घुसपैठ को रोकने की दिशा में तैयार किए जा रहे एनआरसी को अंतिम रूप देने की दिशा से जुड़ी एक अहम खबर सामने आई है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि एनआरसी में बाहर किए गए लोगों की अंतिम सूची 31 अगस्त तक सार्वजनिक हो जानी चाहिए। इसके साथ ही साथ देश की सर्वोच्च न्यायालय ने सरकार को एनआरसी के तहत इकट्ठा किए गए डाटा की सुरक्षा के लिए आधार योजना की तरह ही प्रोटेक्शन सिस्टम को लागू करने को कहा है। कोर्ट के अनुसार इसके बाद ही एनआरसी में सम्मिलित और बाहर किए गए लोगों की सूची केंद्र सरकार और विभिन्न राज्य सरकारों को प्रदान की जानी चाहिए।
मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली दो सदस्यीय पीठ ने इस पर फैसला सुनाते हुये कहा, “न्यायालय ये निर्देश देती है की बहिष्कृत लोगों की सूची 31 अगस्त 2019 को पहले ऑनलाइन ही प्रकाशित की जाएगी, और वो फ़ैमिली वाइज़ ही प्रकाशित होगी।“ इसके अलावा अदालत ने यह भी निर्देश दिया की बाकी लोगों के सम्मिलित होने की सूचियों की हार्ड कॉपी एनआरसी के विभिन्न सेवा केंद्र, सर्कल कार्यालय और राज्य के जिलाधिकारियों के कार्यालय में प्रकाशित होंगी।
यही नहीं, मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पीठ ने बीच में एनआरसी के नियमों को बदलने से भी मना कर दिया। असम के एनआरसी समन्वयक प्रतीक हजेला अंतिम सूची को 31 अगस्त तक घोषित करेंगे। यह निस्संदेह घुसपैठियों को भारत में तांडव मचाने से रोकने हेतु उठाया गया एक बेहद ही सार्थक कदम है। पूर्वोत्तर भारत, विशेषकर असम राज्य में घुसपैठियों के कारण राज्य के स्थानीय निवासियों को कई प्रकार की समस्याओं का सामना करना पड़ता है। ये घुसपैठिए न केवल राज्य के संसाधनों पर अपना कब्जा जमाते हैं, अपितु विरोध करने पर स्थानीय निवासियों, विशेषकर हिंदुओं पर घातक हमले करने से भी नहीं कतराते हैं। चूंकि घुसपैठियों में अधिकांश लोग विशेष समुदाय से ताल्लुक रखते हैं, इसलिए कई पार्टियां अपनी संकुचित वोट बैंक राजनीति के चलते इनके विरुद्ध किसी प्रकार का बयान भी नहीं देते हैं, एक्शन लेना तो बहुत दूर की बात।
परंतु 2016 में राज्य में भाजपा सरकार बनते ही पासा मानो पलट सा गया। सरबानन्द सोनोवाल के सीएम बनने के महज दो वर्ष के अंदर अंदर ही राज्य सरकार ने एनआरसी के लिए मार्ग प्रशस्त करते हुये केंद्र सरकार को राज्य के वैध निवासियों और घुसपैठियों में अंतर स्थापित करने के लिए एनआरसी तैयार कराने में सहयोग देने के लिए कहा, और यही वजह है कि अब इस दिशा में इतनी तेजी से काम किया जा रहा है।
वर्ष 2018 में एनआरसी के लिए केंद्र सरकार ने न सिर्फ सहमति दी, अपितु उसकी तैयारी के लिए मार्ग भी प्रशस्त किया। कथित सेक्यूलर पार्टियों के लाख विरोध के बावजूद एनआरसी लगभग बनकर तैयार है, और अब इसकी सफलता से प्रेरित होकर झारखंड सरकार ने एनआरसी को अपने राज्य में लागू करने का इरादा भी पक्का कर लिया है। यदि सब कुछ सही रहा, तो केंद्र सरकार भी एनआरसी को देश भर में लागू करने पर विचार कर सकती है।
वैसे भी एनआरसी के अंतर्गत पंजीकरण करना बेहद ही सरल है। मीडिया के सूत्रों के अनुसार, जिन लोगों के नाम 1951 के असम एनआरसी में पंजीकृत है या जो 1966 से 1971 के बीच के मतदाता सूची में पंजीकृत है, उन्हे एनआरसी में जगह अवश्य मिलेगी। इसके अलावा यदि कोई व्यक्ति अपने तीन पीढ़ियों से संबन्धित वैध दस्तावेज़ दिखा दे, तो उसे भी एनआरसी में सम्मिलित किया जाएगा। एनआरसी का मुख्य उद्देश्य किसी प्रकार की घृणात्मक कार्रवाई करना नहीं, अपितु घुसपैठियों की समस्या पर नियंत्रण पाने के लिए वास्तविक भारतीयों की पहचान करना है। इस दिशा में केंद्र सरकार जिस तरह से बढ़ रही है, वो निस्संदेह सराहनीय है।
यह प्रक्रिया मीडिया में उपस्थित उन प्रोपगैंडावादियों के मुंह पर भी करारा तमाचा समान है, जो एनआरसी की तुलना नाज़ी जर्मनी के राईख सिटिज़ेनशिप लिस्ट से करने में लगे हुये हैं। जहां स्वाति चतुर्वेदी और बरखा दत्त जैसे लोग शुरुआत से ही एनआरसी पर अफवाहें फैलाने में लगे हुये हैं, तो द वायर एक कदम आगे बढ़ते हुये इसमें भी ‘डिवाइड एण्ड रूल’ का घिनौना खेल खेलने में लगा है। यह वामपंथी न्यूज़ पोर्टल ऐसे घुसपैठियों की स्थिति की तुलना हिटलर के जमाने में यहूदियों की स्थिति से करने में जुटा है। हालांकि, इन्हें इस बात की ज़रा भी समझ नहीं है कि यहूदी उस वक्त जर्मनी के रहने वाले लोग थे, जबकि एनआरसी प्रक्रिया के तहत बाहर किए गए लोग बांग्लादेश से आए हुए हैं। इतना ही नहीं, हिटलर गैस चेंबर्स में भर-भर कर यहूदियों को मौत के घाट उतार रहा था, वहीं भारत में अभी सिर्फ इनकी नागरिकता छीनने की बातें की जा रही हैं। ऐसे में द वायर की यह तुलना बेहद निंदनीय और बेतुकी है।
सच पूछें, तो एनआरसी के सार्वजनिक होने से हमारे लेफ्ट लिबरल वर्ग के हाथ से देश में तनाव फैलाने का एक और अवसर फिसल जाएगा। वर्तमान गृह मंत्री अमित शाह ने पहले ही स्पष्ट कर दिया है कि भारत घुसपैठियों के लिए धर्मशाला नहीं बन सकता। इसी वजह से अब केंद्र सरकार एनआरसी प्रक्रिया को इतना ज़्यादा महत्व दे रही है।