वर्ष 2013 में जब चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग कजाकिस्तान और इंडोनेशिया के दौरे पर गए थे तो तब उन्होंने चीन के बीआरआई परियोजना को दुनिया के सामने रखा था। तब चीन ने बताया था कि इस प्रोजेक्ट का मकसद इनफ्रास्ट्रक्चर के माध्यम से एशिया को यूरोप, अफ्रीका और मिडिल ईस्ट देशों के साथ जोड़ना होगा।
चीन ने पिछले कुछ वर्षों में इस दिशा में काम किया और अब तक दुनिया के लगभग 126 देशों ने इस प्रोजेक्ट पर चीन के साथ मिलकर काम करने के लिए दस्तावेजों पर हस्ताक्षर कर भी दिये हैं। हालांकि, इस प्रोजेक्ट की आड़ में चीन की राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं का विषैला एजेंडा भी किसी से छुपा नहीं है।
चीन ने इस प्रोजेक्ट के तहत आर्थिक रूप से कमजोर देशों को भारी-भरकम कर्ज़ दिये ताकि उनपर अपना प्रभुत्व कायम किया जा सके। हालांकि, चीन के BRI का जवाब देने के लिए भारत भी अब LOC यानि लाइन ऑफ क्रेडिट फोर्मूले पर काम कर रहा है। इस फोर्मूले के तहत भारत द्वारा 63 देशों में 28 बिलियन डॉलर के इनफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट्स को विकसित किया जा रहा है।
पिछले हफ्ते लोकसभा में एक सवाल के जवाब में विदेश राज्यमंत्री वी मुरलीधरन ने यह जानकारी दी कि भारत अपने 63 सहयोगी देशों के साथ मिलकर आर्थिक प्रोजेक्ट्स के विकास पर काम कर रहा है। भारत ने इन देशों में ऊर्जा, यातायात, कनेक्टिविटी, कृषि और सिंचाई जैसे क्षेत्रों के विकास के लिए LOC लाइन ऑफ क्रेडिट जारी किए हैं, लाइन ऑफ क्रेडिट के तहत भारत अप्रत्यक्ष रूप से इन प्रोजेक्ट्स की फंडिंग कर रहा है।
बता दें कि जब भारत किसी भी देश को LOC जारी करता है, तो उस देश के पास एक तय सीमा तक राशि को उधार लेने का अधिकार प्राप्त हो जाता है। इस तरह उस देश को सिर्फ उतनी ही राशि पर ब्याज देना होगा, जो उसने ब्याज पर ली होगी। इस प्रक्रिया के तहत ना तो भारत पर एक दम कोई आर्थिक प्रभाव पड़ेगा, और कर्ज़ लेने वाला देश भी अपनी आर्थिक स्थिति के हिसाब से एलओसी की सीमा का सही इस्तेमाल कर सकेगा।
भारत सरकार के आंकड़ों के मुताबिक 28 बिलियन के कुल प्रोजेक्ट्स में से लगभग 5 बिलियन डोलर्स के प्रोजेक्ट पूरे हो चुके हैं, जबकि 19 बिलियन डॉलर के प्रोजेक्ट्स पर अभी काम चल रहा है। इन प्रोजेक्ट्स में से लगभग 6.6 बिलियन डॉलर के प्रोजेक्ट पर भारत के 5 पड़ोसी देशों में तो काम भी शुरू हो चुका है। ऐसा करके जहां भारत को इन देशों का कूटनीतिक समर्थन हासिल होगा, तो वहीं दूसरी तरफ इन देशों में भारत का प्रभुत्व भी बढ़ेगा।
एक नज़र डाली जाए तो भारत का यह कार्यक्रम चीन के बीआरआई प्रोजेक्ट की सभी त्रुटियों का हल निकालने वाला कार्यक्रम है। बीआरआई की वजह से पूरी दुनियाभर में चीन की आलोचना होती रही है। कई देश तो बीआरआई से अपना हाथ भी पीछे खींच चुके हैं। मलेशिया में पिछले वर्ष महातीर मोहम्मद की नई सरकार आते ही वहां की सरकार ने इस प्रोजेक्ट से अपने आप को अलग करने का ऐलान कर दिया था। चीन मलेशिया में लगभग 23 बिलियन डॉलर के प्रोजेक्ट पर काम कर रहा था और मलेशिया का अपने आप को इस प्रोजेक्ट से बाहर कर लेना चीन के लिए एक बड़ा झटका माना गया था।
इसी तरह पाकिस्तान, मयांमार और बांग्लादेश जैसे देशों में भी इस प्रोजेक्ट के दूरगामी आर्थिक प्रभावों को लेकर प्रश्न उठाए जाते रहे हैं। दरअसल, वर्ष 2017 में चीन के भारी भरकर कर्ज के बोझ तले दबकर श्री लंका को रणनीतिक दृष्टि से महत्वपूर्ण हम्बनटोटा पोर्ट को 99 वर्ष के लिए चीन को लीज पर देना पड़ा था।
अगर चीन के बीआरआई और भारत के एलओसी कार्यक्रम का एक तुलनात्मक अध्ययन किया जाये, तो यह स्पष्ट है कि भारत की इस योजना के तहत अन्य देशों के हितों को प्राथमिकता दी जाती है जबकि, बीआरआई के तहत चीन के प्रभाव में बनाई गई शर्तों को प्राथमिकता दी जाती है। स्पष्ट है कि अगर किसी देश को बीआरआई और एलओसी में से किसी एक योजना को चुनने का विकल्प दिया जाए, तो वह देश बिना समय गवाएं, भारत के साथ साझेदारी को आगे बढ़ाना चाहेगा।
भारत भी अपने एलओसी योजना के तहत अपने पड़ोसी देशों से लेकर अफ्रीका के देशों तक अपना प्रभुत्व बढ़ाने की कोशिश कर रहा है। अफ्रीका में अभी चीन का प्रभाव भारत से कई गुना ज़्यादा है लेकिन इसके साथ ही चीन और अफ्रीकी देशों में अविश्वास की भावना बढ़ी है। यह भारत के लिए एक अच्छा अवसर हो सकता है। भारत के एलओसी कार्यक्रम से चीन की उस चाल को गहरा झटका पहुंचेगा जिसके तहत वह चीन-पाकिस्तान इकनॉमिक कॉरीडोर और नेपाल के साथ मिलकर भारत को घेरने की कोशिश करता आया है। भारत का यह कार्यक्रम सराहना के योग्य है और इसके काफी सकारात्मक दूरगामी प्रभाव होंगे।