भारतीय सीमा तथा विश्व स्तर पर पाकिस्तान के बढ़ते उत्पात के बीच भारत ने एक और बड़ा कदम उठाते हुए पाक के साथ हाइड्रोलॉजिकल डाटा साझा करना बंद कर दिया है। हाइड्रोलॉजिकल डाटा वर्षा, नदियों के मार्ग में उनका जमाव, प्रवाह की गति, जल की परिवहन क्षमता, भूजल स्तर, वाष्पीकरण के माध्यम से जल की निगरानी कर जुटाया जाता है। इसका मुख्य उद्देश्य किसी क्षेत्र के बढ़े हुए जलस्तर के कारण आने वाले बाढ़ का पता लगाना होता है। भारत भी अपनी नदियों का हाइड्रोलॉजिकल डाटा संग्रहीत करता है। उत्तर-पूर्वी राज्यों से पाक जाने वाली नदियों से जुड़ा डाटा वर्ष 1989 के एक समझौते के तहत पाकिस्तान के साथ भी साझा किया जाता था। इसे हर साल बाढ़ के मौसम में मॉडिफाइ कर पाकिस्तान के साथ साझा किया जाता था लेकिन अब केंद्र सरकार ने इसे बंद करने का फैसला किया है।
सिंधु जल संधि के भारतीय कमिश्नर पीके सक्सेना के अनुसार, भारत ने इस वर्ष पाकिस्तान के साथ हाइड्रोलॉजिकल डाटा शेयर नहीं किया है। टाइम्स ऑफ इंडिया की एक रिपोर्ट के अनुसार उन्होंने कहा है, ‘इस निर्णय का भारत और पाकिस्तान के बीच सिंधु जल संधि के 1960 में हस्ताक्षरित सिंधु प्रणाली के पानी के बंटवारे से कोई लेना-देना नहीं है। भारत एक जिम्मेदार राष्ट्र के रूप में IWT के प्रावधानों के लिए प्रतिबद्ध है।‘
यहां गौर करने वाली बात यह है कि भारत ने यह कदम पड़ोसी मुल्क द्वारा विभिन्न स्तरों पर भारत के विरुद्ध की गयी कार्रवाई के बाद उठाया है। भारत के इस कदम से पाक को भारत से जुड़ी नदी का हाइड्रोलॉजिकल डाटा प्राप्त नहीं हो सकेगा। ऐसे में वह बारिश के मौसम में नदियों के बढ़ते जलस्तर का पता नहीं लगा पाएगा।
बता दें कि मोदी सरकार द्वारा जम्मू-कश्मीर को स्पेशल स्टेटस देने वाले अनुच्छेद 370 को निरस्त करने के बाद पाकिस्तान ने अपने ही पांव पर कुल्हाड़ी मारते हुए भारत से राजनयिक संबंध का दायरा कम कर दिया था। इसके अलावा उसने कई ट्रेन सेवाओं को रद्द कर दिया था तथा इसे चीन की मदद से यूएनएससी तक भी ले जाने का प्रयास किया। लेकिन भारत के बेहतर विदेशी संबंधो के कारण ये मुल्क अपने इरादों में सफल नहीं हो सका।
हाइड्रोलॉजिकल डाटा से जुड़ा भारत का यह कदम पाकिस्तान के साथ हुए सिंधु जल संधि को निरस्त करने के प्लान का पहला कदम हो सकता है, क्योंकि पाकिस्तान जिस तरह से कश्मीर मुद्दे को विश्व में सांप्रदायिक रंग देने की कोशिश कर रहा है उसे सबक सिखाना जरूरी है। जल शक्ति मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत ने भी कहा है कि भारत सिंधु जल समझौते के तहत अपने हिस्से के पानी को रोकने के लिए प्राथमिकता के आधार पर काम कर रहा है। उन्होंने कहा, ‘हम इस पर प्राथमिकता से काम कर रहे हैं कि कैसे हमारे हिस्से का पानी जो पड़ोसी देश में बह जाता है, इस पानी को हमारे किसान, उद्योगों और लोगों के उपयोग के लिए डायवर्ट किया जा सकता है।‘
इससे पहले पूर्व जल संसाधन मंत्री नितिन गडकरी ने भी 14 फरवरी को हुए पुलवामा हमले के बाद कहा था कि पाकिस्तान द्वारा आतंकवाद को लगातार समर्थन देने की वजह से भारत अपने हिस्से में आने वाली नदियों का पानी पाकिस्तान में जाने से रोकने पर विचार कर रहा है।
बता दें कि विश्व बैंक की मध्यस्थता के बाद 19 सितंबर 1960 को भारत और पाक के बीच सिंधु जल समझौता हुआ था। उस समय भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू और पाक के राष्ट्रपति जनरल अयूब खान ने इस समझौते पर हस्ताक्षर किये थे। संधि के अनुसार, भारत के पास ‘पूर्वी’ नदियों (रावी, ब्यास और सतलुज) के जल पर पूर्ण अधिकार है। बदले में, भारत को पश्चिमी नदियों (सिंधु, चिनाब और झेलम) को पाक में बिना किसी उपयोग किए छोड़ना पड़ता है।
इस सिंधु जल समझौते पर गौर करें तो इससे भारत को कोई लाभ नहीं होता बल्कि घाटा ही होता है। विशेषज्ञ कहते हैं कि, इस समझौते से भारत को एकतरफा नुकसान हुआ है और उसे छह सिंधु नदियों की जल व्यवस्था का महज 20 फीसदी पानी ही मिला है। इस समझौते पर हमेशा से भारत और पाकिस्तान के बीच मतभेद रहा है। भारत का कहना है कि 1960 के सिंधु जल संधि के कार्यान्वयन पर पक्षपात हुआ है। दरअसल, इन नदियों का 80 फीसदी से ज्यादा पानी पाक को ही मिलता है।
हम सभी जानते हैं कि भारत और पाक के बीच तीन युद्ध हुए, लेकिन भारत ने एक बार भी यह समझौता नहीं तोड़ा। हालांकि, 2002 में जम्मू-कश्मीर विधानसभा में इस संधि को खत्म करने की मांग जरूर उठी थी, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। यह भारत का बड़प्पन ही है कि, भारत इस समझौते का सम्मान कर रहा है लेकिन पाक ने इसकी कभी कद्र नहीं की।
अगर भारत यह संधि तोड़ देता है तथा पाकिस्तान में जाने वाली इन तीनों नदियों (सिंधु, चेनाब और झेलम) का पानी रोक दिया जायेगा और नतीजतन हमारे पड़ोसी देश का एक बड़ा इलाका रेगिस्तान बन जाएगा। पाक के एक बड़े हिस्से में लोगों को पानी की कमी से जूझना पड़ेगा। वहां बिजली को लेकर हाहाकार मच जाएगा क्योंकि पानी न मिल सकने के कारण कई हाइड्रोपॉवर प्रोजेक्ट बंद हो जाएंगे। पाक की खेती तबाह हो जाएगी और वहां किसानों के सामने बड़ा संकट खड़ा हो जाएगा। जो पाकिस्तान पहले से ही कर्ज और गरीबी से जूझ रहा है वह यह झटका सहन नहीं कर पाएगा। धीरे-धीरे इस संधि को खत्म करने के लिए जिस तरह से मोदी सरकार प्रयास कर रही है वो आने वाले दिनों में पाकिस्तान के लिए खतरे की घंटी है।