ममता बनर्जी के लिए आगामी 2021 के विधानसभा चुनाव सरल तो बिलकुल नहीं होने वाले हैं। पिछले कुछ वर्षों से पश्चिम बंगाल राज्य में वैचारिक और सांस्कृतिक रूप से काफी व्यापक बदलाव हो रहे हैं। इसका एक उदाहरण हमें राज्य में आरएसएस के बढ़ते प्रभाव से साफ दिखाई दे रहा है। हाल ही में पश्चिम बंगाल में आरएसएस में शामिल होने वाले लोगों का ग्राफ तेजी से बढ़ रहा है।
यदि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के एक सदस्य की माने तो देशभर के अनुयायियों के हिसाब से उत्तर प्रदेश के बाद अब पश्चिम बंगाल से सबसे ज़्यादा युवा आरएसएस के लिए ऑनलाइन आवेदन करते हैं। 2017 में पश्चिम बंगाल में 7400 लोगों ने ऑनलाइन आवेदन किये थे। परंतु 2018 में यही संख्या 9000 ऑनलाइन आवेदन तक बढ़ गयी थी, और द प्रिंट की एक रिपोर्ट के अनुसार, 15 जून तक ही बंगाल से ऑनलाइन आवेदनों की संख्या 7700 तक पहुँच चुकी है।
इस बात की पुष्टि करते हुए द प्रिंट ने अपनी एक रिपोर्ट में पश्चिम बंगाल में आरएसएस के बढ़ते प्रभाव पर प्रकाश डाला है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के एक सदस्य के अनुसार, देशभर से ऑनलाइन आवेदनों की संख्या फिलहाल 62000 की संख्या पार कर चुकी है। 2017 में एक लाख लोगों ने आवेदन किया था और 2018 में 1,10,000 लोगों ने आवेदन किया था।
मीडिया के लिए आरएसएस के अखिल भारतीय सह-संयोजक नरेंद्र ठाकुर के अनुसार, “देश भर से लोग आरएसएस का भाग बनने के लिए काफी उत्साहित है। हमारी वेबसाइट पर आरएसएस से जुड़ने के लिए जो सुविधा हमने दी है, उसपर हमें काफी अच्छी प्रतिक्रिया मिली है। जहां तक पश्चिम बंगाल की बात आती है, तो वहां से आवेदनों की संख्या में काफी वृद्धि हुई है।“
एक और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सदस्य ने द प्रिंट को दिए एक साक्षात्कार में बताया कि कैसे पश्चिम बंगाल में आरएसएस के प्रति लोगों का आकर्षण राज्य में सनातन समुदाय पर हो रहे अत्याचारों के कारण दिन प्रतिदिन बढ़ता चला जा रहा है। स्वयंसेवक के अनुसार, ‘जिस तरह पश्चिम बंगाल में हिंदुओं के साथ व्यवहार किया जा रहा है, वो किसी से छुपा नहीं है। धीरे धीरे पूरे राज्य में अब इसके खिलाफ विरोध शुरू हो गये। लोगों ने आरएसएस के काम को देखा और अब वे उसके साथ जुड़ना चाहते हैं। ऐसे में ऑनलाइन सदस्यता से उन्हें काफी सहायता मिल रही है।‘
पर आखिर ऐसा क्या हुआ कि जो पश्चिम बंगाल कुछ वर्ष पहले तक भाजपा – आरएसएस के विरुद्ध मोर्चा खोले हुए था, वो अचानक से अब आरएसएस की तरफ आकर्षित हो रहा है? दरअसल, वर्ष 2016 में पश्चिम बंगाल में हुए धूलागढ़ के दंगों के बाद से हिंदुओं के खिलाफ अत्याचार बढ़ते चले गये। दिसंबर 2016 में एक स्थानीय झड़प कब दंगों में परिवर्तित हो गया। परंतु इस घटना के प्रति ममता सरकार की बेरुखी से हिंदू काफी आहत हुए थे. यही नहीं इस घटना की कवरेज करने वाले पत्रकारों के विरुद्ध ममता सरकार द्वारा आपराधिक मुकदमा दर्ज़ कराने से काफी लोग आक्रोशित हुए। हद तो तब हो गयी जब ममता बनर्जी ने इस दंगे के लिए आरएसएस और भाजपा पर ही आरोप मढ़ना शुरू कर दिया। रही सही कसर बसीरहट में हुए दंगों ने पूरी कर दी, और 2018 में रामनवमी के उत्सव में जिस तरह ममता सरकार ने अल्पसंख्यकों के तुष्टीकरण के लिए खलल डालने का प्रयास किया, उससे लोगों का धैर्य जवाब देने लगा। भ्रष्टाचार, लचर कानून व्यवस्था भी यहां पर आम बात हो गयी। फलस्वरूप वे आरएसएस की ओर ज़्यादा आकर्षित होने लगे।
तमाम हमलों और हत्याओं के बावजूद लोगों का उत्साह किसी भी प्रकार से कम नहीं हुआ। जब हाल ही में ‘जय श्री राम’ बोलने पर ममता बनर्जी ने जनता के साथ अभद्र व्यवहार करना प्रारम्भ किया, तो लोगों ने उनका खुलकर न केवल विरोध किया, बल्कि आरएसएस और भाजपा के लिए अपना समर्थन और भी मुखर कर दिया।
इस वैचारिक बदलाव ने भाजपा के लिए पश्चिम बंगाल में संजीवनी का काम किया है। टीएमसी के विरोध और आरएसएस के लिए बढ़ती लोकप्रियता के बल पर भाजपा ने अप्रत्याशित प्रदर्शन करते हुए 2014 के आम चुनावों में महज 2 सीट की तुलना में 2019 के आम चुनावों में 18 सीट प्राप्त की। इस बार तो इनका मत प्रतिशत भी पहले से दोगुना हो चुका है, और बंगाल से भाजपा को 40% से भी ज़्यादा लोगों के मत प्राप्त हुए हैं। ऐसे में ममता बनर्जी के लिए 2021 के विधानसभा चुनाव किसी अग्निपरीक्षा से कम नहीं होगा। जिस तरह भाजपा एवं आरएसएस का प्रभाव बढ़ रहा है, ऐसे में यदि ममता को हराकर भाजपा स्वयं सत्ता में आ जाए, तो किसी को भी अचरज नहीं होगा।