आज से 50 साल पहले वर्ष 1969 में जब तत्कालीन प्रधानमंत्री इन्दिरा गांधी द्वारा बैंकों का राष्ट्रीयकरण किया गया था, तब सरकार ने दावा किया था कि इस कदम से ग्रामीण भारत तक बैंकों की पहुंच बढ़ेगी और सभी को देश की मुख्यधारा अर्थव्यवस्था से जुडने का मौका मिलेगा। हालांकि, इस कदम के माध्यम से सरकार ने देश से प्राइवेट बैंकिंग व्यवस्था की कमर तोड़ दी जिसका खामियाजा इस क्षेत्र को आज तक भुगतना पड़ रहा है। बैंकिंग सेक्टर में सरकार का ज़रूरत से ज़्यादा हस्तक्षेप बढ़ने की वजह से इस क्षेत्र में भ्रष्टाचार किए जाने की संभावनाएं बढ़ गयी और देश में संस्थागत भ्रष्टाचार की शुरुआत यहीं से हुई। हैरानी की बात तो यह है कि कांग्रेस आज तक इस ऐतिहासिक त्रासदी का जश्न मनाती आई है।
Today marks the 50th anniversary of Bank Nationalisation under the leadership of former Prime Minister Smt Indira Gandhi. A move that greatly expanded the reach of banking services to rural areas and thereby enabling rural prosperity. pic.twitter.com/RjWK53N1E2
— Congress (@INCIndia) July 19, 2019
19 तारीख यानि शुक्रवार को कांग्रेस ने अपने आधिकारिक ट्विटर अकाउंट से ट्वीट किया ‘तत्कालीन पीएम इन्दिरा गांधी के नेतृत्व में बैंकों के राष्ट्रीयकरण की आज 50वीं सालगिरह है। एक ऐसा कदम जिसने ग्रामीण भारत में बैंकिंग व्यवस्था को मजबूत बनाया और गांवों में संपन्नता आई’। सवाल यहां यह है कि क्या वाकई कांग्रेस राज के समय ग्रामीण भारत में बैंकिंग व्यवस्था बेहद मजबूत हुई थी? इस बात में कोई दो राय नहीं है कि बैंकों का राष्ट्रीयकरण देश के बैंकिंग सेक्टर के लिए किसी अभिशाप से कम नहीं था। राष्ट्रीयकरण के बाद इस सेक्टर पर दोहरी मार पड़ी। एक तो राजनेताओं का बैंकिंग सेक्टर पर प्रभुत्व काफी हद तक बढ़ गया जिसके कारण ये राजनेता अपने मनपसंद उद्योगपतियों को लोन दिलवाने की प्रक्रिया में हस्तक्षेप करने लगे। दूसरा ये कि इस क्षेत्र में जवाबदेही का कल्चर तेजी से खत्म होने लगा, जिसकी वजह से इस क्षेत्र में भ्रष्टाचार बढ्ने लगा।
गौर किया जाए तो राष्ट्रीयकरण के कदम से सरकार ने देश के पूरे वित्तीय ढांचे को अपनी मुट्ठी में बंद कर लिया। मुद्रा के छपने से लेकर मुद्रा के वितरण तक, सब कुछ सरकार के हाथ में था। ऐसे सिस्टम में ‘बैड लोन्स’ के लिए कोई पेनल्टी नहीं थी, और बैंकों को होने वाले नुकसान का भार सीधा सरकार पर आने लगा। हर वित्तीय वर्ष के अंत में सरकार एनपीए और सभी ‘बैड लोन्स’ को ‘बजट डेफ़िसिट’ में शामिल करने लगी और इसके नतीजे में सरकार को आरबीआई के माध्यम से बैंकिंग सेक्टर में पैसे को सप्लाई करना पड़ा जिसकी वजह से आरबीआई को ज़्यादा नोटो की छपाई करनी पड़ी और रुपये की कीमत साल दर साल घटने लगी। यानि सरकार की एक बड़ी गलती का खामियाजा देश के तमाम नागरिकों को भुगतना पड़ा।
इस पूरे सिस्टम की वजह से संस्थागत भ्रष्टाचार की शुरुआत हुई और सरकार के करीबी उद्योगपती बड़े बड़े लोन्स लेकर उनका भुगतान करने से भागने लगे।ये सभी उद्योगपति बैंक से लोन लेकर ऐश करने लगे और बैंक को पैसा वापस करने की प्रवृति खत्म होने लगी, जिसके कारण ये सभी लोन्स ‘बैड लोन्स’ और एनपीए की शक्ल में बजट डेफ़िसिट में शामिल किए जाते रहे और सरकार का बजट डेफ़िसिट बढ़ता गया। बैंकिंग सेक्टर किसी भी देश की अर्थव्यवस्था की रीढ़ माना जाता है, और इन्दिरा गांधी के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार ने बैंकों के राष्ट्रीयकरण के माध्यम से इसी रीढ़ पर वार किया।
यह संस्थागत भ्रष्टाचार सालों तक चलता रहा और सरकार ने इसे रोकने के लिए कुछ नहीं किया। नतीजा यह निकला कि ज़्यादा बजट डेफ़िसिट की वजह से वर्ष 1985 आते-आते सरकार को बैलेन्स ऑफ पेमेंट की गंभीर समस्या का सामना करना पड़ रहा था। वर्ष 1990 की गल्फ वॉर के बाद तो हालात इतने बिगड़ गए थे कि वर्ष 1991 में भारत के फ़ोरेन रिजर्व्स खतरनाक स्तर तक कम हो गए और भारत सरकार के पास सिर्फ तीन हफ्तों के इम्पोर्ट्स के लिए विदेशी मुद्रा बची थी। अर्थव्यवस्था की इस बदहाली के बाद ही सरकार को उदारीकरण का फैसला लेना पड़ा था।
इन तथ्यों के अध्यन्न से यह स्पष्ट है कि बैंकों के राष्ट्रीयकरण करने के पीछे सरकार का कोई प्लान नहीं था और सरकार के इस कदम से इस क्षेत्र में सिर्फ भ्रष्टाचार को ही बल मिला। सरकार ने बैंकों के राष्ट्रीयकरण का सबसे बड़ा उद्देश्य ग्रामीण भारत तक बैंकों की पहुंच बढ़ाना बताया था। हालांकि, यह पूरी तरह विफल साबित हुआ। क्योंकि वर्ष 2014 की शुरुआत तक भारत में सिर्फ आधे व्यस्कों के पास ही बैंक का अपना खाता था। वर्ष 2014 में मोदी सरकार बनी और अगस्त 2014 में प्रधानमंत्री जन धन योजना शुरू की गई, जिसके बाद वर्ष 2017 तक व्यस्क खाता धारकों की संख्या 80 प्रतिशत तक पहुंच गई।
जन धन योजना के माध्यम से गांवों में बैंकों की शाखाएँ खोली गई और लोगों के खाते खुलवाए गए। इस कदम से ग्रामीण भारत को देश की अर्थव्यवस्था में योगदान देने के लिए प्रेरित किया गया और लोगों को इसका फायदा भी मिला। सरकार की ओर से अलग-अलग स्कीम्स के तहत दिया जाना वाला पैसा सीधा लोगों के खाते में जमा किया जाने लगा और बिचौलियों के धंधे की कमर तोड़ दी गई। इससे ना सिर्फ भ्रष्टाचार पर नकेल कसी गई बल्कि अर्थव्यवस्था के विकास दर को भी बल मिला।
इसकी तुलना में अगर बैंकों के राष्ट्रीयकरण के प्रभावों को देखा जाये तो राष्ट्रीयकरण ने देश की अर्थव्यवस्था को आईसीयू में पहुंचाने का काम किया था। आज कांग्रेस इस ऐतिहासिक त्रासदी का जश्न मनाकर बेशक अपनी गलतियों पर पर्दा डालने का प्रयास करना चाहती हो, लेकिन यह सच है कि कांग्रेस सरकार द्वारा उठाए गए इस दुष्प्रभावी कदम का खामियाज़ा आज तक देश को भुगतना पड़ रहा है और इसके लिए कांग्रेस को कभी माफ नहीं किया जा सकता।