राज्यसभा में एनडीए को बहुमत न होने के बावजूद केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने सोमवार को राज्यसभा में एक साथ दो बिल पारित करा दिये। गृह मंत्री के तौर पर अमित शाह का यह पहला बिल था और इनके पारित होने से अमित शाह को गृह मंत्री के रूप में एक बड़ी राजनीतिक जीत मिली है।
उन्होनें जम्मू-कश्मीर में राष्ट्रपति शासन बढ़ाने वाले विधेयक और जम्मू-कश्मीर आरक्षण (संशोधन) विधेयक सदन के पटल पर रखा। 6 घंटे की गहन चर्चा के बाद इन दोनों बिल को विपक्ष में कांग्रेस, सपा, बीजेडी, टीएमसी सहित कई दलों का समर्थन मिला और प्रस्ताव पारित हो गया। राज्यसभा में जम्मू कश्मीर से जुड़े इन दोनों बिल के सदन में रखने से पहले यह उम्मीद लगाई जा रही थी कि विपक्ष अपनी ज्यादा संख्या के कारण इस बिल को रोकने की कोशिश करेगा। लेकिन एक लंबी बहस के बाद इसे पारित कर दिया गया। जम्मू कश्मीर के मुद्दे पर टीएमसी सांसद डेरेक ओ ब्रायन ने समर्थन देते हुए कहा कि, भारतीयों को फायदा मिले इसलिए हम जम्मू-कश्मीर आरक्षण (संशोधन) विधेयक का समर्थन करते हैं। साथ ही राष्ट्रपति शासन बढ़ाने के प्रस्ताव का भी समर्थन करते हैं। चर्चा हुई और इस दौरान सत्ता पक्ष और विपक्ष के बीच कई मुद्दों को लेकर तीखी तकरार भी देखने को मिली। इस बिल के पास हो जाने के बाद अब अंतर्राष्ट्रीय सीमा के 10 किलोमीटर के दायरे में रहने वाले लोगों को भी शैक्षणिक संस्थानों और सरकारी नौकरियों में 3 फीसदी आरक्षण का लाभ मिल सकेगा। वामदल, पीडीपी और डीएमके ने इस बिल का विरोध किया।
राष्ट्रपति शासन विस्तार संबंधित विधेयक और आरक्षण विधेयक दोनों को सदन में पेश करते समय अमित शाह ने कहा कि मोदी सरकार लोगों का दिल जीतने में जरूर कामयाब रहेगी। उन्होनें कहा, अगर कश्मीर समस्या 1947 से 2019 तक समाप्त नहीं हुई, तो अब नई सोच और नए नजरिये की जरूरत है।‘
जिस तरह से विपक्ष ने सदन में चर्चा की शुरुआत की तब ऐसा लग रहा था कि वे बिल को पारित नहीं होने देंगे। लेकिन यह चर्चा 6 घंटे चली और विस्तार से सभी मुद्दों पर बहस हुई। इस दौरान विपक्ष का जवाब देते हुए अमित शाह ने कहा,” अगर आप कश्मीरी पंडितों की बात करते तो मानता कि आपको कश्मीरियत की चिंता है। कश्मीरी पंडितों ने कश्मीरियत को जिंदा रखा लेकिन उन्हें भगा दिया गया। सरकार जम्मू-कश्मीर और लद्दाख के विकास के लिए प्रतिबद्ध है। अटल जी ने कहा था कि कश्मीर समस्या का समाधान जम्हूरियत-कश्मीरियत-इंसानियत है। मोदी सरकार भी इसी रास्ते पर है। जब मैं जम्हूरियत कहता हूं तो विधानसभा के 87 सदस्यों तक इसे सीमित ना रखें।“ यहां अमित शाह के भाषण में कश्मीरी पंडितों के प्रति चिंता भी साफ जाहिर हो रही है और अब वो कश्मीरी पंडितों के लिए आगर की राह तय करने की दिशा में प्रयासरत हैं।
शाह ने आगे कहा,” हमारी सोच स्पष्ट है। जो भारत को तोड़ने की बात करेगा, उसे उसी भाषा में जवाब मिलेगा। किसी को डरने की जरूरत नहीं है। जम्मू-कश्मीर के लोगों से कहता हूं कि अगर कोई गुमराह करे तो मत सुनिए। आप भारत का हिस्सा हैं, खुद इसे महसूस करके देखिये, जो सुख-सुविधा भारत के दूसरे लोगों को मिल रही है, वह आपको मिलेगी।
चर्चा के दौरान विपक्ष ने जम्मू कश्मीर में लोकसभा एवं विधानसभा चुनाव एक साथ नहीं कराने को लेकर सरकार पर निशाना साधा। कांग्रेस की विप्लव ठाकुर ने सरकार और चुनाव आयोग पर निशाना साधा। उन्होंने सवाल किया कि जब लोकसभा चुनाव कराए जा सकते हैं तो विधानसभा चुनाव क्यों नहीं कराए जा सकते। इस पर अमित शाह ने जवाब देते हुए कहा,”हम तो सभी चुनाव साथ करना चाहते है। आप लोग ही साथ नहीं आ रहे है। अगर आप कहे तो मैं कल ही लोक सभा में एक राष्ट्र एक चुनाव बिल पेश कर दूं।“ उन्होनें आगे कहा कि ‘जम्मू-कश्मीर में लोकसभा की कुल 6 सीटें हैं। और प्रत्याशी भी कम होते है। सभी प्रत्याशियों को सुरक्षा प्रदान करना होता है। और विधान सभा की सीटें भी ज्यादा होती है और सभी प्रत्याशियों को सुरक्षा प्रदान करना मुश्किल होता। सुरक्षाबलों की सलाह पर ही इस बार जम्मू कश्मीर में लोकसभा के साथ विधानसभा के चुनाव नहीं कराये गए थे।
हालांकि, जिस तरह से इन दोनों महत्वपूर्ण बिल को पारित कराया गया, मोदी सरकार के सफल प्रयासों को दर्शाता है। राज्य सभा में बीजेपी के पास बहुमत नहीं है। हालांकि, यह कयास लगाए जा रहे थे कि विपक्ष इसमें अड़चन डाला सकता है। लेकिन इस बार विपक्ष ने अपनी सहमति दिखाई जिस तरह से विपक्ष ने समर्थन किया उसे देख कर अब यही लगता है कि विपक्ष मोदी-शाह की जोड़ी के समक्ष नतमस्तक हो चुका है। उसे समझ आ गया है कि देश हित विधेयक या नियमों का सम्मान नहीं करेंगे तो जनता से उन्हें आगे भी निराशा ही मिलेगी।