“यह सरकार देश का विकास करने के लिए आयी है, न कि चीजों को नष्ट करने के लिए। क्योंकि यह समय पुनर्निर्माण का समय है।” जब सरदार पटेल ने जूनागढ़ में सोमनाथ मंदिर के जीर्णोद्धार के समय यह भाषण दिया था तब ऐसा लगा था मानों आक्रमण, लूट, बर्बरता, उपनिवेशवाद , साम्राज्यवाद, हिंसा, युद्ध और फिर आज़ादी के बाद अब फिर से हमारा भारतवर्ष अपने चरमोत्कर्ष पर होगा। लेकिन सरदार पटेल की मृत्यु के बाद जवाहरलाल नेहरू द्वारा खाद्य एवं कृषि मंत्री केएम मुंशी को यह कहना कि “सोमनाथ का जीर्णोद्धार करना मुझे पसंद नहीं है। इससे हिन्दुओं का पुनर्जागरण होगा”। इस कथन ने देश में हिंदुओं के भविष्य में पुनरुत्थान पर सवालिया निशान लगा दिया था।
भारत दुनियां की सबसे पुरानी सभ्यताओं में से एक हैं, जो 10000 से अधिक वर्षों से चली आ रही है और जिसने अनेक रीति-रिवाजों और परम्पराओं का संगम देखा है। यह देश की समृद्ध संस्कृति और विरासत का परिचायक है। भारत का इतिहास और संस्कृति गतिशील है और यह मानव सभ्यता की शुरूआत तक जाती है। यह सरस्वती नदी की रहस्यमयी संस्कृति से शुरू होती है और भारत के दक्षिणी इलाकों में किसान समुदाय तक जाती है। सनातन धर्म के समकालीन संस्कृतियों का नष्ट होना यह सिद्ध करता है कि हमारी सभ्यता आज भी गतिशील है और आगे भी रहेगी।
भारत पर उम्मयद खलीफा ने डमस्कस में बलूचिस्तान और सिंध पर 711 में मुहम्मद बिन कासिम के नेतृत्व में चढ़ाई कर इस्लामी आक्रमण की शुरुआत की थी। और यह आज भी दिल्ली के 100वर्ष पुराने मंदिर पर हमले के रूप में जारी है। उसकी मौत के 300 साल बाद महमूद गजनवी ने राजपूतों तथा समृद्ध हिंदू मंदिरों पर हमलों की एक श्रृंखला आरंभ की थी। तथा अपने भविष्य के हमलों के लिए पंजाब में अपना एक आधार स्थापित किया। वर्ष 1024 में इस मुस्लिम सुल्तान ने सोमनाथ पर हमला किया और साथ ही अनेक प्रतिष्ठित हिंदू मंदिरों पर आक्रमण कर हिन्दू सभ्यता पर हमला किया। तब से यह मोहम्मद गोरी, क़ुतुबुद्दीन ऐबक, इल्तुतमिश,और, बलबन, अल्लाउद्दीन खिलजी, मुहम्मद बिन तुगलक, तैमूर, लोदी सल्तनत और फिर बाबर से लेकर औरंगजेब जैसे मुगलों ने आक्रमण, लूट, बर्बरता, उपनिवेशवाद, साम्राज्यवाद, हिंसा, युद्ध और फिर आतंक से इस देश के हिंदुओं को खत्म करने का हरसंभव प्रयास किया। करोड़ों हिंदुओं के हत्याओं के साथ-साथ इन बर्बर आक्रमणों में भारतीय मंदिरों और परंपराओं, अयोध्या में रामजन्मभूमि मंदिर, गुजरात में सोमनाथ मंदिर, वाराणसी में काशी विश्वनाथ मंदिर, मथुरा में कृष्ण जन्मभूमि मंदिर, बिहार में नालंदा, मार्तंड में सूर्य मंदिर सिर्फ कुछ उदाहरण है। अपनी मातृभूमि में बहुसंख्यक होने के बावजूद हिन्दू दासों की जिंदगी जी रहे थे।
मध्यकालीन भारत के बाद अंग्रेजों के शासन में आने के बाद स्थितियां और भी बिगड़ी। भारत के लोग अपना धन तो लुटा ही चुके थे, अंग्रेजों ने आधुनिकीकरण के नाम पर उनकी आत्मा को भी गुलाम बना लिया। इतिहास लिखने के नाम पर इतिहास के साथ छेड़छाड़ किया या यूं कहें लगभग पूरी तरह से अपने मुताबिक बदलकर रख दिया था। ऐसा करने के पीछे उनकी मंशा भारतियों को उनकी मूल जड़ों से अलग करने का था।
अंग्रेज़ो ने भारत की शिक्षा प्रणाली को तोड़ कर रख दिया। भारत की शिक्षा को मैकाले मिनट्स ने उसी तरह बर्बाद किया जिस तरह मध्यकाल में मुस्लिम आक्रान्ताओं ने मंदिरो को तोड़ कर किया था। अंग्रेजों और नेहरू-इंदिरा के लाडले भारतीय इतिहासकारों ने विकृत इतिहास लिखे और अंग्रेजों ने ‘आर्यन इन्वेजन थ्योरी’ को विकसित किया जिसने भारत के राज्यों को नस्ल के आधार पर आर्यों-द्रविड़ों में बांटने का काम किया और यही दक्षिणी राज्यों के विभाजन का एक कारण था।
भारत की जनता पर आक्रमणकारियों ने जिस तरह का अत्याचार किया, उन्हें बांटा, यातनाएं दी, उनके मन में जहर घोला, यहां तक कि उनके धर्म को भी परिवर्तन करने का काम किया, क्या जनता का ये दर्द इन बुद्धिजीवियों को नहीं दिखाई दिया? ये वर्षों से भारत की जनता के साथ होता आया है और आज भी कई जगहों पर अक्सर देखने को मिलता है।
आज भी हम यह दावे के साथ कह सकते है कि भारत में बहुसंख्यक होने के बावजूद लगातार हमलों का कारण सिर्फ और सिर्फ हमारे अंदर वर्षो से भरी गयी हीनभावना है जो इस्लामी हमलों के बाद से अँग्रेज़ो और फिर काँग्रेस के शासन काल में बढ़ता चला गया। यह हीनभावना हमारे विकृत इतिहास से ही पैदा होती है।
आज हमारे अंदर यही हीनभावना इतना घर कर चुकी है कि हम अपने आत्मसम्मान और हमारी संस्कृति यहां तक कि धर्म पर हो रहे हमलों का विरोध नहीं करते। पर सवाल ये है कि दशकों से जो हमले हिंदुओं ने सहे हैं वो कब तक सहेंगे? वो कब अपने अंदर की आवाज को सुनेंगे और कब इन हमलों के जवाब के लिए एकजुट होंगे? हालांकि, मोदी सरकार के सत्ता में आने के बाद से बीते वर्षों में हिंदुओं ने आवाज उठानी शुरू की है। अपने हक़ के लिए लड़ना शुरू किया है, सोशल मीडिया पर उनकी सक्रियता भी बढ़ी है। लेकिन अभी भी वो मोदी-शाह जैसे बड़े नेताओं की तरफ उम्मीद से देखते हैं कि वो उनके लिए आवाज उठाएंगे।
सच कहूं को भारत में हिंदुओं की स्थिति ऐसी कर दी गयी कि हर बार वो बेचारे बनकर अपने नेताओं की ओर देखते हैं कि वो आयें और हमारे लिए आवाज उठाएं। चलो मान भी लें कि वो मदद के लिए सामने आयेंगे लेकिन कहां कहां? हर जगह स्थिति एक समान नहीं होती और न ही हर जगह कोई हमें बचाने के लिए आएगा। कभी ऐसा वक्त भी आता है जब कुछ कठिन निर्णय स्वयं लेने पड़ते हैं। यही समय है जागने का और अपने पूर्वजो से प्रेरणा लेकर इन हमलों का प्रतिरोध करने का। अगर हमने अपने पूर्वजों की तरह फिर से अपने बलबूते और अपने शौर्य से इन हमलों का प्रतिरोध नहीं किया तो वह दिन दूर नहीं जब हम फिर से उसी मध्यकालीन युग में प्रवेश कर जाएंगे जहाँ हिन्दुओं को भी जज़िया देना पड़ता था, शरीया कानून मानना पड़ता था। अब हमें फिर से राजा पुरू, मर्तण्ड वर्मा, लचित, महारणा प्रताप, शिवाजी, बाजीराव जैसे इतिहास के बड़े योद्धाओं से सीख लेकर अपना भविष्य और अपनी अगली पीढ़ी के लिए एक स्वस्थ समाज का निर्माण करने के लिए खुद को तैयार करना होगा। इससे आने वाली पीढ़ी भारतीय संस्कृति और सभ्यता की मूल जड़ों से जुड़ी रहेगी और सनातन को एक नई उंचाई पर ले जाएगी।