सोमवार को भारत के इतिहास में एक नया अध्याय लिखा गया। गृहमंत्री अमित शाह ने संसद में संकल्प पेश करते हुए कहा कि राष्ट्रपति के अनुमोदन के बाद अनुच्छेद 370 के खंड 1 को छोड़कर बाकी सभी खंड जम्मू-कश्मीर पर लागू नहीं होंगे। यह वाकई मोदी सरकार का बहुत बड़ा कदम था क्योंकि आज़ादी के बाद से कोई भी सरकार कश्मीर के संबंध में कोई बड़ा फैसला लेने में असफल रही थीं। हालांकि, सरकार के इस फैसले के बाद कांग्रेस के नेताओं ने अब सरकार पर यह आरोप लगाने शुरू कर दिये हैं कि यह फैसला असंवैधानिक है, और देश की संसद के पास अनुच्छेद 370 हटाने को लेकर कोई अधिकार नहीं है। हैरानी की बात तो यह है कि सरकार के इस फैसले का विरोध करने वालो में ऐसे लोग भी शामिल हैं जो अपने आप को कानून का विशेषज्ञ मानते हैं। हालांकि, ऐसे एजेंडावादी लोगों को हरीश साल्वे, मुकुल रोहतगी और सोली सोराबजी जैसे निष्पक्ष वकीलों ने मुंहतोड़ जवाब देते हुए कहा है कि उन्हें सरकार के इस फैसले में कुछ भी गलत नहीं नज़र आता।
ऐसे ही लोगों में सबसे पहले नाम आता है वकील एजी नूरानी का, जिन्होंने सरकार के इस फैसले को पूरी तरह असंवैधानिक करार दिया। उन्होंने कहा कि ‘सरकार ने इस असंवैधानिक फैसले को धोखे से लागू किया है। दो हफ्तों तक सरकार और गवर्नर ने लोगों को झूठ परोसा’। हालांकि, जब उनसे यह सवाल पूछा गया कि ड्राफ्टिंग कमिटी द्वारा इस अनुच्छेद को अस्थायी तौर पर जोड़ा गया था, तो इसके जवाब में उन्होंने दावा किया कि वर्ष 1956 में जब संविधान सभा का विघटन किया गया था, तो उसके साथ ही सरकार के पास से इस अनुच्छेद को हटाने का अधिकार चला गया था।
इसके बाद कांग्रेस नेता और वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने भी सरकार के फैसले पर अपनी आपत्ति जताई। राज्य को दो हिस्सों में बांटने को लेकर जब उनसे सवाल पूछा गया तो उन्होंने कहा कि सरकार ने अनुच्छेद 356 का दुरुपयोग किया है। इसके बाद अनुच्छेद 370 पर बोलते हुए उन्होंने दावा किया कि अनुच्छेद के तीसरे खंड के मुताबिक सरकार को इस अनुच्छेद को हटाने से पहले राज्य की संविधान सभा की मंजूरी लेनी होगी। आगे उन्होंने कहा कि चूंकि अभी राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू है, ऐसे में कोई विधानसभा नहीं है, और सरकार के पास इस अनुच्छेद को हटाने का कोई अधिकार नहीं है। कुछ इसी तरह वकील कपिल सिब्बल ने भी सरकार के फैसले पर अपना विरोध जाहिर किया और सरकार पर लोकतान्तत्रिक मूल्यों को नकारने का आरोप लगाया। उन्होंने कहा कि ‘आज हमने हमेशा के लिए कश्मीर खो दिया’।
हालांकि, जब इस संबंध में देश के वरिष्ठ और जाने माने वकील जैसे हरीश साल्वे, मुकुल रोहातगी और सोली सोराबजी से सवाल पूछे गए, तो उन्होंने सबको यह यकीन दिलाया कि सरकार ने कोई असंवैधानिक फैसला नहीं लिया है।
मुकुल रोहातगी ने यह साफ किया कि यह अनुच्छेद पूरी तरह अस्थायी तौर पर जोड़ा गया था, और राष्ट्रपति के पास एक अनुमोदन के जरिये इस अनुच्छेद को हटाने का पूरा अधिकार है। साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि इस अनुच्छेद ने कश्मीर को देश से जोड़ा नहीं, बल्कि हमेशा देश से अलग करके रखा और कश्मीरियों ने इसकी वजह से दशकों तक पीड़ा सही।
इसके बाद वरिष्ठ वकील हरीश साल्वे का भी एक बयान आया। उन्होंने मीडिया से बातचीत में कहा ‘अनुच्छेद 370 कहता है कि उसके तहत प्रावधानों को राष्ट्रपति के आदेश के जरिए लागू किया जाएगा। 1954 में राष्ट्रपति के आदेश के जरिए अनुच्छेद 35ए को संविधान में शामिल किया गया था। आज उसी आदेश को रद्द किया गया है’। राज्य की सीमाओं को फिर से निर्धारित करने या राज्य के पुनर्गठन पर सरकार के विधेयक पर साल्वे ने कहा, ‘राज्य को दो भागों में बांटने से संबंधित विधेयक को संसद में दो बार पेश किया जाएगा। विधेयक का महत्व तभी होगा, जब यह संसद में पारित होगा,यह एक राजनीतिक फैसला है।’ इसी तरह सोली सोराबजी ने भी यह कहा कि सरकार ने ऐसा कदम उठाकर कुछ गलत नहीं किया है।
साफ है कि देश के कुछ एजेंडावादी वकील अपनी राजनीति को चमकाने के लिए तथ्यों को परे रख देश को बरगलाने का काम कर रहे हैं। हरीश साल्वे, मुकुल रोहातगी और सोलिह सोराबजी जैसे निष्पक्ष वकीलों ने इनके झूठे दावों की धज्जियां उड़ा दी हैं। साफ है कि सरकार ने संविधान से हटकर कोई फैसला नहीं लिया है, और सरकार का यह फैसला पूरी तरह संविधान के तहत लिया गया है।