“वंशवाद की राजनीति से सबसे अधिक नुकसान संस्थाओं को हुआ है। प्रेस से पार्लियामेंट तक। सोल्जर्स से लेकर फ्री स्पीच तक। कॉन्स्टिट्यूशन से लेकर कोर्ट तक। कुछ भी नहीं छोड़ा।“ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जब यह ट्वीट किया तो यह किसी को नहीं पता था कि प्रधानमंत्री का यह संदेश चुनाव के दौरान देश की जनता में घर कर जाएगा। जब चुनाव के परिणाम आए तो यह साबित भी हो गया। आम जनता ने परिवारवाद की राजनीति को सिरे से नकार दिया था। कई बड़े नेताओं के बेटे से लेकर भाई भतीजे चुनाव हार चुके थे। इसका परिणाम यह है कि कई नेता अपनी खुद की जमीन बचाने में लगे हैं और फिर से अपने परिवार को फिर से बचाने की जुगत में है। एक मीडिया रिपोर्ट के अनुसार उत्तर प्रदेश के आगामी उपचुनाव में समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव अपनी पत्नी को एक बार फिर से चुनाव के मैदान में उतारने वाले हैं।
मीडिया की रिपोर्ट के अनुसार2019 के आम चुनाव में कन्नौज से हारने वाली सपा प्रत्याशी और अखिलेश यादव की पत्नी आगामी विधानसभा उपचुनाव में प्रत्याशी के तौर पर खड़ी हो सकती हैं। दरअसल, समाजवादी पार्टी के विवादित नेता आज़म खान के लोकसभा में चुने जाने के कारण रामपुर विधानसभा सीट खाली हो गयी है। कयास यह लगया जा रहा है कि अखिलेश रामपुर सीट से अपनी पत्नी डिंपल यादव को उतार सकते है। रामपुर सीट एक तरह से डिंपल यादव के लिए सुरक्षित मानी जा रही है क्योंकि आजम खान इस सीट से कई बार चुनाव जीत चुके हैं। और इस वक्त आजम खान रामपुर से लोकसभा सांसद भी हैं। बताया जा रहा है कि सांसद आजम खान भी इसके समर्थन में हैं। इन रिपोर्ट्स को देख कर यह कहा जा सकता है कि अखिलेश पार्टी के उन नेताओं की महत्वाकांक्षाओं पर पानी फेर देंगे जो इस बार टिकट के लिए उम्मीद लगाये बैठे थे।
बता दें कि लोकसभा के चुनाव में भी हरियाणा में हुड्डा वंश से लेकर, राजस्थान में अशोक गहलोत और मध्य प्रदेश में सिंधिया और कमलनाथ, बिहार में लालू यादव परिवारवाद को बढ़ावा दिया। महाराष्ट्र में पवार वंश तो कर्नाटक में देवेगौड़ा ने परिवारवाद की राजनीति करते रहे हैं। लेकिन देश की जनता ने प्रधानमंत्री के संदेश को ध्यान में रख कर ही वोट किया था। 2019 के लोकसभा चुनावों में अशोक गहलोत, कमलनाथ, शरद पवार और मल्लिकार्जुन खड्गे ने लोकसभा चुनावों में प्रभावी नेताओं के बजाए अपने बेटों को मैदान में उतारा था और पार्टी के लिए प्रचार प्रसार छोड़ बेटों की जीत के लिए जी जान लगा दी थी। तब जनता ने इन सभी परिवारों को चुनाव में नकार दिया था। परिवारवाद की राजनीति करने वाले गांधी परिवार से लेकर सिंधिया तक सभी को हार नसीब हुई थी। कमलनाथ और पी चिदम्बरम के बेटे को ही जीत नसीब हो पायी थी।
लोकसभा चुनाव में भी सपा ने अपने परिवार के सदस्यों को ज्यादा महत्व दिया था जबकि पार्टी के अन्य मजबूत नेताओं को अनदेखा कर दिया था। उत्तर प्रदेश में अखिलेश और मुलायम सिंह यादव के अलावा कोई भी चुनाव में जीत हासिल नहीं कर सका था। लेकिन फिर भी ये पार्टी प्रमुख पार्टी छोड़ अपनों को ही बचाने के लिए रणनीति बनाते दिख रहे है। इस वजह से पार्टी के कार्यकर्ताओं के मनोबल भी कम हो रहा है। पिछले बार टिकट न मिलने से निराश सपा पार्टी के नेताओं को इस बार भी निराशा ही मिलने वाली है।
प्रधानमंत्री के अच्छे शासन से और विकास के प्रति उनकी रणनीतियों से देश की जनता में उनकी लोकप्रियता बढ़ी है। ऐसे में परिवारवाद की राजनीति करने वालों के लिए पार्टी को बचाना ही मुश्किल हो गया है ऐसे में वो अब अपने परिवार के सदस्यों को राजनीति में बनाये रखने के लिए प्रयास कर रहे हैं। यही वजह है कि एक अच्छे पति का धर्म निभाते हुए अखिलेश यादव आगामी विधानसभा उपचुनाव में उतारने वाले हैं। वो समझ चुके हैं कि पार्टी का प्रदर्शन तो कुछ ख़ास नहीं होगा कम से कम उनकी पत्नी विधायक बन जायें। अब अखिलेश यादव की ये रणनीति कितनी कारगार होती है और डिंपल यादव को इस बार जीत नसीब होती है या नहीं ये तो आने वाला वक्त ही बताएगा।