देश में पिछले एक वर्ष से कई बदलाव हुए, जिनमें से एक बॉलीवुड है जहां व्यापक स्तर पर बदलाव हुआ। पिछले कुछ सालों से फ्रेश कहानी दिखाने के नाम पर भारत और उसकी संस्कृति, उसकी परंपराओं पर निशाना साधना काफी कूल हो चुका था, और यदि कोई फिल्म इस ट्रेंड से हटकर चलती थी, तो लेफ्ट लिबरल क्रिटिक उसे डाउनग्रेड करने में जरा भी कसर नहीं छोड़ते थे। पिछले एक वर्ष पीछे जाएंगे तो देखेंगे कि बॉलीवुड में देशभक्ति का दौर चल रहा है। जी हां, इस बार देशभक्ति जॉनर की फिल्में दिखाना कूल हुआ है और इस दिशा में कई बड़-बड़े फिल्म मेकर लगे हुए हैं जो ऐतिहासिक नायकों की कहानियां बड़े पर्दे पर लेकर आना चाहते हैं।
यह ट्रेंड शुरू हुआ पिछले साल मई से, जब जॉन अब्राहम की लंबे समय से अटकी हुई फिल्म ‘परमाणु’ आखिरकार 25 मई को प्रदर्शित हुई। ये फिल्म 1998 में हुए पोखरण परमाणु परीक्षण पर आधारित थी, और शायद इसीलिए कई लेफ्ट लिबरल क्रिटिक ने इसे राष्ट्रवादी होने और अटल बिहारी वाजपेयी एवं एपीजे अब्दुल कलाम की नीतियों पर बने इस फिल्म को जमकर कोसा था। लेकिन इस बार जनता ने ऐसे लोगों की एक न सुनी, और केवल वर्ड ऑफ माउथ के बल पर 93 करोड़ रुपये से भी ज़्यादा इस फिल्म पर बरसा दिये। ‘परमाणु’ की सफलता से जो सिलसिला शुरू हुआ, उसके बाद तो फिर में देशभक्ति का नया दौर शुरू हो गया।
इस फिल्म के अलावा पिछले साल देशभक्ति से ओतप्रोत एक और फिल्म आई- अक्षय कुमार की ‘गोल्ड’, जो स्वतंत्र भारत द्वारा लंदन ओलंपिक 1948 में हॉकी में जीते गए प्रथम ओलंपिक स्वर्ण पदक की शौर्य गाथा बता रही थी। ये फिल्म परमाणु जितनी सटीक तो नहीं थी, लेकिन इसमें मनोरंजन भरपूर था, और इसी कारण इस फिल्म ने कुल 151 करोड़ रुपये का बॉक्स ऑफिस पर कारोबार किया। लेकिन 2019 के आते ही मानो देशभक्ति से भरी फिल्मों की बाढ़ सी आ गयी, और इसका पूरा-पूरा श्रेय हमारे लेफ्ट लिबरल मित्रों को ही जाता है।
साल 2019 की सबसे पहली फिल्म आई ‘उरी – द सर्जिकल स्ट्राइक’, जिसे निर्देशित किया आदित्य धर ने और लीड रोल में थे विकी कौशल और उनके साथ थे मोहित रैना, परेश रावल, यामी गौतम, कीर्ति कुल्हारी। ये फिल्म उसी सर्जिकल स्ट्राइक पर आधारित थी जो 2016 में भारतीय सेना के पैरा स्पेशल फोर्सेस ने उरी हमले के जवाब में पीओके में स्थित आतंकी लॉंचपैड्स पर की थी। भला किसी फिल्म में देशभक्ति की बात हो, और उसमें मोदी सरकार की गुणगान हो, तो लिबरल्स को अच्छा तो नहीं लगेगा न? इस फिल्म पर हर प्रकार के आरोप लगाए गए, और कल तक पद्मावत पर सहिष्णुता का ज्ञान बाँचने वाले हमारे कथित बुद्धिजीवी इस फिल्म को विषैला और प्रोपगैंडा से भरा हुआ बताने लगे। पर इस बार भी जनता ने इनकी एक न सुनी, और उरी ने 342 करोड़ रुपये की बम्पर कमाई की।
इसके साथ ही साथ उरी ने हाल ही में घोषित 66वें नेशनल फिल्म अवार्ड्स में सर्वश्रेष्ठ अभिनेता और सर्वश्रेष्ठ निर्देशक सहित 4 पुरस्कार अर्जित किए हैं। उरी की अपार सफलता को देखकर कई अन्य फ़िल्मकारों ने भारत की ऐतिहासिक उपलब्धियों पर फिल्म बनाना शुरू कर दिया है, जिसमें कुछ ही महीने पहले प्रदर्शित हुई ‘केसरी’ शामिल है। सारागढ़ी के ऐतिहासिक युद्ध पर आधारित ये फिल्म दर्शकों को बेहद पसंद आई, और इसने कुल 204 करोड़ रुपये बॉक्स ऑफिस पर कमाए। इसके अलावा इसी वर्ष मंगलयान के सफल प्रक्षेपण पर आधारित ‘मिशन मंगल’ और कांग्रेस के छद्म सेक्यूलरिज़्म पर प्रहार करती ‘बाटला हाउस’, एवं स्लम सॉकर की सफलता पर आधारित ‘झुंड’ जल्द ही सिनेमाघरों में प्रदर्शित होगी।
‘उरी’ और ‘केसरी’ की अप्रत्याशित सफलता ने बॉलीवुड एवं भारतीय सिनेमा के अन्य बड़े खिलाड़ियों को ऐसे कई नायकों की कहानियाँ सामने लाने को प्रेरित किया है। एक ओर नीरज पांडे चाणक्य के सिद्धांतों को अजय देवगन के माध्यम से पर्दे पर लाएँगे, तो वहीं अजय देवगन स्वयं ताणाजी मलुसारे के शौर्य को ‘ताणाजी – द अनसंग वॉरियर’ के माध्यम से बड़े पर्दे पर लाएँगे। इसके अलावा अजय देवगन 1971 में भारतीय वायुसेना और गुजरात के स्थानीय निवासियों की शौर्य गाथा का बखान करती ‘भुज – द प्राइड ऑफ इंडिया’ में भी दिखेंगे। प्रसिद्ध निर्देशक एसएस राजामौली अपनी अगली प्रोजेक्ट ‘आरआरआर’ के जरिये दो वीर योद्धा – अल्लुरी सीताराम राजू और कोमराम भीम की शौर्य गाथाओं को दुनिया के सामने लाएंगे, जिन्होने अंग्रेज़ी साम्राज्यवादियों के विरुद्ध एक लंबी लड़ाई लड़ी थी।
दिलचस्प बात तो यह है कि इस फिल्म में भी अजय देवगन एक अहम भूमिका में होंगे। वहीं विकी कौशल ‘सरदार उधम सिंह’ में अमर शहीद उधम सिंह कंबोज की भूमिका निभाएंगे, जिन्होनें जलियाँवाला बाग नरसंहार की स्वीकृति देने वाले ब्रिटिश शासन काल के दौरान पंजाब के पूर्व उपराज्यपाल माइकल ओ ड्वायर से प्रतिशोध लिया था। यही नहीं भारतीय नौसेना के ऑपरेशन त्रिडेंट को भी पर्दे पर उतारा जाएगा, जिसका निर्माण ‘भुज’ के निर्माता टी सिरीज़ करगी। अब एक बार फिर देशभक्ति भारतीय सिनेमा में कूल बन चुकी है। स्वयं कई फ़िल्मकार एवं निर्माता देश के ऐसे नायकों की वीर गाथाओं को सामने ला रहे हैं, जो इतिहास के पन्नों में न जाने कहां खो गई थी। आशा करते हैं कि बॉलीवुड का यह अभियान ऐसे ही आगे बढ़ता रहे, और देशवासी इन वीरगाथाओं से प्रेरित होकर देश की प्रगति में अपना योगदान दें। वंदे मातरम!