कहते हैं कि स्वस्थ लोकतन्त्र के लिए स्वतंत्र और निष्पक्ष मीडिया का होना बहुत ज़रूरी है। हालांकि, विडम्बना यह है कि हमेशा लोकतन्त्र को खतरे में बताने वाला डिज़ाइनर पत्रकारों का गैंग खुद पत्रकारिता के सभी मानकों की धज्जियां उड़ा रहा है। अभी कुछ दिनों पहले न्यूज़ 18 और नेशनल हेराल्ड जैसे मीडिया संस्थानों ने इस खबर को प्रकाशित किया कि लखनऊ में एक 76 वर्षीय बूढ़े व्यक्ति को शताब्दी एक्स्प्रेस में उसकी सीट आरक्षित होने के बावजूद सिर्फ उसके पहनावे की वजह से ट्रेन में चढ़ने से रोक दिया गया। इस खबर को मोदी विरोधी लोगों ने हाथों-हाथ लिया और बिना किसी सत्यता की पुष्टि के इन लोगों ने पीएम मोदी और सीएम योगी पर हमला करना शुरू कर दिया।
एजेंडावादी मीडिया समूह और कांग्रेस का मुखपत्र कहे जाने वाले नेशनल हेराल्ड ने इस खबर के सहारे यूपी सीएम योगी पर निशाना साधने का बेहतरीन मौका ढूंढ निकाला। खबर में लिखा गया ’सीएम योगी के राज में 76 वर्षीय बाबा राम अवध दास के पास गाज़ियाबाद तक की स्थायी टिकट होने के बावजूद उन्हें शताब्दी ट्रेन में चढ़ने से रोक दिया गया। उनका कसूर सिर्फ इतना था कि उन्होंने धोती पहनी थी, और उनके हाथ में एक कपड़े का थैला और छाता था’। आगे रिपोर्ट में इस घटना की तुलना साउथ अफ्रीका में महात्मा गांधी को ट्रेन से नीचे उतारे जाने की घटना से भी करने की कोशिश की गई।
इस खबर को बुद्धिजीवी गैंग ने भी खूब प्रचारित किया और अपना एजेंडा आगे बढ़ाने की पूरी कोशिश की। कुमार विश्वास ने इस खबर पर ट्वीट करते हुए लिखा ‘बेशर्म आभिजात्य साम्राज्यवाद के ऐसे वर्णसंकर रेल अधिकारी मेरे टैक्स के पैसे से वेतन पा रहे हैं पीयूष गोयल? सारी सरकार 2मिनट में सौ बार “पूज्य बापू” बोलती है और हमारे घर के बुज़ुर्गों को ऐसे धकियाते हो जैसे अंग्रेज़ों ने रेल से उतारा था ! वक़्त से तो डरो’
https://twitter.com/DrKumarVishwas/status/1147834682794315778
हालांकि, अपना ट्वीट करने से पहले कुमार विश्वास ने तथ्यों को एक बार भी जांचने की कोशिश नहीं की। दरअसल, रेलवे ने इस पूरी घटना की जांच के बाद एक जांच रिपोर्ट पेश की है। इस रिपोर्ट में रेलवे ने इस बात का खुलासा किया है कि वह व्यक्ति रेलगाड़ी के पावर कोच में चढ़ना चाहता था, रेलवे के अफसरों ने उसे अपने कोच में जाने के लिए कहा। रेलवे की रिपोर्ट के मुताबिक जब तक वह बूढ़ा व्यक्ति अपने कोच तक पहुंच पाता, शताब्दी ट्रेन स्टेशन से चल पड़ी और वह वृद्ध व्यक्ति स्टेशन पर ही रह गया’। रेलवे ने अपनी रिपोर्ट में इस बात का भी दावा किया है कि रेलवे ने उस व्यक्ति से फोन पर बात करके भी इस बात की पुष्टि की है। यहां तक कि रेलवे ने उस वृद्ध व्यक्ति के जाने के लिए एक अन्य ट्रेन से जाने का विकल्प भी दिया था लेकिन वह व्यक्ति सड़क मार्ग के माध्यम से ही चला गया।
गौरतलब है कि उस व्यक्ति ने रेलवे को दी अपनी शिकायत में स्वयं भी यह कहीं अंकित नहीं किया है कि उसके साथ पहनावे के आधार पर भेदभाव किया गया। इस खबर को एजेंडावादी पत्रकारों ने अपनी सहूलियत के हिसाब से तोड़-मरोड़ कर पेश किया और यह झूठी खबर फैलाई।
मोदी सरकार के दोबारा चुने जाने के बाद अचानक से यह फेक न्यूज़ ब्रिगेड दोबारा एक्टिव हो गई है और जान-बूझकर झूठी खबरें फैलाकर लोगों के मन में सरकार के प्रति रोष उत्पन्न करना चाहती है। कभी दो पक्षों के मामूली झगड़ों को सांप्रदायिक रंग दे दिया जाता है तो कहीं खबरों को अपने हिसाब से तोड़-मरोड़ दिया जाता है। ऐसे पत्रकारों और झूठी खबरों से हम सबको सतर्क रहने की आवश्यकता है।