कर्नाटक में काफी उठापटक के बाद आखिरकार कांग्रेस- जेडीएस के बेमेल गठबंधन की सरकार गिर गयी। हाल ही में हुये विश्वास मत में एचडी कुमारस्वामी के नेतृत्व में जेडीएस और कांग्रेस की गठबंधन वाली सरकार को 99-105 से पराजय का सामना करना पड़ा। इसके साथ ही भाजपा को एक बार फिर सदन में सबसे बड़ी पार्टी होने के नाते सरकार बनाने का सुनहरा अवसर प्राप्त हुआ है।
ऐसे में भाजपा के नेता एवं कर्नाटक के पूर्व मुख्यमंत्री बीएस येदियुरप्पा को सदन में सबसे बड़ी पार्टी के प्रमुख नेता होने के नाते एक बार फिर सरकार बनाने के लिए निमंत्रण दिया गया। इसके बाद शुक्रवार को बीएस येदियुरप्पा ने मुख्यमंत्री पद की शपथ ली। उन्हें सोमवार तक अपनी पार्टी का बहुमत सदन में सिद्ध करने का अवसर दिया गया है। बतौर मुख्यमंत्री ये येदियुरप्पा का चौथा कार्यकाल होगा, और ऐसा करने वाले वे राज्य के प्रथम मुख्यमंत्री हैं।
बीएस येदियुरप्पा का कर्नाटक के मुख्यमंत्री के तौर पर चुना जाना काफी स्वाभाविक है, इसलिए भी क्योंकि उनके जुझारू नेतृत्व से पूरा कर्नाटक भली भांति परिचित है, और इसलिए भी क्योंकि भाजपा के पास कर्नाटक में येदियुरप्पा के अलावा वैकल्पिक नेतृत्व के तौर पर कोई भी बड़ा नेता उपलब्ध नहीं है।
पर आखिर बीएस येदियुरप्पा भाजपा के लिए इतने खास क्यों है? क्या कारण है कि उनका विकल्प ढूंढने में भाजपा को अच्छी ख़ासी दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है। बुकानकेरे सिद्दीलिंगप्पा येदियुरप्पा कर्नाटक भाजपा के वरिष्ठ नेता है, जिनका जन्म 27 फरवरी 1943 को मैसूर राज्य में मांड्या जिले में स्थित बुकानकेरे ग्राम में हुआ था। गरीबी के कारण उन्हें बचपन से ही काफी कठिनाइयों का सामना करना पड़ा, लेकिन अपने दृढ़ निश्चय के कारण येदियुरप्पा सभी कठिनाइयों से जूझते हुए सफलता की सीढ़ियाँ चढ़ते ही चले गए।
कॉलेज के समय से ही राजनीतिक रूप से सक्रिय येदियुरप्पा 1970 तक आते आते राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से भी जुड़ गए। उन्होंने आपातकाल के विरुद्ध अपनी आवाज़ उठाई, जिसके कारण उन्हें बेल्लारी और शिमोगा के कारागारों में भी रहना पड़ा।
इसके बावजूद येदियुरप्पा के हौसले कभी पस्त नहीं हुए और धीरे-धीरे उन्होंने बतौर भाजपा नेता सफलता के कई अहम पड़ाव भी पार किए। 1980 में उन्हें भाजपा के शिकारपुरा तालुका इकाई का अध्यक्ष बनाया गया, जिसके बाद से उन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा। फिर चाहे वो 1983 से लेकर अब तक छह बार कर्नाटक विधानसभा में भाजपा का प्रतिनिधित्व करना हो, या फिर 1994 और 2004 के सत्र में नेता प्रतिपक्ष बनना हो, बीएस येदियुरप्पा ने कर्नाटक में भाजपा के लिए एक मजबूत आधार तैयार करने में सर्वाधिक योगदान दिया है।
शायद यही कारण था की उन्हें एचडी कुमारस्वामी ने 2006 में जेडीएस और भाजपा के गठबंधन में बनी सरकार में बतौर उप मुख्यमंत्री चुना था। लेकिन आंतरिक मतभेद के कारण ये गठबंधन की सरकार गिर गयी और राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू हो गया लेकिन वर्ष 2007 में जेडीएस ने भाजपा को समर्थन दिया और तब पहली बार येदियुरप्पा राज्य के मुख्यमंत्री बने। ये सरकार दस दिन भी नहीं चल सकी। वर्ष 2008 में कर्नाटक के विधानसभा चुनाव में बड़ा फेरबदल हुआ तब बीएस येदियुरप्पा ने आगे बढ़कर कर्नाटक में भाजपा की लोकप्रियता को न केवल एक नई ऊंचाई पर पहुंचाया, अपितु भाजपा को अप्रत्याशित बहुमत से चुनावों में जीत दर्ज करवाने में भी अहम भूमिका निभाते हुए पार्टी को पहली बार सत्ता पर आसीन होने का गौरव दिलाया। पर 30 नवंबर 2012 को भ्रष्टाचार का आरोप लगने के बाद उन्हें विधानसभा से इस्तीफा देना पड़ा। इसके बाद उन्होंने बीजेपी की प्राथमिक सदस्यता भी छोड़ दी और नई पार्टी ‘कर्नाटक जनता पक्ष’ का गठन किया। इसके बाद वर्ष 2014 में मोदी लहर के बीच 2 जनवरी 2014 को येदियुरप्पा ने अपनी पार्टी का भाजपा में विलय कर दिया।
वर्ष 2014 में लोकसभा चुनाव में लिंगायत समुदाय के सबसे बड़े नेता येदियुरप्पा शिमोगा जिले से चुनाव जीतकर संसद पहुंचे लेकिन तब राष्ट्रीय राजनीति की बजाय कर्नाटक में ही काम करने का विकल्प चुना। वर्ष 2016 में उन्हें बीजेपी का प्रदेश अध्यक्ष नियुक्त किया गया। इसके बाद उनके नेतृत्व में वर्ष 2018 के कर्नाटक विधानसभा चुनाव में भाजपा 104 सीटें जीतने कामयाब रही। इसके बाद सबसे बड़ी पार्टी होने के साथ ही भाजपा ने सरकार बनाने का दावा पेश किया और सरकार बनी। बीएस येदियुरुप्पा ने मुख्यमंत्री पद की शपथ ली परन्तु 8 सीटें कम पड़ने की वजह से सरकार बहुमत साबित नहीं कर पाई और सरकार गिर गयी। अब फिर से भाजपा को सरकार बनाने का अवसर मिला लेकिन फिर से 76 वर्षीय येदियुरप्पा को ही मुख्यमंत्री बनाया गया। लेकिन अब लोगों के जहन में ये सवाल उठ रहा है कि कि सक्रिय राजनीति की 75 साल की बीजेपी की कटऑफ सीमा को पार कर चुके 76 वर्षीय बीएस येदियुरप्पा को चौथी बार कर्नाटक के मुख्यमंत्री की कमान क्यों सौंपी गयी?
दरअसल, भाजपा में भाजपा के पास कर्नाटक में नेतृत्व की भारी कमी है। यूं तो राज्य का कैबिनेट कुशल नेताओं को तैयार करने के लिए एक अच्छा माध्यम सिद्ध हुआ है, चूंकि अधिकांश भाजपा नेताओं ने अपना कार्यकाल विपक्ष में ही बिताया है, इसलिए राज्य की भाजपा इकाई में येदियुरुप्पा जैसा लोकप्रिय चेहरा नहीं है। कई लोगों का मानना है कि दिवंगत नेता अनंत कुमार मुख्यमंत्री के लिए एक उचित विकल्प हो सकते थे, परंतु उनकी मृत्यु से भाजपा को एक काफी क्षति पहुंची है।
ऐसे में अब समय आ गया है कि भाजपा सदन में बहुमत सिद्ध करने के पश्चात कर्नाटक में अपने लिए कुशल नेतृत्व के लिए नयी पीढ़ियों को तैयार कर सके। उदाहरण के लिए दक्षिण बेंगलूर से सांसद तेजस्वी सूर्या को युवा नेता के तौर तैयार करने के लिए प्रशिक्षित किया जा सकता है। इससे येदियुरप्पा के जाने पर भाजपा के पास न केवल कुशल नेतृत्व होगा, अपितु समय आने पर राजनीतिक संकटों से निपटने के लिए उचित विकल्प भी उपलब्ध रहेगा।