हाल ही में जम्मू-कश्मीर में बहुप्रतिष्ठित अमरनाथ यात्रा का प्रारम्भ हुआ है। पहलगाम के पास स्थित पवित्र गुफा में हिमपात से बने प्राकृतिक शिवलिंग के दर्शन के लिए देशभर से लाखों श्रद्धालु पहलगाम पधारते हैं, जहां पवित्र गुफा के कपाट जून से लेकर श्रवण मास के पूर्णिमा तक खुले रहते हैं, यानि कि अगस्त तक सम्पूर्ण अमरनाथ यात्रा सम्पन्न हो जाती है।
इस बार अमरनाथ यात्रा को सफल बनाने के लिए केंद्र सरकार ने कोई कसर नहीं छोड़ी। चाहे वो तीर्थयात्रियों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए ढाल की तरह तैयार करना हो या फिर स्थिति बिगड़ने पर पुलिस बलों का त्वरित कार्रवाई करना हो, केंद्र सरकार ने यात्रा के लिए व्यवस्था चाक चौबन्द करने में कोई कसर नहीं छोड़ी। इसी दिशा में आगे बढ़ते हुए यात्रियों की सुविधा के लिए केंद्र सरकार ने अमरनाथ की ओर जाने वालेश्रीनगर-जम्मू हाईवे के काजीगुंड नाशरी वाले क्षेत्र में आम जनों की आवाजाही कुछ समय के लिए सीमित करी है।
हालांकि, इसमें भी कुछ लोग अपनी निकृष्ट राजनीति दिखाने से बाज़ नहीं आए। पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ़्ती ने इस व्यवस्था पर आपत्ति जताते हुए अपने बयान में कहा, ‘अमरनाथ यात्रा सालों से हो रही है। पर इस बार के इंतजाम कश्मीर के लोगों के खिलाफ किए गए हैं। ये आम लोगों की ज़िंदगी में काफी परेशानी का सबब बन रही है। मैं राज्यपाल से दरख्वास्त करती हूं कि इसमें हस्तक्षेप करें।‘
महबूबा मुफ़्ती के सुर में सुर मिलाते हुए नेशनल कॉन्फ्रेंस के मुखिया एवं पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने इस व्यवस्था पर अपना बयान दिया, “ऐसा नहीं है कि हमें यात्रियों की सुरक्षा की चिंता नहीं है। परंतु राज्यपाल मलिक का प्रशासन 30 वर्षों में सबसे निकृष्ट प्रशासन है, जो यात्रियों की सुरक्षा के लिए पूरा हाइवे ही बंद करा देता है। ये आलस और अकर्मण्यता की पराकाष्ठा नहीं है तो क्या है?” अब इन्हें तब हाईवे जाम की समस्या नजर नहीं आती जब सडकों पर ही नमाज पढ़े जाते हैं लेकिन अमरनाथ यात्रियों की सुरक्षा के लिए हाईवे 2 घंटे के लिए बंद हुआ तो ये चिल्लाने लगे।
दोनों नेताओं को जवाब देते हुए मलिक ने कहा, ‘यदि आप पश्चिमी यूपी में जाएंगे तो वहां कांवड़ यात्रा के दौरान एक महीने तक हाईवे पर किसी भी वाहन की आवाजाही बंद रहती है और कोई भी शिकायत नहीं करता है। यहां तो सिर्फ 2 घंटे के प्रतिबंध पर हाय तौबा मची हुई है। हमें इसे बर्दाश्त करना होगा।’
शायद अमरनाथ यात्रा पर यात्रियों के लिए केंद्र सरकार द्वारा दी गयी सुविधाएं महबूबा मुफ़्ती और उमर अब्दुल्ला की आँखों में खटक रही है। हो भी क्यों न, जिस वीआईपी कल्चर के ये लोग आदि थे, वो इन्हें न मिलकर अब कश्मीर की आम जनता और अमरनाथ यात्रा के लिए आने वाले श्रद्धालुओं को मिलता था।
क्या अमरनाथ के यात्रियों की सुरक्षा का कोई मोल नहीं? क्या महबूबा मुफ़्ती और उमर अब्दुल्ला जैसे लोगों की खुशामद के लिए अमरनाथ के श्रद्धालुओं को खतरे में झोंकना उचित रहेगा? कश्मीर में स्थानीय उग्रवाद पर नियंत्रण पाने के बाद अब केंद्र सरकार के वर्तमान निर्णयों ने कश्मीर के अलगाववादियों और उनके राजनीतिक समर्थकों की कमर तोड़ दी है, जिसपर इनका सुध-बुध खोना तो काफी स्वाभाविक है।
जब से दोनों सत्ता से बाहर हुए हैं, तब से महबूबा मुफ़्ती और उमर अब्दुल्ला सत्ता वापसी के लिए हर युक्ति अपना चुके हैं, चाहे वो अलगाववादियों को समर्थन देना हो, या फिर आतंकवादियों की मृत्यु पर सरकार को घेरना हो। हालांकि, पंचायती चुनाव और बाद में लोकसभा चुनाव में उन्हें अपने गढ़ के अलावा जम्मू एवं कश्मीर में कहीं भी सीटें नहीं प्राप्त हुई हैं। हालांकि, इनके वर्तमान बयानों से यह सिद्ध होता है कि दोनों का राजनीतिक करियर अब पतन की ओर है, और इनके प्रपंचों को अब भारत ने हाथों हाथ लेना बंद कर दिया है।