हिन्दी में एक बड़ी मशहूर कहावत है कि ‘जिनके घर शीशे के होते हैं, उन्हें दूसरों के घरों पर पत्थर नहीं फेंकना चाहिए’। आजकल यही बात ‘द ग्रेट ब्रिटेन’ के मुखपत्र कहे जाने वाले बीबीसी पर भी लागू होती है। जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 को हटाने और राज्य को दो हिस्सों में बांटने के फैसले से जहां एक तरफ सभी भारतीयों में उत्साह का माहौल है, तो वहीं बीबीसी इस मामले में जरूरत से ज़्यादा दिलचस्पी लेकर पूरी दुनिया में अपना भारत विरोधी एजेंडा परोस रहा है। बीबीसी पुराने और झूठे वीडियो के जरिये पूरी दुनिया में यह प्रचार कर रहा है कि भारत द्वारा कश्मीर पर लिए गए फैसले से कश्मीर की जनता बिल्कुल भी खुश नहीं है और कश्मीर के लोग खुलकर भारत सरकार के खिलाफ सड़कों पर आ गए हैं। बीबीसी द्वारा ऐसा दिखाने की कोशिश की जा रही है मानो जैसे भारत ने जम्मू-कश्मीर पर अवैध तरीके से कब्जा कर लिया हो। हालांकि, बीबीसी ने आज तक कभी स्कॉटलैंड, जिब्राल्टर, डिएगो गार्सिया, उत्तरी आयरलैंड और फ़ॉकलैंड के बारे में चर्चा नहीं की, जहां ब्रिटेन ने सभी मूल्यों की धज्जियां उड़ाते हुए इन जगहों पर गैर-कानूनी ढंग से कब्जा किया था।
दरअसल, कुछ दिनों पहले बीबीसी ने एक वीडियो अपने ट्विटर हैंडल पर पोस्ट कर यह दावा किया कि कश्मीर में विरोध प्रदर्शन कर रहे लोगों पर पुलिस ने आँसू गैस के गोले दागे हैं। साथ ही वीडियो में यह भी दावा किया गया है कि भारत सरकार ऐसे किसी भी प्रदर्शन के ना होने का दावा कर रही है जबकि बीबीसी के रिपोर्टर्स ने ऐसे प्रदर्शनों को होते देखा है।
The BBC witnessed tear gas being used to disperse the largest protest since a lockdown was imposed in Indian-administered Kashmir – a protest the Indian government said didn’t happen
[Tap to expand] https://t.co/lPudV9uez3 pic.twitter.com/aUhwWRkqme
— BBC News (World) (@BBCWorld) August 10, 2019
हालांकि, भारत के गृह मंत्रालय ने ऐसे रिपोर्ट्स को सिरे से खारिज कर दिया और बीबीसी के सभी दावों की पोल खोलते हुए कहा है कि कश्मीर के किसी भी हिस्से में कोई ऐसी घटना नहीं हुई है।
बीबीसी को भारत में लोकतन्त्र नहीं बल्कि तानाशाही दिखाई देती है जिसे वह अपने एजेंडे के तहत पूरी दुनिया में प्रचारित करता है, लेकिन बीबीसी को अपने देश ब्रिटेन का वह क्रूर चेहरा नहीं दिखाई देता जिसमें उसने कई क्षेत्रों में कब्जा किया हुआ है।
उदाहरण के तौर पर ब्रिटेन के शासकों ने वर्ष 1296 से लेकर वर्ष 1650 तक स्कॉटलैंड पर कुल 20 बार हमले किए और स्कॉटलैंड आज भी ब्रिटेन के कब्जे में ही है। स्कॉटलैंड से समय-समय पर ब्रिटेन विरोधी आवाज़ें उठती रहती हैं। अभी यूरोपीय संघ (ईयू) से अलग होने के प्रस्ताव पर भी स्कोटलैंड के अलगाववादियों ने यह साफ तौर पर कह दिया था कि ऐसी स्थिति में वे ब्रिटेन से अलग होना ही पसंद करेंगे।
इसी तरह वर्ष 1704 में ब्रिटेन ने जिब्राल्टर को स्पेन से छीनकर उस पर कब्जा कर लिया था। स्पेन के इस पर दोबारा कब्जे के सभी प्रयास विफल रहे। जिब्राल्टर ने 1967 और 2002 में ब्रिटेन में रहने के पक्ष में वोट दिया था। लेकिन ध्यान देने वाली बात यह है कि उसके 96% नागरिक ईयू में रहना चाहते हैं। अब चूंकि, इंग्लैंड के लोग अब ईयू छोड़ने के लिए वोट कर चुके हैं, तो ऐसे में ब्रिटेन का जिब्राल्टर पर कब्जे का अब खात्मा हो सकता है।
इसी प्रकार आज से 800 साल पहले ब्रिटेन ने आयरलैंड पर कब्जा किया था। हालांकि, बाद में उत्तरी आयरलैंड में नागरिक अधिकारों के लिए आंदोलन शुरू हुआ, और आरोप लगाए गए कि अल्पसंख्यक कैथोलिक समुदाय ब्रिटेन में भेद-भाव की जिंदगी जी रहा है। साल 1916 में कई शाताब्दियों तक ब्रिटेन के कब्जे में रहने के बाद आयरलैंड में विद्रोह हुआ। जिसके बाद साल 1920-21 में आयरलैंड का बंटवारा हुआ। तब ब्रिटेन ने आयरलैंड की 32 में से केवल 26 काउंटी को ही आजाद किया जबकि बाकी छह काउंटी पर आज भी कब्जा किया हुआ है।
डिएगो गार्सिया या चागोस द्वीप पर भी ब्रिटेन ने कई सालों तक अपना कब्जा जमाकर रखा। चागोस द्वीप समूह पहले मॉरीशस का हिस्सा हुआ करता था और वर्ष 1773 में, यह क्षेत्र फ्रांस का उपनिवेश था। फ्रांस ने वृक्षारोपण के जरिये डिएगो गार्सिया पर अपना उपनिवेश स्थापित किया। 1814 में, नेपोलियन काल के युद्ध के अंत के बाद, चागोस के साथ-साथ मॉरीशस और सेशेल्स को पेरिस संधि के माध्यम से ग्रेट ब्रिटेन को सौंप दिया गया था। 1965 में, मॉरीशस को स्वतंत्रता प्रदान करने से पहले, ब्रिटेन ने ब्रिटिश इंडियन ओशन टेरिटरी का निर्माण करते हुए मॉरीशस से चागोस द्वीपसमूह को अलग कर दिया था, और तभी से ब्रिटेन इस द्वीप पर अपना हक जमाया हुआ था लेकिन फरवरी 2019 में, संयुक्त राष्ट्र की अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय ने ब्रिटेन को कहा कि ब्रिटेन को जल्द से जल्द, चागोस द्वीप समूह पर से अपना नियंत्रण समाप्त कर देना चाहिए, क्योंकि उस समय तक उन्होंने मॉरिशस के साथ विघटन की कानूनन प्रक्रिया को पूरा नहीं किया था।
अपनी सीमाओं को बढ़ाने की भूख के कारण ही ब्रिटेन ने फॉकलैंड्स युद्ध लड़ा था। फॉकलैंड्स नाम का यह युद्ध दो देशों, अर्जेंटीना और इंग्लैंड के बीच लड़ा गया था। इसकी शुरुआत 2 अप्रैल 1982 को हुई। असल में फॉकलैंड्स एक आइलैंड है, जो दक्षिण-पश्चिम अटलांटिक महासागर का हिस्सा है। 19वीं सदी की शुरुआत से ही इस आइलैंड पर ब्रिटिश फौज का कब्जा रहा है।
बीबीसी को भारत के लिए किसी तरह का ज्ञान देने से पहले इन सभी मामलों पर गौर करना चाहिए और साहस करके अपनी सरकार से भी कुछ सवाल पूछने चाहिए। कश्मीर तो हजारों सालों से भारत का अटूट हिस्सा रहा है और विदेशी आक्रांताओं के हमले से पहले तक यह क्षेत्र हिन्दू बहुल ही हुआ करता था। भारत ने कश्मीर पर जो भी फैसला लिया है वह पूरी तरह भारतीय संविधान के तहत ही लिया गया है और इसमें अगर किसी को शक है तो हमें उसकी मानसिक स्थिति पर ही तरस आता है।