कर्नाटक में गिरी कांग्रेस-जेडीएस की सरकार, कुमारस्वामी के मुख्यमंत्री करियर पर एक नजर

कुमारस्वामी कर्नाटक

(PC: rediff.com)

कर्नाटक की सरकार गिर चुकी है। कांग्रेस-जेडीएस गठबंधन की सरकार मंगलवार को विधानसभा में विश्वास मत हार गयी। इस दौरान सरकार के पक्ष में 99 जबकि विपक्ष में 105 वोट पड़े थे। इसके बाद एचडी कुमारस्वामी को अपने पद से इस्तीफा देना पड़ा। हालांकि, इस्तीफा देने से पहले भी कुमारस्वामी के प्रपंच खत्म नहीं हुए।

जबसे कांग्रेस-जेडीएस के बेमेल गठबंधन की सरकार कर्नाटक में बनी थी वो आये दिन किसी न किसी वजह से चर्चा में रहती थी।दोनों ही पार्टियों ने सत्ता के लालच में गठबंधन तो कर लिया लेकिन एकजुट होकर सरकार चलाने में असफल रहीं। मुख्यमंत्री पद स्वीकार तो कुमारस्वामी ने बड़े शान से किया था लेकिन वो काम कम रोते ज्यादा थे। कभी ‘कांग्रेस मेरी नहीं सुनती’ का रोना तो कभी ‘मैं मजबूर हूं का रोना’, कभी किसानों के सामने रोना, मीडिया के समक्ष रोना। ये आये दिन उनके जीवन का हिस्सा सा बन गया था। अंततः 14 महीने की उठापटक के बाद ये अस्थिर सरकार विश्वास मत हार गयी। ये कुमार स्वामी का कमजोर नेतृत्व और उनकी अक्षमता को दर्शाता है जो पार्टी को एकजुट रखने की बजाय रोने-धोने और विदेशी सैर में ज्यादा व्यस्त थे।

एचडी कुमारस्वामी पूर्वप्रधानमंत्री एचडी देवे गोड़ा के पुत्र है। और कन्नड़ फिल्मों के जाने माने निर्माता यानि फिल्मों को प्रोड्यूस करते है। यह फिल्म जगत और राजनीति में सीडी कुमार के नाम से भी जाने जाते है। इन्हें अपने विरोधियों के भ्रष्टाचार की सीडी बनाने के लिए मिला था। राजनीति में आने के बाद से वो दो बार कर्नाटक के मुख्यमंत्री बन चुके हैं लेकिन दोनों ही बार वो अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर सके।

पहली बार कुमारस्वामी 3 फरवरी 2006 से 9 अक्टूबर 2007 तक कर्नाटक के मुख्यमंत्री बने थे।उस समय भाजपा ने समर्थन देकर कुमारस्वामी की सरकार बनाने में मदद की थी लेकिन कुमारस्वामी के अक्षम नेतृत्व के कारण जल्द ही सरकार गिर गयी थी। दूसरी बार कांग्रेस के साथ मिलकर कुमारस्वामी ने 23 मई 2018 को राज्‍य की कमान संभाली थी। परन्तु ये सरकार भी उनके असफल नेतृत्व के कारण ज्यादा दिनों तक नहीं टिक सकी।

इस बार सरकार गिरने के संकेत तो पहले ही मिल गये थे जब ये बेमेल गठबंधन सत्ता में आई। पहला इन दोनों पार्टियों की अवसरवादिता, दूसरा इन दोनों पार्टियों की विचारधारा में अंतर और तीसरा एचडी कुमारस्वामी का कमजोर नेतृत्व भी एक कारण था। और यही हुआ भी यह सरकार सिर्फ 14 महीने ही चल पाई। इन 14 महीनों में कुमारस्वामी की छवि एक ऐसे कमजोर नेता के रूप में उभरी जो न ही कोई निर्णय खुद से लेने में सक्षम थे और न जनता के हित में कुछ करने में।

कुमारस्वामी की इस सरकार से बिखरे जनादेश की खामियां उभरकर सामने आयीं कि कैसे गठबंधन में सहयोगी पार्टी की मांगे मानने के अलावा और कोई विकल्प नहीं बचता है।

हालांकि, कुमारस्वामी अपनी इस हालत के लिए जिम्मेदार खुद हैं। उन्होंने सरकार बनाने के कुछ दिनों बाद ही यह स्पष्ट कर दिया था कि उनकी वफादारी कांग्रेस के प्रति है न कि कर्नाटक के लोगों के प्रति। कुमारस्वामी ने मुख्यमंत्री बनने के कुछ दिनों बाद अपने एक बयान में कहा था कि ‘मैंने राज्य की जनता से स्पष्ट जनादेश की अपील की थी, लेकिन अब मैं यहां कांग्रेस की वजह से हूं और इसके लिए मैं कांग्रेस का ऋणी हूं, मैं यहां कर्नाटक की 6 करोड़ की जनता के जनादेश की वजह से नहीं हूं।’ इस बयान से स्पष्ट था कि कुमारस्वामी के लिए सत्ता सबसे पहले है और इसके लिए सहयोगी पार्टी की ‘हां में हां’ मिलाना पड़े तो वो भी करेंगे। भले इससे आम जनता के हितों को क्यों न अनदेखा करना पड़े। हालांकि, वो गठबंधन की सरकार में अपनी लाचारी का रोना रोने का कोई मौका नहीं छोड़ते थे।

यही वजह है कि कुमारस्वामी की अयोग्यता बार-बार जनता के सामने एक्सपोज होती रही है। पिछले वर्ष जुलाई में ही वह एक सार्वजनिक कार्यक्रम के दौरान गठबंधन की मजबूरीयों पर रोते दिखे थे। अपनी नम आँखों से उन्होंने कहा था,” मैं वर्तमान की परिस्थितियों से खुश नहीं हूं। मैं गठबंधन का जहर पी रहा हूं।“ कुमारस्वामी ने कार्यक्रम में कहा था, “चुनाव के बाद मेरे कार्यकर्ता काफी खुश थे, उन्हें लग रहा था कि उनके भाई को सीएम बनाया गया है। लेकिन वह आज के हालात से खुश नहीं हैं।“ 

इस वर्ष जनवरी में फिर से उन्हें रोते हुए देखा गया था। एक कार्यक्रम के दौरान वह बोले,”वे हर चीज में कांग्रेस के लगातार हस्तक्षेप के कारण मुख्यमंत्री नहीं, बल्कि एक क्लर्क की तरह काम कर रहे हैं।“ कुमारस्वामी इस हालत के बावजूद राज्य की सत्ता में बैठे रहना चाहते थे। ये उनके निजी स्वार्थ को ही दर्शाता है कि कैसे वह सत्ता की लालच के कारण इस्तीफा नहीं दे रहे।

कुमारस्वामी सिर्फ पार्टी और गठबंधन में ही नहीं असफल रहे बल्कि प्रशासनिक संचालन में भी नाकामयाब रहे है। कर्नाटक में कृषि संकट और किसानों की आत्महत्या भी उनके कार्यकाल में अपने चरम पर रही है। जब से कुमारस्वामी की सरकार बनी थी तब से ले कर पिछले वर्ष के दिसम्बर तक लगभग 250 किसान आत्महत्या कर चुके थे। और इस स्थिति से निपटने में कुमारस्वामी की जेडीएस और कांग्रेस की गठबंधन वाली सरकार फ़ेल रही थी। पिछले वर्ष नवंबर में मांड्या के एक किसान ने अत्महत्या की और अपने सुसाइड नोट में कुमारस्वामी की सरकार को दोषी बताया था।

अपने प्रभावहीन शासन के तरीके और गठबंधन पर कंट्रोल न होने के कारण लगातार कांग्रेस के दबाव में रोते रहने वाले कुमारस्वामी कभी भी सत्ता के दौरान सुखद स्थिति में नहीं दिखे। लेकिन सबसे बड़ा सवाल यह उठता है कि गठबंधन में सहयोगी पार्टी का इतना दबाव होने बाद भी वो 14 महीनों तक सीएम की कुर्सी पर क्यों बैठे रहे? यह उनके सत्ता पर बने रहने के स्वार्थ को दर्शाता है जिस वजह से इतने दबाव के बाद भी 14 महीनों तक वह अपनी अवहेलना झेलते रहे। अपने लोभ के कारण कर्नाटक की जनता के साथ 14 महीनों तक धोखा करते रहे। अपने इस छोटे कार्यकल के दौरान कर्नाटक के लोगों की उपेक्षा कर कांग्रेस के विधायकों को ही खुश करने में व्यस्त रहे।

ऐसे में उनके इस छोटे से कार्यकाल को देखते हुए ये कहना गलत नहीं होगा कि कुमारस्वामी को अब तक के सबसे खराब मुख्यमंत्रियों में से एक गिना जाएगा।

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