कल शाम अचानक यह खबर आई कि दिल्ली की पूर्व मुख्यमंत्री शीला दीक्षित का 81 वर्ष की उम्र में निधन हो गया है। पेसमेकर के ठीक से काम न करने पर शनिवार सुबह पूर्व मुख्यमंत्री को दिल्ली के एस्कॉर्ट अस्पताल में भर्ती कराया गया था। उन्हें आईसीयू में रखा गया था। उनके निधन के बाद हर कोई अब दिल्ली के विकास में उनके योगदान को याद कर रहा है। कई मायनों में बेशक वे दिल्ली की बेहतरीन मुख्यमंत्रियों में से एक थीं। उन्होंने देश की राजधानी में यातायात सेवाओं को बेहतर करने में बड़ी भूमिका निभाई। उन्हें कांग्रेस का एक मुखर नेता कहा जाता था और कई बार उन्होंने पार्टी लाइन से हटकर अपने विचार रखे। इसके अलावा किसी बड़े पद पर ना रहने के बावजूद वे कांग्रेस के सबसे लोकप्रिय नेताओं में से एक थे। हालांकि, दिल्ली के बेहतर मुख्यमंत्रियों में से एक होने के बावजूद उनके साथ कुछ नकारात्मक यादें भी जुड़ी हुई हैं, जिनको लेकर उनको आज तक आलोचनाओं का सामना करना पड़ा था।
Deeply saddened by the demise of Sheila Dikshit Ji. Blessed with a warm and affable personality, she made a noteworthy contribution to Delhi’s development. Condolences to her family and supporters. Om Shanti. pic.twitter.com/jERrvJlQ4X
— Narendra Modi (@narendramodi) July 20, 2019
शीला दीक्षित सबसे लंबे समय तक दिल्ली की मुख्यमंत्री रही है। वह तीन बार लगातार विधानसभा चुनाव जीतीं और दिल्ली की सत्ता पर 15 साल तक राज किया। दीक्षित ने 1998 से 2013 तक दिल्ली में मुख्यमंत्री पद सम्भाला था और इस दौरान वे एक लोकप्रिय नेता के तौर पर उभरकर सामने आईं। विश्व-स्तरीय मेट्रो से लेकर दिल्ली में फ्लाईओवर्स के निर्माण तक, यातायात क्षेत्र में उनके योगदान सराहनीय रहे हैं। इसके अलावा प्रदूषण की समस्या से निपटने के लिए दिल्ली में सीएनजी बसों को चलाने की योजना भी उन्हीं के समय में लागू हुई थी।
शीला दीक्षित एक मुखर नेता थीं और कई बार तो उन्होंने गांधी परिवार के खिलाफ भी अपनी आवाज़ उठाई थी। शाह बानो केस में सुप्रीम कोर्ट के फैसले को पलटने वाले कानून की उन्होंने अपनी बुक ‘सिटिज़न दिल्ली: माइ टाइम्स, माइ लाइफ’ में आलोचना की थी। जब यह केस सुर्खियों में था, तब शीला दीक्षित कन्नौज से सांसद बनी थी। शीला दीक्षित के राज के दौरान दिल्ली में इतना विकास हुआ कि ग्रामीण आबादी बड़े पैमाने पर शहरी क्षेत्र की तरफ पलायन करने लगी। हालांकि, शीला दीक्षित सरकार इतने बड़ी जनसंख्या को सहूलियत प्रदान करने में सफल रही थीं। वर्ष 2015 में विधानसभा चुनावों में अरविंद केजरीवाल के हाथों हारने के बावजूद वे उनसे बेहतर मुख्यमंत्री सिद्ध हुई थी। उनकी तुलना में बड़े जनादेश के बावजूद अरविंद केजरीवाल दिल्ली के विकास में कोई बड़ा योगदान देने में असफल रहे हैं।
हालांकि, किसी भी महान नेता की तरह शीला दीक्षित के राजनीतिक करियर से भी कुछ नकारात्मक चीज़ें जुड़ी हुईं हैं। उदाहरण के तौर पर निर्भया रेप केस के दौरान शीला दीक्षित की आपत्तिजनक टिप्पणियों की वजह से उनकी जमकर आलोचना की गई। तब उन्होंने कहा था कि निर्भया रेप केस को मीडिया जानबूझकर तूल दे रही है और ऐसी घटनाएं आज के समय में होती रहती हैं, और मीडिया उन्हें कवर नहीं करती। उन्होंने कहा था ‘कई बार आप रेप्स को इग्नोर करते हो और सिर्फ अखबार में छोटी खबर के रूप में दिखाते हो, छोटे बच्चों के साथ रेप होते हैं लेकिन निर्भया केस को एक राजनीतिक घोटाले के रूप में पेश कर दिया’। इसके अलावा उनके ऊपर इस केस के कुप्रबंधन को लेकर भी आरोप लगते रहे हैं। उनके शासन काल के दौरान वर्ष 2010 में दिल्ली में कॉमन वैल्थ गेम्स का आयोजन हुआ था हालांकि, इस दौरान जमकर घोटाले हुए जो उनके राजनीतिक करियर पर हमेशा के लिए धब्बा बन गया।
हालांकि, इन सबके के बावजूद शीला दीक्षित को इतिहास की एक साहसी और सम्मानित नेता के तौर पर जाना जाएगा और देश और दिल्ली की राजनीति में उनके योगदान को कभी नहीं भुलाया जा सकता। भगवान उनकी आत्मा को शांति दे!
ॐ शांति