इस्लाम के अनुयायी अपनी आस्था का पालन करने में काफी कट्टर माने जाते रहे हैं। यदि बाकी समुदाय उनकी इच्छाओं का सम्मान करता है, तो मुस्लिम अपनी इच्छाओं को बाकी पंथों के अनुयायियों पर ज़बरदस्ती थोपने का प्रयास करते हैं। राजनीतिक क्षेत्र में जहां भी मुस्लिम बहुसंख्यक हैं, वहाँ अल्पसंख्यकों को उनकी हर बात मानने को बाध्य होना पड़ता है, परंतु जिन क्षेत्रों में वे अल्पसंख्यक होते हैं, वहाँ भी वे गुटबाजी और एकाधिकार के सहारे अपना वर्चस्व जमाने का प्रयास करते हैं।
विश्व भर में मांसाहार के उद्योग पर मुस्लिम समुदाय अपना एकाधिकार जमा रहा है। इस्लाम के अनुयायी केवल हलाल मांस का सेवन करते हैं। हलाल सर्टिफिकेशन सर्विसेस इंडिया प्राइवेट लिमिटेड की परिभाषा के अनुसार, ‘केवल अल्लाह के नाम पर बलि चढ़ाये गए पशु ही हलाल कहलाए जाने योग्य हैं। हलाल करने वाला कसाई मुस्लिम होना चाहिए और पशु के हलाल किए जाने से पहले बिस्मिल्लाह और अल्लाहू अकबर का उच्चार अवश्य होना चाहिए’।
अब इससे दो बातें निकलकर सामने आती हैं – एक तो हलाल मांस उद्योग पर केवल एक धार्मिक समुदाय का अधिकार है, और दूसरा यह कि धार्मिक तरह से तैयार किए गए भोजन को अन्य धार्मिक समुदायों पर उनकी इच्छा के विरुद्ध थोपा जाएगा, क्योंकि वे इस बात पर ध्यान नहीं देते कि मांस हलाल है या झटका।
कुछ दिन पहले जब ज़ोमैटो का विवाद सर्वप्रथम गरमाया था, तो कंपनी ने ट्वीट किया था, ‘भोजन का कोई धर्म नहीं होता, भोजन स्वयं एक धर्म है’। ये ट्वीट सोशल मीडिया पर राजनीतिक लहजे से एक बेहद ही बेतुका ट्वीट था। पर सच बोलें तो भोजन का एक धर्म अवश्य है। कम से कम मुस्लिमों के लिए तो है ही, और उनके पसंद को देश की 85 प्रतिशत गैर मुस्लिम जनमानस के इच्छा के विरुद्ध उनपर थोपा जाता है।
एड्रोइट मार्केट रिसर्च के एक स्टडी के अनुसार वैश्विक हलाल मार्केट का मूल्य करीब 4.54 ट्रिलियन डॉलर है। यदि इसकी तुलना की जाए, तो ये जर्मनी, भारत अथवा यूके की कुल जीडीपी से कहीं ज़्यादा है। 2025 तक वैश्विक हलाल मीट उद्योग का मूल्य लगभग 9.71 ट्रिलियन डॉलर तक पहुँचने का अनुमान है, जिसपर मुस्लिम समुदाय का पूर्ण अधिकार होगा।
यूनाइटेड किंगडम के फूड स्टैंडर्ड एजेंसी के अनुसार, ‘हर हफ्ते ब्रिटेन के 16 मिलियन जानवरों , जिसमें 51 प्रतिशत लैम्ब, 31 प्रतिशत चिकेन, और 7 प्रतिशत बीफ – अब धार्मिक तरीके से काटे जाते हैं, जो देश भर में मुस्लिमों की आबादी से कहीं ज़्यादा है, क्योंकि वे देश की जनसंख्या का सिर्फ 5 प्रतिशत ही है’।
हलाल मांस उद्योग ‘मुसलमान द्वारा, मुसलमानों का उद्योग है जो सबके लिए खुला है’। दुनिया में यूएसए, यूके और भारत जैसे देशों में अल्पसंख्यक होने के बाद भी मुस्लिम समुदाय ने बहुसंख्यक समुदाय को अपने मानकों के हिसाब से भोजन परोसने पर विवश कर दिया है। ये कुछ भी नहीं, बल्कि एक प्रकार का आर्थिक जिहाद है, जहां धार्मिक इच्छा के नाम पर एक ट्रिलियन डॉलर इंडस्ट्री पर एकाधिकार जमा लिया गया है। सरल अर्थशास्त्र में भी ये बताया गया है कि किसी भी उद्योग में एकाधिकार अच्छी बात नहीं होती। पर यहाँ तो एक ऐसा उद्योग खड़ा हुआ है जिसका मूल्य दुनिया के कुछ बड़े देशों की जीडीपी से भी ज़्यादा बड़ा है, और विडम्बना तो देखिये, अर्थशास्त्री, अधिवक्ता और बड़े बड़े एक्टिविस्ट्स इस पर चुप्पी साधे बैठे हैं।
भारत में मुसलमानों द्वारा एकाधिकार किसी भी स्थिति में संवैधानिक नहीं है। भारतीय संविधान के अनुसार, एससी/एसटी का आर्थिक बहिष्कार एक दंडनीय अपराध है। चूंकि हलाल उद्योग में मुस्लिमों का एकाधिकार है, इसलिए ये एससी/एसटी समुदाय के आर्थिक बहिष्कार को समर्थन देता दिखाई देता है और ऐसे में इसके विरुद्ध एससी/एसटी कल्याण विभाग को अविलंब एक लीगल केस फाइल करना चाहिए।