जामनगर कोर्ट ने 30 साल पुराने ‘हिरासत में मौत’ के मामले में गुजरात कैडर के निष्काषित आईपीएस अधिकारी संजीव भट्ट को आजीवन कारावास की सज़ा सुनाई है। इसी मामले कोर्ट ने एक और पुलिस अधिकारी प्रवीण सिंह झाला को भी दोषी करार दिया है। दरअसल, वर्ष 1990 में गुजरात के जामनगर में भारत बंद के दौरान हिंसा हुई थी, और उस वक्त संजीव भट्ट जामनगर के एसपी थे। उस दौरान पुलिस ने 133 लोगों को गिरफ्तार किया था। उन गिरफ्तार लोगों में 25 लोग घायल थे, लेकिन पुलिस ने समय रहते उनको अस्पताल नहीं पहुंचाया, और स्थिति बिगड़ने पर जब बाद में इन घायलों को अस्पताल पहुंचाया गया तो वहां एक आरोपी की मौत हो गयी। न्यायिक हिरासत में मरने वाले इस व्यक्ति का नाम प्रभुदास माधवजी वैश्नानी था। संजीव भट्ट के खिलाफ गुजरात सरकार ने वर्ष 2011 में मुकदमा चलाने की अनुमति दी थी और अब कोर्ट ने उन्हें सजा सुनाई है।
Jamnagar Sessions Court sentences former IPS officer Sanjeev Bhatt to life imprisonment under IPC 302 in 1990 custodial death case. #Gujarat pic.twitter.com/KMkrdDQGlr
— ANI (@ANI) June 20, 2019
सुप्रीम कोर्ट ने पिछले सप्ताह भट्ट की याचिका पर 11 अतिरिक्त गवाहों की जांच की मांग करने से इनकार कर दिया था। संजीव भट्ट इन गवाहों के बयानों को फिर से दर्ज कराना चाहते थे। इसके जवाब में गुजरात पुलिस ने कहा था कि संजीव भट्ट इस केस की सुनवाई को जान-बूझकर टालना चाहते हैं ताकि कोर्ट द्वारा फैसला सुनाने में विलंब हो सके।
गुजरात कैडर के निष्काषित आईपीएस अधिकारी संजीव भट्ट का विवादों से बड़ा पुराना नाता रहा है। ये सबसे ज़्यादा चर्चा में तब आए थे जब इन्होंने गोधरा कांड के आरोपियों के लिए जेल में गाजर के हलवे की व्यवस्था कराई थी। आपको बता दें कि इन आरोपियों को गुजरात सरकार ने आतंकवाद निरोधी अधिनियम के तहत गिरफ्तार किया था। इन आरोपियों पर साबरमती एक्स्प्रेस के एक कोच को जलाने और 59 लोगों को हत्या करने का आरोप था, लेकिन फिर भी संजीव भट्ट ने उनके खाने के मेनू में गाजर का हलवा शामिल करना उचित समझा, मानो उन्होंने देश के लिए कोई बहुत बड़ा काम किया हो।
इसके बाद संजीव भट्ट वर्ष 2011 में खबरों में आए थे जब उन्होंने गुजरात दंगों के पूरे 9 साल बाद उस वक्त गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ यह आरोप लगाए कि दंगो के दौरान उन्होंने एक उच्च स्तरीय बैठक बुलाई थी और उस बैठक में उन्होंने पुलिस को कोई कार्रवाई ना करने के आदेश दिये थे जिसके कारण दंगों को काबू करने में गुजरात पुलिस पूरी तरह विफल साबित हुई। इस संबंध में उन्होंने सुप्रीम कोर्ट में एक हलफनामा भी दायर किया था। यह हलफनामा इसलिए महत्वपूर्ण था क्योंकि यह पहली बार था जब गुजरात दंगों को लेकर मुख्यमंत्री मोदी पर सीधे आरोप लगाए गए थे। उस हलफनामे में संजीव भट्ट ने छः लोगों का नाम शामिल किया था जिसमें से एक व्यक्ति ने बाद में संजीव भट्ट पर उस हलफनामे पर जबर्दस्ती हस्ताक्षर करवाने का आरोप लगाया था। इसके बाद उस व्यक्ति ने संजीव भट्ट पर विपक्षी पार्टी कांग्रेस के इशारे पर काम करने का भी आरोप लगाया था। उस वक्त संजीव भट्ट पर अपने एक वरिष्ठ कानून अधिकारी के ई-मेल को हैक करने का भी आरोप लगा था। हालांकि, बाद में इस पूरे मामले की जांच कर रही स्पेशल इन्वैस्टिगेशन टीम ने यह खुलासा किया कि संजीव भट्ट जिस मीटिंग का हवाला देकर पीएम मोदी पर दंगों के दौरान पुलिस ने कोई एक्शन ना लेने के आदेश देने का आरोप लगा रहे थे, उस मीटिंग में वे मौजूद ही नहीं थे।
वर्ष 2018 में गुजरात सीआईडी द्वारा संजीव भट्ट को एक 22 साल पुराने केस में गिरफ्तार भी कर लिया था दरअसल, वर्ष 1996 में जब संजीव भट्ट गुजरात के बनासकांठा जिले के एसपी थे, तो उनपर एक वकील को ड्रग रखने के झूठे केस में फंसाने का आरोप लगा था। आरोपों के मुताबिक गुजरात पुलिस ने उस राजपुरोहित नाम के वकील को राजस्थान के पाली में उसके घर से अगवा कर लिया था और जब बाद में राजस्थान पुलिस ने इसकी जांच की तो ये आरोप सच पाये गए।
इसके अलावा संजीव भट्ट वर्ष 2017 में लश्कर-ए-तैयबा और हिजबुल मुजाहिद्दीन के आतंकियों द्वारा मारे गए लेफ्टिनेंट उमर फ़ैयाज़ की हत्या पर एक विवादित ट्वीट करके भी विवादों में रह चुके हैं। उन्होंने ट्वीट कर उनकी हत्या के पीछे राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल का हाथ होने की आशंका जताई थी ताकि कश्मीर में तनाव को बढ़ाया जा सके। इस ट्वीट को लेकर लोगों ने उनको जमकर लताड़ा था, जबकि कई लोगों ने इस ट्वीट को सिर्फ उनका एक पब्लिसिटी स्टंट बताया था।
वर्ष 2011 में उनको गुजरात सरकार द्वारा निलंबित कर दिया था और उसके बाद वे अज्ञात कारणों से अपनी ड्यूटी से अनुपस्थित रहे थे। हालांकि, इस दौरान उन्होंने सरकारी गाड़ी का प्रयोग किया था, जिसके बाद वर्ष 2015 में उनको नौकरी से बर्खास्त कर दिया गया। अब जामनगर कोर्ट ने उनको उम्रकैद की सज़ा सुनाई है। देश की लेफ्ट लिबरल गैंग और कांग्रेस पार्टी ने संजीव भट्ट के झूठे आरोपों के सहारे कई सालों तक अपनी राजनीतिक रोटियां सेकीं। हालांकि, जामनगर कोर्ट के इस फैसले के बाद इस गैंग के लोगों में निराशा का माहौल छाना तय है।