भारतीय शिक्षा के लिए खुशखबरी आई है। हाल ही में केंद्र सरकार ने एक योजना पर सहमति जताई है, जिसके अंतर्गत विश्व के शीर्ष विश्वविद्यालयों को भारत में ‘ओपेन ऑफ कैम्पस सेंटर्स’ खोलने के लिए निमंत्रण दिया जाएगा। जी हां, अब विदेशी विश्वविद्यालय भी भारत में अपनी शाखाएं खोल सकेंगी।
न्यू इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट के अनुसार केन्द्रीय मानव संसाधन विकास मंत्रालय इस अहम प्रस्ताव पर विचार कर रही है, जो उच्च शिक्षा पर मंत्रालय के पंचवर्षीय विज़न ‘शिक्षा गुणवत्ता उन्नयन और समावेश कार्यक्रम’(Education Quality Upgradation And Inclusion Programme) का अहम भाग है। इसके अंतर्गत चुनिन्दा विदेशी विश्वविद्यालयों को भारत में अपने केंद्र खोलने की स्वीकृति दी जाएगी। ये केंद्र सरकार के भारतीय उच्च शिक्षा के अंतर्राष्ट्रीयकरण का अहम हिस्सा है।
इस रिपोर्ट को बनाने में पूर्व वित्त एवं राजस्व सचिव हसमुख अधिया, नीति आयोग के सीईओ अमिताभ कान्त, पीएम के मुख्य वैज्ञानिक सलाहकार के विजय राघवन एवं पूर्व इंफोसिस सीईओ क्रिस गोपालकृष्णन जैसे लोगों ने प्रमुख भूमिका निभाई है। इतना ही नहीं, न्यू इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार इसका भी उल्लेख किया गया कि इन्ही सुधारों से संबन्धित विदेशी शिक्षा प्रबन्धक बिल पर दोबारा गौर किया जाएगा। इस बिल को मनमोहन सरकार 2013 की शुरुआत में सदन में लेकर आई, परंतु सरकार के लचर रवैये के कारण ये बिल कभी पारित ही नहीं हो पाया।
मंत्रालय में एक वरिष्ठ कर्मचारी ने इस योजना की पुष्टि करते हुए कहा, “ईक्विप (EQUIP) शिक्षा गुणवत्ता उन्नयन और समावेश कार्यक्रम] एक ऐसा कार्यान्वयन योजना है जो उच्च शिक्षा से संबन्धित सुधारों पर राष्ट्रीय शिक्षा नीति में बदलाव लाएगी, और हम इसके सुझावों पर अभी से ही काम कर रहे हैं। प्रस्ताव के अनुसार भारत के प्रतिष्ठित शिक्षण संस्थानों को विदेश में चुनिन्दा देशों में अपने केंद्र स्थापित करने का भी अवसर मिलेगा।‘
सूत्रों के अनुसार, वैश्विक स्तर पर अपनी पहचान बना चुके शिकागो विश्वविद्यालय, हार्वर्ड बिजनेस स्कूल, डीके विश्वविद्यालय [Deakin University], वर्जिनिया टेक जैसे उच्च शिक्षण संस्थानों को अपने ओपेन ऑफ कैम्पस सेंटर्स खोलने की स्वीकृति मिलेगी।
अब कई लोगों का सवाल है कि भला इस निर्णय से भारत को क्या फ़ायदा होगा? कभी नालंदा, तक्षशिला जैसे विश्वविद्यालय से पूरे संसार को विद्या का अनमोल धन देने वाला भारत आज शिक्षा के क्षेत्र में दुर्भाग्यवश काफी पिछड़ा हुआ है। विश्व के शीर्ष विश्वविद्यालय की उपाधि तो छोड़िए, भारत का कोई भी संस्थान विश्व के 150 शीर्ष विश्वविद्यालयों में भी नहीं आता। अक्सर हमने कई विद्यार्थियों को अपनी शिक्षा पूरी करने के बाद उच्च शिक्षा के लिए विदेश की ओर मुड़ते देखा है, जिससे सबसे ज़्यादा हमारे देश की छवि को नुकसान पहुंचता है।
ऐसे में केंद्र सरकार यदि विदेशी विश्वविद्यालयों को भारत में अपने केंद्र स्थापित करने की स्वीकृति देता है, और साथ ही साथ प्रतिष्ठित भारतीय संस्थानों को विदेशों में अपने केन्द्र स्थापित करने की छूट भी देता है, तो शिक्षा के इस आदान-प्रदान से भारतीय विद्यार्थियों को कम मूल्य में उच्चतम शिक्षा की प्राप्ति होगी। ऐसे केन्द्रों के खुलने से भारतीय संस्थानों के लिए भी एक प्रतियोगी वातावरण का निर्माण होगा, जो आगे चलकर न केवल भारत की उच्च शिक्षा का कायाकल्प करेगा, अपितु भारत को एक बार फिर ‘विश्वगुरु’ की राह पर अग्रसर करेगा।