भारत दुनिया की सबसे तेज गति से विकास करने वाली अर्थव्यवस्थाओं में से एक है। भविष्य में विकास दर को और ज़्यादा बढ़ाने के लिए ग्रामीण भारत की अर्थव्यवस्था को मजबूत करना अति-आवश्यक है। केंद्र सरकार भी इस दिशा में लगातार काम कर रही है और ग्रामीण अर्थव्यवस्था के विकास के लिए सरकार ने अब एक नया विचार सामने रखा है। सरकार देश में अब गौ-केन्द्रित स्टार्ट अप्स को बढ़ावा देगी। दरअसल, 4 महीने पहले अन्तरिम बजट को पेश करने के दौरान सरकार ने ‘राष्ट्रीय कामधेनु आयोग’ को स्थापित किया था। अब यह आयोग इस दिशा में महत्वपूर्ण कदम उठाएगा। राष्ट्रीय कामधेनु आयोग के अध्यक्ष वल्लभ भाई कथूरिया के मुताबिक, इस दिशा में आयोग लगातार काम करेगा और गौ-आधारित उत्पादों की मार्केटिंग के लिए स्टार्ट अप्स की मदद करेगा। इसके अतिरिक्त आयोग स्टार्ट-अप्स को नई तकनीक मुहैया करवाने में भी अहम भूमिका निभाएगा।
राष्ट्रीय कामधेनु आयोग गौशालाओं की भी सहायता करेगा। आयोग तकनीक, ऋण या फंड के तौर पर गौ-शालाओं की मदद करेगा, ताकि गौ-आधारित उत्पादों को बढ़ावा दिया जा सके। इसके साथ ही यह आयोग ग्रामीण भारत में बेरोजगारी के संकट से जूझने में भी मदद करेगा। आयोग के अध्यक्ष कथूरिया के मुताबिक ‘आयोग ऐसे प्लान पर काम कर रहा है जिससे इस बात की पुष्टि की जा सके कि ग्रामीण भारत के हर घर में कम से कम एक गाय तो हो ही! अन्तरिम बजट में इस आयोग के लिए 500 करोड़ रुपये आवंटित किए गए थे ताकि इन सभी कामों को करने के लिए आयोग के पास पर्याप्त फंड मौजूद रहे।‘
हिन्दू धर्म में गौ-माता को पूजनीय माना गया है और अब सरकार गौ-माता के जरिये ही ग्रामीण अर्थव्यवस्था को बल देने का प्रयास करेगी। अभी ग्रामीण भारत की अर्थव्यवस्था में कृषि का सबसे अहम योगदान रहता है और अधिकतर ग्रामीण आबादी कृषि पर ही निर्भर रहती है। इस वजह से ग्रामीण युवकों को रोजगार के लिए बड़े शहरों का रुख करना पड़ता है। अब सरकार गांवों में गौ-पालन को कृषि के विकल्प के तौर पर प्रस्तुत करना चाहती है ताकि पशुपालन के माध्यम से भी ग्रामीण इलाकों में रोजगार प्रदान किया जा सके। इसका सबसे बड़ा फायदा होगा कि एक तरफ गांवों में रोजगार के अवसर बढ़ेंगे, तो दूसरी तरफ देश की अर्थव्यवस्था को इससे मजबूती मिलेगी। सरकार इस क्षेत्र के सभी अवसरों को भुनाने के लिए युवा उद्यमियों को सस्ते दरों पर ऋण प्रदान कर रही है ताकि गौ-उत्पादों की बेहतर ढंग से मार्केटिंग की जा सके।
राष्ट्रीय कामधेनु आयोग के अध्यक्ष के मुताबिक गौ-पालन के क्षेत्र के सभी अवसरों को भुनाने के लिए अति-आवश्यक काम नहीं किए जा रहे हैं। उनके अनुसार गौ-मूत्र के उपयोग से साबुन अथवा मच्छर मारने की दवाई और जैविक उर्वरक बनाए जा सकते हैं। यहां गौर करने वाली बात यह है कि कुछ गैर-सरकारी संगठन पहले ही इस दिशा में काम कर रहे हैं, लेकिन आयोग अब इस क्षेत्र में स्टार्ट अप्स को बढ़ावा देकर इस पूरी प्रणाली को एक नया आयाम देना चाहता है। इससे भारतवासी अपनी मूल जड़ों से भी जुड़ सकेंगे।
इतना ही नहीं, गाय के गोबर से बनने वाली खाद और बायोगैस के आर्थिक पहलुओं पर नज़र डाली जाए, तो ग्रामीण भारत के लिए यह पूरा कार्यक्रम क्रांतिकारी सिद्ध हो सकता है। हालांकि, दुर्भाग्य यह है कि पिछली सरकारों ने इस दिशा में कदम उठाने का कभी प्रयास तक नहीं किया। अब सरकार ने जब इन क्षेत्र में स्टार्ट-अप्स की एंट्री को आसान कर दिया है, तो अब हमें इस क्षेत्र में बड़ा निवेश देखने को मिल सकता है। मोदी सरकार द्वारा इस आयोग के गठन से देश की अर्थव्यवस्था को बल मिलना तय है।