है। हालांकि, ऐसी स्थिति में भी जेडीयू में नंबर दो की हैसियत रखने वाले प्रशांत किशोर राजनीतिक पार्टियों के लिए रणनीति बनाने का असाइनमेंट लेने की फिराक में कई राजनीतिक पार्टियों से संपर्क साध रहे हैं। बता दें कि प्रशांत किशोर एक स्वास्थ्य विशेषज्ञ हैं और संयुक्त राष्ट्र के साथ मिलकर काम कर चुके हैं। अभी बिहार में जेडीयू और बीजेपी की सरकार है और जेडीयू के नेता होने के नाते उनको खुद सामने आकर दम तोड़ते बच्चों की जान बचाने के लिए अपने स्तर पर प्रयास करने चाहिए थे।
बता दें कि बिहार और आंध्र पदेश में प्रशांत किशोर ने अपने सामाजिक जीवन की शुरुआत एक सार्वजनिक स्वास्थ्य कार्यकर्ता के तौर पर ही की थी, इसके अलावा उनके पिता भी एक सरकारी डॉक्टर थे। प्रशांत किशोर ने चाड देश में काम करते वक्त भारत में स्वास्थ्य सुविधाओं को लेकर एक अध्यन्न किया था जिसमें उन्होंने अंकित किया था कि भारत के गुजरात जैसे सम्पन्न राज्यों में भी स्वास्थ्य सुविधाएं उच्च स्तर की नहीं है। यहां तक कि वर्ष 2011 में उन्होंने इसके बारे में उस वक्त गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी से भी बात की थी। उस वक्त उन्होंने गुजरात के बच्चों में कथित ‘कुपोषण’ को लेकर अपनी चिंता व्यक्त की थी।
हैरानी की बात तो यह है कि चमकी बुखार से मरने वाले अधिकतर बच्चे कुपोषण का ही शिकार होते हैं। वर्ष 2011 में प्रशांत किशोर गुजरात के बच्चो की चिंता तो कर सकते हैं लेकिन वर्ष 2019 में बिहार की सत्तासीन पार्टी के उपाध्यक्ष रहकर वे बिहार के बच्चों की चिंता नहीं करते।
बिहार में दम तोड़ते बच्चों की बजाय अपने निजी हित को प्राथमिकता देकर प्रशांत किशोर ने बिहार के गरीबों के साथ अन्याय किया है। हालांकि, इससे पहले भी प्रशांत किशोर सरकारी स्कीमों को लागू करने में बिहार सरकार की मदद कर चुके हैं। प्रशांत किशोर ने सरकारी योजनाओं को लागू कराने के लिए बिहार सरकार को ‘सात निश्चय’ कार्यक्रम का सुझाव दिया था। लेकिन सवाल यही है कि प्रशांत किशोर अगर उस वक्त बिहार सरकार की मदद कर सकते हैं, तो अब क्यों नहीं?
वे अगर चाहते तो बिहार में कुपोषण के खिलाफ जागरूकता अभियान चला सकते थे। वे अगर चाहते तो बिहार में दिमागी बुखार से संबन्धित लक्षणों के बारे लोगों को जागरूक कर सकते थे और बच्चों को समय रहते अस्पताल में भर्ती कराया जा सकता था, लेकिन स्वास्थ्य विशेषज्ञ प्रशांत किशोर अपनी नैतिक जिम्मेदारियों से नदारद दिखे। वे बेशक बिहार सरकार में मंत्री नहीं है, लेकिन वे अपने आप को बिहार के लोगों का नेता मानते हैं। ऐसे में उन्हें लोगों की मदद के लिए और बच्चों की जान बचाने के लिए व्यक्तिगत स्तर पर कदम उठाने चाहिए थे।