हाल ही में कर्नाटक में पिछले कई महीनों से चल रही राजनीतिक उठापटक का अंत तब हुआ, जब विश्वास मत में जेडीएस-कांग्रेस की गठबंधन सरकार को 6 मतों से पराजय का सामना करना पड़ा। 225 सदस्यीय कर्नाटक विधान सभा [जिसे विधान सौधा भी कहा जाता है] में 15 कांग्रेसी विधायक बागी हो गए, जबकि बसपा के एक विधायक ने अपना मत डालने से ही मना कर दिया। आधिकारिक सूत्रों के अनुसार विश्वास मत के लिए 205 सदस्य उपस्थित थे, जिसमें से 99 मत सरकार के पक्ष में पड़े, जबकि 105 मत सरकार के विरुद्ध पड़े।
लेकिन कुमारस्वामी की सरकार के गिरने के साथ ही एक और कुप्रथा का भी अंत हुआ, जिसके कारण कई वर्षों तक समूचे कर्नाटक को शर्मिंदा होना पड़ा था। कांग्रेस के शासनकाल में शुरू हुई टीपू सुल्तान की जयंती मनाने की प्रथा कांग्रेस-जेडीएस गठबंधन की सरकार में भी जारी रही। मैसूर के विवादित शासक टीपू सुल्तान के जन्मदिन के उपलक्ष्य में वर्ष 2017 में कर्नाटक के पूर्व मुख्यमंत्री सिद्दारमैया ने पूरे राज्य में टीपू जयंती मनाने की घोषणा कर दी, क्योंकि कांग्रेस की दृष्टि में टीपू सुल्तान एक देशभक्त सुल्तान था, जिसने अंग्रेजों के विरुद्ध लड़ते हुए वीरगति प्राप्त की।
Conveyed #KarnatakaGovt NOT to invite me to shameful event of glorifying a person known as brutal killer, wretched fanatic & mass rapist. pic.twitter.com/CEGjegponl
— Anantkumar Hegde (@AnantkumarH) October 20, 2017
With this huge support for BJP in each and every part of Karnataka, I am sure the Congress party and Siddaramaiah can clearly see the end of their corrupt government. Pictures from the road show in Belagavi south constituency, Karnataka. pic.twitter.com/pmvRrXEMC0
— Amit Shah (Modi Ka Parivar) (@AmitShah) May 6, 2018
परंतु टीपू जयंती से आखिर कर्नाटक, या भारत के किसी भी नागरिक को भला आपत्ति क्यों होगी? दरअसल, टीपू सुल्तान ने भले अंग्रेजों के विरुद्ध लड़ाई लड़ी हो, पर वास्तव में वे अत्यंत क्रूर शासक था, जो हज़ारों हिंदुओं के नरसंहार का जिम्मेदार था। यूं टीपू सुलतान की जयंती 20 नवंबर को होती है लेकिन ये जयंती 10 नवंबर को मनाई गई थी। 10 नवंबर वो दिन है जब टीपू ने 700 मेलकोट आयंगार ब्राह्मणों को फांसी पर चढ़ाया था। जब विश्व हिंदू परिषद के आयोजक सचिव डीएस कटप्पा ने ऐसे क्रूर शासक की जयंती मनाने का विरोध किया तो उन्हें अज्ञात हमलावरों ने जान से मार दिया।
यही नहीं भाजपा ने भी टीपू सुल्तान की जयंती मनाने का विरोध किया था। 6 मई को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कर्नाटक के चित्रदुर्ग में चुनावी रैली में कांग्रेस पर निशाना साधते हुए कहा भी था कि ‘कांग्रेस का चरित्र देखिए।जिनकी जयंतियों को मनाने की ज़रूरत है, जिनसे हमें आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा लेनी है, उनकी जयंतियां मनाने के बारे में वो सोच ही नहीं सकते। वीर मडाकारी और ओनेक ओबावा भुला दिए गए, लेकिन वोट बैंक की राजनीति की खातिर वे सुल्तानों की जयंतियां मना रहे हैं।’
वर्ष 2018 में भी भाजपा के विपक्ष के विरोध के बावजूद कांग्रेस ने टीपू जयंती मनाया लेकिन राज्य के मुख्यमंत्री एचडी कुमारस्वामी ने स्वास्थ्य कारणों का हवाला देते हुए कार्यक्रम से किनारा कर लिया। तब भी भाजपा ने इसका विरोध करते हुए कांग्रेस पर हमला किया था। भाजपा ने तब कहा था, ‘ कांग्रेस पार्टी और टीपू दोनों ही हिंदू विरोधी हैं। दोनों ही अल्पसंख्यकों के तुष्टीकरण में विश्वास रखते हैं। दोनों ही हिंदुओं को बांटना चाहते हैं। इसलिए कोई आश्चर्य नहीं है कि कांग्रेस अत्याचारी टीपू की पूजा कर रही है।’
परन्तु भाजपा के लाख विरोध के बावजूद कांग्रेस और जेडीएस की सरकार ने पिछले वर्ष टीपू जयंती को गाजे बाजे सहित मनाया था। ये अलग बात थी की स्वयं कुमारस्वामी इस ‘उत्सव’ में शामिल नहीं हुये विरोध करने पर राज्य की पुलिस ने न केवल भाजपा समर्थकों पर लाठीचार्ज किया, अपितु कई लोगों को हिरासत में भी लिया गया था।
कुमारस्वामी की सरकार गिरने से कर्नाटक के असंख्य सनातनियों ने राहत की सांस अवश्य ली होगी। धर्मनिरपेक्षता के नाम पर किसी समुदाय को लुभाने के लिए दूसरे समुदाय की भावनाओं को ठेस पहुँचाना स्वार्थ की राजनीति को दर्शाता है जो असंवैधानिक भी है। अब चूंकि बेमेल गठबंधन की सरकार गिर चुकी है और अब राज्य में भाजपा की सरकार जल्द बनने वाली है। ऐसे में टीपू सुल्तान की जयंती मनाने का जो रिवाज कांग्रेस ने शुरू किया था वो आखिरकार खत्म हो जायेगा। और आम जनता को जल्द ही विकास की राजनीति देखने को मिलेगी। टीपू जयंती के नाम पर जो कर्नाटक के वासियों को झेलना पड़ा, अब उन्हें ऐसा कुछ झेलना नहीं पड़ेगा।