आज यानी सोमवार को केंद्र सरकार की तरफ से गृहमंत्री अमित शाह ने राज्यसभा में एक संकल्प पेश किया जिसमें कहा गया कि संविधान के अनुच्छेद 370 (1) के अलावा अनुच्छेद 370 का कोई भी खंड जम्मू-कश्मीर में अब लागू नहीं होगा। इसके साथ ही राज्यसभा में जम्मू-कश्मीर राज्य पुनर्गठन विधेयक 2019 पेश किया। जिसके तहत जम्मू-कश्मीर से लद्दाख को अलग करने का प्रस्ताव रखा। इस विधेयक के पास होते ही लद्दाख क्षेत्र चंडीगढ़ की तर्ज पर शासित होगा, जहां विधानसभा की कोई व्यवस्था नहीं होगी।
केंद्र सरकार के इस कदम से सबसे ज़्यादा कोई खुश होगा, तो वो अपने ही देश में ‘शरणार्थियों’ की तरह रहे कश्मीरी पंडित होंगे। आज का दिन कश्मीरी पंडितों के लिए बेहद खास है। चूंकि, अब जम्मू-कश्मीर विधानसभा सहित केन्द्र शासित प्रदेश होगा, इस प्रदेश पर केंद्र सरकार का नियंत्रण बढ़ जाएगा और कश्मीरी पंडितों की सालों पुरानी चली आ रही पुनर्वास की मांग को पूरा किया जा सकेगा।
बता दें कि 1990 के दशक में जब कश्मीर में हिंसा का दौर था, तब कश्मीरी पंडितों पर बड़ी तादाद में हमले हुए थे और उनकी ज़्यादातर आबादी यहां से पलायन कर गई थी। कश्मीरी पंडित घाटी को छोड़कर देश के अलग-अलग हिस्सों में बसे हुए हैं। साल 2008 में भारत सरकार ने कश्मीर में 6,000 पद कश्मीरी पंडितों के लिए आरक्षित किए थे और इन कर्मचारियों के लिए सरकार ने कई स्थानों पर ट्रांज़िट कैंप बनाए थे, लेकिन इनके पुनर्वास के लिए कोई भी सरकार ठोस कदम नहीं उठा पाई थी। मौजूदा सरकार कश्मीरी पंडितों के लिए अलग से कॉलोनी विकसित करने का प्रस्ताव भी दे चुकी है लेकिन कश्मीर के अलगाववादियों ने सरकार की इस मंशा पर शक़ ज़ाहिर किया था। उन्होंने कहा था कि ऐसा करके सरकार कश्मीर की आबादी के चरित्र को बदलना चाहती है।
यानि कश्मीरी पंडितों का कोई सबसे बड़ा दुश्मन था, तो वह कश्मीर के अलगाववादी नेता ही थे। यही अलगाववादी नेता स्थानीय लोगों को कश्मीरी पंडितों के खिलाफ भड़काते थे और उनके पुनर्वास की राह में सबसे बड़ा रोड़ा बने थे। अब केंद्र सरकार ने अनुच्छेद 370 को ही पूरी तरह खत्म कर दिया है। इस फैसले के बाद जहां एक तरफ कश्मीरी पंडितों को घाटी में उचित सुरक्षा मिल सकेगी, तो वहीं उनके पुनर्वास के लिए भी केंद्र सरकार अपने दम पर फैसले ले सकेगी।
ऐसे हजारों कश्मीरी पंडित हैं, जिनके पास आज भी कश्मीर घाटी में अपनी जमीन-जायदाद हैं, और वे दोबारा वहां जाकर बसना चाहते हैं। हालांकि, कभी भी पूर्व की सरकारों ने उनके इस सपने को पूरा करने के लिए कोई ठोस कदम नहीं उठाया। फिलहाल मोदी सरकार को अमित शाह के रूप में गृह मंत्रालय को एक मजबूत नेतृत्व मिला है, इसी वजह से केंद्र सरकार इस तरह के तमाम बड़े फैसले ले पाई है और उनके फैसले को देश की अधिकतर राजनीतिक पार्टियां समर्थन कर रही हैं, जो स्वागत योग्य है।